1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

लूटी हुई चीजें 'लौटाना चाहते हैं' जर्मन म्यूजियम

२७ दिसम्बर २०१८

उपनिवेश काल में लूटी हुई चीजें वापस अफ्रीका को लौटाने की फ्रांस की योजना के सामने आने के बाद अब जर्मनी के कुछ म्यूजियम भी उसी राह पर चल पड़े हैं. लेकिन क्या इससे अपराधबोध कम होगा?

Überseemuseum Bremen  Ndzodo Awono Pfeile Kamerun
तस्वीर: picture alliance/dpa/C. Jaspersen

एक यूनिवर्सिटी प्रोफेसर और एंथ्रोपोलोजिस्ट वाइब्के आहरंट विशेषज्ञों की उस टीम का नेतृत्व कर रही हैं, जो लूट का सामान लौटाने के बारे में दिशा निर्देश तैयार कर रही है. सवाल है कि जर्मन संग्रहालय औपनिवेशिक दौर की विरासत को कैसे संभाल कर रखें. वह 2002 से जर्मन शहर ब्रेमेन के ऊबरजे म्यूजियम की निदेशक भी हैं.

क्या पश्चिमी देशों के संग्रहालयों में रखी चीजें अफ्रीका से लूट कर लगाई गई हैं? अगर हां, तो क्या उन्हें अब लौटाने का समय आ गया है? क्या ऐसा करने से अपराधबोध कम होगा? ऐसे ही सवालों पर डीडब्ल्यू ने आहरंट से बात की और इस मुद्दे से जुड़े पहलुओं की समझने की कोशिश की. पढ़िए इस बातचीत के मुख्य अंश:

जब आप अफ्रीकी संस्कृति के बारे में सोचती हैं तो क्या आपको अपराधबोध होता है?

बिल्कुल होता है. लेकिन इसमें जिम्मेदारी वाली भावना ज्यादा है. हमारे म्यूजियम के संग्रह का एक बड़ा हिस्सा यूरोप के औपनिवेशक दौर से जुड़ा है. वह यूरोपीय और जर्मन इतिहास का गौरवशाली अध्याय नहीं था. हम इसकी जिम्मेदारी लेते हैं.

एंथ्रोपोलोजिस्ट वाइब्के आहरंट शोध की जरूरत पर जोर देती हैंतस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Scholz

क्या उपनिवेशवाद ने अफ्रीका की संस्कृति और पहचान को चुराया था?

निश्चित तौर पर अफ्रीका में सब संग्रहालयों के पास इस तरह का समृद्ध संग्रह नहीं है, जिस तरह का हमारे पास है. अफ्रीकी संस्कृति से जुड़ी बहुत सारी चीजें कई तरीकों से पश्चिमी देशों के संग्रहालयों में पहुंची हैं.

आपके संग्रहालय के अफ्रीकी सेक्शन में रखी गई बहुत सी चीजें जर्मनी के पूर्व उपनिवेश कैमरून की हैं. क्या उन्हें कानूनी रूप से खरीदा गया था?

इस विषय पर अभी हम वीडब्ल्यू फाउंडेशन के साथ मिलकर रिसर्च कर रहे हैं. बहुत से पोस्ट-ग्रेजुएट छात्र हमारे कलेक्शन पर शोध कर रहे हैं. कैमरून से जुड़ी चीजों की जिम्मेदारी संभाल रहे पोस्ट ग्रेजुएट छात्र का संबंध भी कैमरून से है. वह इस समय कैमरून की यात्रा पर है, जहां वह उसी इलाके के लोगों से बात करेगा जहां से ये चीजें आई हैं. वहां के राजवंशों के सदस्यों से भी बात होगी ताकि पता लगाया जा सके कि ये चीजें कैमरून से ब्रेमेन कैसे पहुंचीं होंगी. क्या हम कुछ चीजों को अलग तरह से पेश करें या फिर उन्हें वापस लौटा दें?

तो आप मेरे सवाल का जवाब 'हां' में नहीं दे सकतीं?

इसके लिए रिसर्च करनी होगी. हमारे एक कलेक्शन की जहां तक बात है, तो हम जानते हैं कि उसे जमा करने वाला एक सैनिक था. हो सकता है कि उसे जबरदस्ती वहां तैनात किया गया और इस दौरान उसने इन चीजों को जमा किया हो. तो ये सब वे मुद्दे हैं जिन पर अभी हम रिसर्च कर रहे हैं.

पेरिस के एक म्यूजियम में रखी हुई बुरूंडी से आई कलाकृतियांतस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Glaubitz

क्या हम यह पता लगाने की स्थिति में है कि उस वक्त इन चीजों को कानूनी रूप से खरीदा गया होगा?

दरअसल यह बहुत ही मुश्किल है. यह पता लगाना कठिन होता है कि चीज आई कहां से है. अकसर हमारे पास नाम के अलावा कुछ और नहीं होता. फिर हमें उस चीज पर रिसर्च करनी होती है, ताकि पता लगा सकें कि वह है क्या, देश के किस हिस्से से आई है और उसका क्या महत्व था. इसके लिए आपको स्थानीय लोगों की जरूरत होती है, ताकि हम जान सकें कि यह चीज उन्होंने अपनी इच्छा से दी है या फिर उनकी इच्छा पूछी ही नहीं गई.

क्या जर्मन सरकार नैतिक आधार पर या फिर अपनी जिम्मेदारी समझते हुए इन कलाकृतियों को वापस लौटाने का इरादा रखती है?

अब बहुत कुछ बदल गया है. जर्मनी के औपनिवेशिक अतीत पर कई साल से जर्मनी में चर्चा हो रही है. यह मुद्दा जर्मनी में गठबंधन सरकार के गठन की डील में भी शामिल था. चीजें हो रही हैं. इन चीजों को लौटाने की इच्छा है. हम महसूस करते हैं कि यह चीजें हमारे कलेक्शन में नहीं होनी चाहिए. अगर वे देश इन्हें यहां रखना चाहते हैं, जिन देशों से ये चीजें आई हैं, तो बात दूसरी है. लेकिन मुझे नहीं लगता कि कलाकृतियों को लौटाने से अपराधबोध कम हो जाएगा. इससे चीजें भला कैसे बेहतर हो सकती हैं?

इंटरव्यू: श्टेफान डेगे

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें