म्यांमार में जान का खतरा है और बांग्लादेश में दाखिल होने के लिए लालची तस्करों पर भरोसा करना पड़ रहा है. जाहानारा ने ऐसी कोशिश की और अपनी बेटी व भतीजी गंवा दीं.
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38 साल की आलेया खातून अपने नौ पड़ोसियों के साथ म्यांमार से बांग्लादेश की तरफ भागीं. बॉर्डर पर दोनों तरफ की कड़ी चौकसी से बचने के लिए सारे लोग दिन भर छुपे रहे. फिर रात के अंधेरे में सभी बांग्लादेश बॉर्डर में दाखिल होने के लिए आगे बढ़े. आलेया के मुताबिक इसी दौरान एक बारूदी सुरंग फटी और उनकी पड़ोसी जोहरा उसकी चपेट में आ गई.
जान बचाने के लिए म्यांमार से भागीं जोहरा अपने पीछे तीन बच्चे छोड़ गईं. अब आलेया ही बच्चों की सब कुछ हैं, "मैं जोहरा के तीन बच्चों को अपने साथ लाई क्योंकि अब उनकी देखभाल करने वाला और कोई नहीं है." आलेया के मुताबिक सीमा के पास 1,200 से ज्यादा रोहिंग्या परिवार छुपे हुए हैं, जो बांग्लादेश में दाखिल होने के लिए अंधेरे का इंतजार कर रहे हैं.
सीमा पार करने के लिए रोहिंग्या समुदाय के लोग बांग्लादेशी तस्करों का भी सहारा ले रहे हैं. कुछ तस्करों के लिए रोहिंग्या सिर्फ पैसा बनाने या हवस मिटाने का जरिया मात्र हैं. 40 साल की जहानारा बेगम भी अब इस बात को अच्छी तरह जान चुकी हैं. वह अपनी किशोर बेटी और भतीजी के साथ बॉर्डर पार करने के लिए निकलीं. लेकिन अब बेटी और भतीजी लापता हैं. जहानारा कहती हैं, "जो शख्स हमें अंदर ला रहा था, उसने कहा दो लड़कियां गिरफ्तार हुई हैं. लेकिन हमारे सामने कोई पुलिस नहीं आई." तस्कर ने जहानारा को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर उसने लड़कियों की गुमशुदगी को लेकर हल्ला किया तो वे जहानारा को प्रशासन के हवाले कर देंगे. जहानारा बुरी तरह फंसा हुआ महसूस कर रही हैं. उन्हें शक है कि बच्चियों को बांग्लादेशी तस्करों ने अगवा किया है.
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
म्यांमार के पश्चिमी रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों की आबादी लगभग दस लाख है. लेकिन उनकी जिंदगी प्रताड़ना, भेदभाव, बेबसी और मुफलिसी से ज्यादा कुछ नहीं है. आइए जानते हैं, कौन हैं रोहिंग्या लोग.
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इनका कोई देश नहीं
रोहिंग्या लोगों का कोई देश नहीं है. यानी उनके पास किसी देश की नागरिकता नहीं है. रहते वो म्यामांर में हैं, लेकिन वह उन्हें सिर्फ गैरकानूनी बांग्लादेशी प्रवासी मानता है.
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सबसे प्रताड़ित लोग
म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध लोगों और सुरक्षा बलों पर अक्सर रोहिंग्या मुसलमानों को प्रताड़ित करने के आरोप लगते हैं. इन लोगों के पास कोई अधिकार नहीं हैं. संयुक्त राष्ट्र उन्हें दुनिया का सबसे प्रताड़ित जातीय समूह मानता है.
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आने जाने पर भी रोक
ये लोग न तो अपनी मर्जी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते हैं और न ही अपनी मर्जी काम कर सकते हैं. जिस जगह वे रहते हैं, उसे कभी खाली करने को कह दिया जाता है. म्यांमार में इन लोगों की कहीं सुनवाई नहीं है.
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बंगाली
ये लोग दशकों से रखाइन प्रांत में रह रहे हैं, लेकिन वहां के बौद्ध लोग इन्हें "बंगाली" कह कर दुत्कारते हैं. ये लोग जो बोली बोलते हैं, वैसी दक्षिणपूर्व बांग्लादेश के चटगांव में बोली जाती है. रोहिंग्या लोग सुन्नी मुसलमान हैं.
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जोखिम भरा सफर
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2012 में धार्मिक हिंसा का चक्र शुरू होने के बाद से लगभग एक लाख बीस हजार रोहिंग्या लोगों ने रखाइन छोड़ दिया है. इनमें से कई लोग समंदर में नौका डूबने से मारे गए हैं.
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सामूहिक कब्रें
मलेशिया और थाइलैंड की सीमा के नजदीक रोहिंग्या लोगों की कई सामूहिक कब्रें मिली हैं. 2015 में जब कुछ सख्ती की गई तो नावों पर सवार हजारों रोहिंग्या कई दिनों तक समंदर में फंसे रहे.
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इंसानी तस्करी
रोहिंग्या लोगों की मजबूरी का फायदा इंसानों की तस्करी करने वाले खूब उठाते हैं. ये लोग अपना सबकुछ इन्हें सौंप कर किसी सुरक्षित जगह के लिए अपनी जिंदगी जोखिम में डालने को मजबूर होते हैं.
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बांग्लादेश में आसरा
म्यांमार से लगने वाले बांग्लादेश में लगभग आठ लाख रोहिंग्या लोग रहते हैं. इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जो म्यांमार से जान बचाकर वहां पहुंचे हैं. बांग्लादेश में हाल में रोहिंग्याओं को एक द्वीप पर बसाने की योजना बनाई है.
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आसान नहीं शरण
बांग्लादेश कुछ ही रोहिंग्या लोगों को शरणार्थी के तौर पर मान्यता देता है. वो नाव के जरिए बांग्लादेश में घुसने की कोशिश करने वाले बहुत से रोहिंग्या लोगों को लौटा देता है.
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दर ब दर
बाग्लादेश के अलावा रोहिंग्या लोग भारत, थाईलैंड, मलेशिया और चीन जैसे देशों का भी रुख कर रहे हैं.
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सुरक्षा के लिए खतरा
म्यांमार में हुए हालिया कई हमलों में रोहिंग्या लोगों को शामिल बताया गया है. उनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई के जवाब में सुरक्षा बलों का कहना है कि वो इस तरह के हमलों को रोकना चाहते हैं.
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मानवाधिकार समूहों की अपील
मानवाधिकार समूह म्यांमार से अपील करते हैं कि वो रोहिंग्या लोगों को नागरिकता दे और उनका दमन रोका जाए.
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कानूनी अड़चन
म्यांमार में रोहिंग्या लोगों को एक जातीय समूह के तौर पर मान्यता नहीं है. इसकी एक वजह 1982 का वो कानून भी है जिसके अनुसार नागरिकता पाने के लिए किसी भी जातीय समूह को यह साबित करना है कि वो 1823 के पहले से म्यांमार में रह रहा है.
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आलोचना
रोहिंग्या लोगों की समस्या पर लगभग खामोश रहने के लिए म्यांमार में सत्ताधारी पार्टी की नेता आंग सान सू ची की अक्सर आलोचना होती है. माना जाता है कि वो इस मुद्दे पर ताकतवर सेना से नहीं टकराना चाहती हैं. सू ची हेग को अंतरराष्ट्रीय अदालत में रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार से जुड़े आरोपों का सामना करने के लिए जाना पड़ा है.
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रोहिंग्या समुदाय के नेताओं का कहना है कि म्यांमार में जारी हिंसा से बचने के लिए बड़ी संख्या में रोहिंग्या बांग्लादेश की ओर भाग रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक के मुताबिक करीब 30,000 रोहिंग्या मुसलमान भाग रहे हैं. यूएन ने बांग्लादेश से अपनी सीमा खोलकर मदद करने की अपील की है. हाल के दिनों में 2,000 से ज्यादा रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश में दाखिल हुए हैं.
भागकर बांग्लादेश पहुंचने वाले अपने साथ कई दर्दनाक अनुभव भी ला रहे हैं. एक व्यक्ति ने कहा कि उनके गांव को म्यांमार की सेना ने आग लगा दी और उसके रिश्तेदारों की जान ले ली. एक महिला ने आरोप लगाया कि सैनिकों ने उसकी बेटी से बलात्कार किया और फिर उसकी हत्या कर दी.
सीमा से सटे बांग्लादेश के शहर कॉक्स बाजार में पुलिस ने 70 रोहिंग्याओं को हिरासत में भी लिया गया है. उनमें महिलाएं और बच्चे भी हैं. स्थानीय पुलिस अधिकारी श्यामोल कुमार नाथ ने कहा, "गैरकानूनी ढंग से घुसने के बाद हमने उन्हें पकड़ लिया. उन्हें वापस भेजा जाएगा."
लेकिन वापसी की क्या कीमत चुकानी होगी? रोहिंग्या समुदाय के एक नेता ने कहा कि जो भी वापस भेजा जाएगा उसे मौत मिल सकती है. नेता ने कहा, "हमें ऐसी सूचना मिली है कि म्यांमार की सेना उन लोगों को मार रही है जो बांग्लादेश से वापस भेजे जा रहे हैं. सेना उनके गांव जलाकर खाक कर चुकी है और उनके रिश्तेदारों को भी मार चुकी है. वे इन बेकसूरों को मार डालेंगे."
म्यांमार की सेना ने इन आरोपों को खारिज किया है. हालांकि म्यांमार की सेना ने विदेशी पत्रकारों को बांग्लादेश की सीमा से सटे इलाके में जाने से रोका हुआ है.
दक्षिण पूर्वी बांग्लादेश में कानूनी रूप से रजिस्टर्ड 32 हजार रोहिंग्याओं के लिए शरण शिविर बनाया गया है. गैरकानूनी ढंग से आ रहे नए लोग भी इन्हीं तक पहुंचना चाहते हैं. उन्हें उम्मीद हैं कि वहां रह रहा रोहिंग्या समुदाय उनकी मदद करेगा. लेकिन अगर कोई शरणार्थी गैरकानूनी ढंग से बांग्लादेश पहुंचे रोहिंग्या को छुपाएगा तो उसे भी वापस भेज दिया जाएगा.
म्यांमार के सरकारी मीडिया के मुताबिक राखिन इलाके में बीते छह हफ्तों से जारी कार्रवाई में अब तक 70 लोग मारे जा चुके हैं और 400 लोग गिरफ्तार किये गए हैं. राखिन में बॉर्डर पुलिस की एक चौकी पर हुए हमले के बाद सैन्य कार्रवाई शुरू हुई. सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मृतकों की संख्या कहीं ज्यादा होने का अंदेशा जताया है.
कहां कहां हैं बच्चों के हाथों में बंदूकें
दुनिया के अलग अलग हिस्सों में जारी संघर्षों में बच्चे न सिर्फ पिस रहे हैं, बल्कि उनके हाथों में बंदूकें भी थमाई जा रही हैं. एक नजर उन देशों पर जहां बच्चों को लड़ाई में झोंका जा रहा है.
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अफगानिस्तान
तालिबान और अन्य कई आतंकवादी गुट बच्चों को भर्ती करते रहे हैं और उनके सहारे कई आत्मघाती हमलों को अंजाम भी दे चुके हैं. कई बार अफगान पुलिस पर भी बच्चों को भर्ती करने के आरोप लगते हैं.
तस्वीर: picture alliance/Tone Koene
बर्मा
बर्मा में बरसों से हजारों बच्चों को जबरदस्ती फौज में भर्ती लड़ाई के मोर्चे पर भेजने का चलन रहा है. इनमें 11 साल तक के बच्चे भी शामिल होते हैं.
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सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक
इस मध्य अफ्रीकी देश में 12-12 साल के बच्चे विभिन्न विद्रोही गुटों का हिस्सा रहे हैं. लॉर्ड रजिस्टेंस ग्रुप पर बच्चों को इसी मकसद से अगवा करने के आरोप लगते हैं.
तस्वीर: UNICEF/NYHQ2012-0881/Sokol
चाड
यहां विद्रोही ही नहीं बल्कि सरकारों बलों में भी बच्चों को भर्ती किया जाता रहा है. 2011 में सरकार ने सेना में बच्चों को भर्ती न करने का एक समझौता किया था.
तस्वीर: UNICEF/NYHQ2010-1152/Asselin
कोलंबिया
इस दक्षिण अमेरिकी देश में पिछले दिनों गृहयुद्ध खत्म हो गया. लेकिन उससे पहले फार्क विद्रोही गुट में बड़े पैमाने पर बच्चों को भर्ती किया गया था.
तस्वीर: AP
डेमोक्रेटिक रिपब्लिकन ऑफ कांगो
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि एक समय तो इस देश में तीस हजार लड़के लड़कियां विभिन्न गुटों की तरफ से लड़ रहे थे. कई बार तो लड़कियों को यौन गुलाम की तरह इस्तेमाल किया जाता है.
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भारत
छत्तीसगढ़ जैसे नक्सल प्रभावित इलाकों में कई बच्चों के हाथों में बंदूक थमा दी जाती है. कई बार सुरक्षा बलों से मुठभेड़ों मे बच्चे भी मारे जाते हैं.
तस्वीर: AP
इराक
अल कायदा बच्चों को लड़ाके ही नहीं, बल्कि जासूसों के तौर पर भी भर्ती करता रहा है. कई बार सुरक्षा बलों पर होने वाले आत्मघाती हमलों को बच्चों ने अंजाम दिया है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
सोमालिया
कट्टरपंथी गुट अल शबाब 10 साल तक के बच्चों को जबरदस्ती भर्ती करता रहा है. उन्हें अकसर घरों और स्कूलों से अगवा कर लिया जाता है. कुछ सोमाली सुरक्षा बलों में भी बच्चों को भर्ती किए जाने के मामले सामने आए हैं.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/Abdi Warsameh
दक्षिणी सूडान
2011 में दक्षिणी सूडान के अलग देश बनने के बाद वहां की सरकार ने कहा था कि अब बच्चों को सैनिक के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाएगा, लेकिन कई विद्रोही गुटों में अब भी बच्चे हैं.
तस्वीर: DW/A. Stahl
सूडान
सूडान के दारफूर में दर्जनों हथियारबंद गुटों पर बच्चों को भर्ती करने के आरोप लगते हैं. इनमें सरकार समर्थक और विरोधी, दोनों ही तरह के मिलिशिया गुट शामिल है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S.Bor
यमन
यमन में अरब क्रांति से पहले 14 साल तक के बच्चों को सरकारी बलों में भर्ती किया गया था. हूथी विद्रोहियों के लड़ाकों में भी ऐसे बच्चे शामिल हैं जिनके हाथों में बंदूक हैं.