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समाज

लिंग बदल सकते हैं लेकिन उम्र नहीं घटा सकते...

४ दिसम्बर २०१८

नीदरलैंड्स का एक शख्स चाहता था कि उसकी उम्र घट जाए. उम्र घटाने की इसी जद्दोजहद में वह अदालत तक चला गया लेकिन अदालत ने उसकी याचिका खारिज करते हुए कहा कि आप लिंग और नाम तो बदल सकते हैं लेकिन उम्र घटाना भूल जाइए.

Niederlande - Motivationstrainer Emile Ratelband will 20 Jahre jünger sein und scheitert vor Gericht
तस्वीर: picture-alliance/AP/P. Dejong

क्या आपको कभी लगा है आपका मन और ऊर्जा आपकी उम्र से मेल नहीं खाता? क्या आपने कभी महसूस किया है कि आपकी उम्र जरूर बढ़ रही है लेकिन इसके बावजूद आप जवान बने हुए हैं. ऐसे ख्याल आना लाजिमी है, लेकिन सवाल है कि इसके लिए क्या किया जाए.

अपने ऐसे ही सवालों का जवाब खोजते हुए नीदरलैंड्स में बतौर मोटिवेशनल स्पीकर नाम कमा चुके एमिले राटलबांड अदालत पहुंच गए. राटलबांड उस वक्त चर्चा में आएं जब उन्होंने कोर्ट में दायर अपनी याचिका में कहा कि कानूनी तौर पर उनकी उम्र 69 साल है लेकिन वह बिलकुल भी ऐसा महसूस नहीं करते हैं. उन्होंने यह भी कहा उम्र में बदलाव करना नाम, लिंग में बदलाव करने जैसा ही है जिसे नीदरलैंड्स और दुनिया के कई देशों में मान्यता मिली हुई है.    

राटलबांड की इन दलीलों पर अदालत राजी नहीं हुई. अदालत ने कहा कि अगर वह अपनी उम्र से कम का महसूस करते हैं तो वह ऐसा कर सकते हैं. लेकिन जिंदगी के 20 वर्षों को कम करने का मतलब है उनकी जन्म तिथि, शादी, पार्टनरशिप और अन्य चीजों के रिकॉर्ड को झुठलाना, जिसके तमाम कानूनी और सामाजिक प्रभाव पड़ सकते हैं.

एमिले राटलबांडतस्वीर: picture-alliance/AP/P. Dejong

कोर्ट ने लिंग जैसी दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि डच कानूनों में एक उम्र के बाद कई अधिकार दिए जाते हैं, मसलन वोट का अधिकार और स्कूल जाने का अधिकार. ऐसे में अगर राटलबांड के आवदेन पर गौर किया जाए तो वे सारे कानून बेमतलब हो जाएंगे.

याचिकाकर्ता को कोर्ट से मिले जवाब पर कोई खास निराशा नहीं हुई है और अब वह आगे अपील करने का मन बना रहे हैं. उन्होंने कहा, "यह अच्छा है. कोर्ट से याचिका खारिज होना आपको सारी बातों के बारे में बताता है, जिसे आप आगे अपील में जाने से पहले सोच सकते हैं." उन्होंने कहा कि वह पहले ऐसे इंसान हैं जो अपनी उम्र को बदलना चाहते हैं.

अदालत ने कहा कि वह लोगों की लंबे समय तक फिट और स्वस्थ रखने की बात का स्वागत करती है लेकिन इसे किसी व्यक्ति की जन्मतिथि में संशोधन किए जाने के लिए तर्क नहीं माना जा सकता. राटलबांड का कहना था कि उनका मामला नाम, लिंग बदलने जैसा ही है, "नाम और लिंग जैसे मामलों के साथ इसकी तुलना की जा सकती है क्योंकि यह पहचान का मामला है, भावनाओं से जुड़ा है." कोर्ट राटलबांड के किसी भी तर्क पर संतुष्ट नहीं हुई और जजों ने कहा कि उम्र के आधार पर भेदभाव को चुनौती देने के लिए कई और विकल्प हैं, उसके लिए किसी व्यक्ति की उम्र में संशोधन किया जाना जरूरी नहीं है.

एए/आईबी (एपी)

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