लीबिया: यूरोप और मौत का द्वार
३० अप्रैल २०१५लीबिया के तटरक्षक तकनीक और अच्छे उपकरणों से महरूम हैं. लेकिन इसके बावजूद सैकड़ों लोगों की यात्रा लीबिया में खत्म हो जाती है. वहां वो पकड़े जाते हैं. ऐसा शायद ही कोई दिन हो, जब लीबिया से कोई लचर नाव सैकड़ों लोगों को लेकर यूरोप की तरफ न निकलती हो. भूमध्य सागर को पार कर ये नावें लाम्पेदूसा पहुंचना चाहती हैं. इनमें ठसाठस भरे लोग बेहतर भविष्य की आस में अपनी बचाई जमा पूंजी और जान दांव पर लगाते हैं. सैकड़ों लोगों से भरी किसी नाव के डूबने की खबरें धीरे धीरे बढ़ती जा रही हैं. इस आपातकालीन स्थिति को टालने के मामले में लीबिया के तटरक्षक लाचार दिखते हैं. उन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे ये उनकी जिम्मेदारी ही न हो.
जनवरी 2015 से लीबिया के तटरक्षकों ने एक बार भी गश्त नहीं लगाई है. वे तभी हरकत में आते हैं जब उन्हें किसी नाव के इटली के द्वीप लाम्पेदूसा की तरफ बढ़ने की शिकायत आधिकारिक तौर पर मिलती है. लीबिया का तटीय इलाका 1,800 किलोमीटर लंबा है. इतने व्यापक इलाके पर नजर बनाए रखना आसान नहीं है. लाम्पेदूसा करीब 300 किलोमीटर दूर है. किसी खतरे की स्थिति में लोगों से लबालब ये नावें आपातकालीन सिग्नल भेजती हैं. लेकिन लीबिया के तटरक्षक शुबी बिशेर के मुताबिक इतने बड़े इलाके सही जगह पर तेजी से पहुंचना आसान हीं. बिशेर अपने बेड़े की जर्जर हालत का भी जिक्र करते हैं. उनके मुताबिक तटरक्षकों की नौकाएं भी कल पुर्जों की किल्लत से जूझ रही हैं.
10 लाख लोगों की वेटिंग लिस्ट
यूरोपीय कमीशन के अनुमान के मुताबिक करीब 10 लाख लोग यूरोप आने के लिए लीबिया में इंतजार कर रहे हैं. बिना वैध रेजिडेंट परमिट के लीबिया में छुपे लोग पुलिस से भी भागते फिरते हैं. पकड़ में आने पर उन्हें लीबिया के हिरासत केंद्रों में भेज दिया जाता है. लीबिया के पूर्व राष्ट्रपति मुअम्मर गद्दाफी अप्रवासन के मुद्दे पर यूरोप के साथ काफी सहयोग करते थे. उनके कार्यकाल में लीबिया विस्थापितों को अपनी सीमा से बाहर नहीं निकलने देता था. उन्हें हिरासत केंद्रो में रखा जाता था. मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि हिरासत कैम्पों में बलात्कार और यातनाएं देना आम था.
लेकिन अक्टूबर 2011 में गद्दाफी के पतन के बाद लीबिया का सरकारी ढांचा तेजी से ध्वस्त हुआ. देश के कई बड़े इलाकों को अब अलग अलग मिलिशिया संगठन नियंत्रित कर रहे हैं. कबूतरबाज इसी का फायदा उठा कर विस्थापितों को तटीय इलाकों तक लाते हैं, फिर उन्हें नावों पर लादकर यूरोप के लिए रवाना कर दिया जाता है.
लीबिया के तटरक्षक बल के प्रमुख मोहम्मद बायथी के मुताबिक ज्यादातर विस्थापित लीबिया नहीं लौटना चाहते हैं, "वे यूरोप जाना चाहते हैं, कभी कभार अगर हम उन्हें वापस भी लाएं तो वे रोने लगते हैं या फिर हमारी नाव को तबाह करने की कोशिश करते हैं." डॉयचे वेले से बातचीत में बायथी ने कहा कि खतरे की जद में आते ही नावें आपातकालीन संदेश भेजती हैं. ये सिग्नल तटरक्षकों तक पहुंचते है. ऐसी स्थिति में नाव के आस पास मौजूद व्यावसायिक जहाजों या मछली पकड़ने वाले जहाजों को अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून के तहत संकट में फंसी नाव में सवार लोगों की मदद करनी होती है. बायथी के मुताबिक, "उन्हें अनिवार्य रूप से इन सभी लोगों को अपने जहाज में जगह देनी होती है."
हिरासत केंद्रों की दास्तां
राजधानी त्रिपोली से 50 किलोमीटर दूर जाविया में चल रहे एक हिरासत कैम्प में सेनेगल के लामिन केबे बंद है. लीबिया में चल रहे ऐसे हिरासत कैम्पों में केबे समेत 8,000 लोग कैद हैं. लीबिया के गृह मंत्री खलीफा ग्वेल खुद यह आंकड़ा बताते हैं. केबे साल भर पहले बेहतर भविष्य की उम्मीद में लीबिया आए, "मैं काम करना चाहता था, अपना भविष्य बनाना चाहता था." अगर लीबिया में उन्हें अच्छा काम मिल जाता तो केबे वहीं रह जाते. डीडब्ल्यू से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा, "अगर ऐसा नहीं होता तो मैं तस्करी के जरिए किसी और देश का रुख करता." लेकिन इससे पहले ही वह पकड़े गए.
जाविया के हिरासत केंद्र में केबे के अलावा 420 और लोग बंद हैं. कड़ी परिस्थितियों के बावजूद सभी बंदियों को लगता है कि अच्छे दिन आएंगे. लीबिया का प्रशासन ऐसे लोगों को हफ्तों या महीनों तक हिरासत में रखता है. इस दौरान वे न तो काम कर सकते हैं और न ही लीबिया छोड़ सकते हैं. गिनी के 19 साल के बोबाकर बारी कहते हैं, "वे हमें हमारे कमरों में बंद कर देते हैं और हमसे ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे हम कुत्ते हों." बारी के मुताबिक गार्ड अक्सर उन्हें पीटते और बेइज्जत करते हैं, "वे नाक पर मास्क पहनते हैं क्योंकि वे कहते हैं कि हमसे बदबू आती है." 400 बंदियों के नहाने के लिए सिर्फ पांच शावर हैं.
लीबियाई प्रशासन की उदासीनता
हिरासत केंद्रों की बदतर हालत हिंसा भड़का रही है. जाविया हिरासत केंद्र के लेफ्टिनेंट खालेद अतुमी के मुताबिक बंदी ज्यादा हिंसक होने लगे हैं, "वे हर वक्त भागने की कोशिश करते हैं. कल तो उन्होंने एक पुलिसकर्मी की पिटाई कर दी." अतुमी के मुताबिक वे घर छोड़कर आए विस्थापितों की स्थिति समझते हैं, "खाना बुरा है, कभी उन्हें रोटी मिलती है, कभी नहीं. यह लगातार तीसरा साल है जब सरकार ने संस्थान को एक भी दीनार (लीबिया की मुद्रा) मुहैया नहीं कराया है, ऐसे में मैं क्या कर सकता हूं? अगर ऐसा ही जारी रहा तो तो मैं उन्हें भागने दूंगा."
इसका मतलब होगा कि कई विस्थापित यूरोप आने की कोशिश करेंगे. तटरक्षक शुबी बिशेर के मुताबिक विस्थापित जानते हैं कि वे अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं, "जनवरी में एक मछली मार नौका को अपने जाल में चार लोगों के शव मिले लेकिन तटरक्षकों के पास उन शवों के बैग खरीदने के पैसे तक नहीं थे. यही त्रासदी है."
एम डुमास, एच फिशर/ओएसजे