भारत में बलात्कार के मामलों पर व्यापक बहस और सख्त कानूनों के बावजूद रेप के मामले कम नहीं हो रहे. सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए सेल फोन में पैनिक बटन लगाने का फैसला लिया है.
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भारत में 2015 के दौरान रेप के 32 हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए गए. यह आंकड़ा सरकारी है. इन आंकड़ों से साफ है कि दिसंबर 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद सरकार के तमाम दावों और कानूनों में संशोधन के बावजूद तस्वीर का रुख ज्यादा नहीं बदला है. अब रेप के बढ़ते मामलों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने तमाम मोबाइल फोन निर्माताओं को अगले साल जनवरी से मोबाइल सेट में एक पैनिक बटन लगाने का निर्देश दिया है ताकि मुसीबत में फंसी महिलाएं मदद की गुहार लगा सकें.
सरकारीआंकड़ा
सरकार ने कहा है कि 2015 के दौरान पूरे देश में रेप के 32,077 मामले दर्ज किए गए. इनमें से लगभग 17 सौ मामले गैंगरेप के थे. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हरिभाई पारथीभाई चौधरी ने नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के हवाले राज्यसभा में ये जानकारी दी. यह आंकड़ा उन मामलों पर आधारित है जो पुलिस तक पहुंचे. लेकिन भारत में अब भी लोक-लाज, सामाजिक दबाव और अभियुक्तों की दबंगई के चलते आधे से ज्यादा मामले पुलिस तक नहीं पहुंच पाते.
खासकर ग्रामीण इलाकों में बहुत कम मामलों में ही रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है. ऐसे में असली स्थिति का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है. यह हालत तब है कि जबकि दिसंबर, 2012 में दिल्ली में एक छात्रा के साथ चलती बस में गैंगरेप की घटना ने पूरी दुनिया में सुर्खियां बटोरी थीं. उसके बाद सरकार ने कानून में कई संशोधन किए. लेकिन बावजूद उसके ऐसे मामले लगातार बढ़ रहे हैं.
निर्भया कांड के बाद बढ़े सुरक्षा उपायों के बावजूद आखिर रेप के मामले घटने की बजाय बढ़ क्यों रहे हैं? गैर-सरकारी संगठनों का कहना है कि देश की जटिल न्याय प्रणाली की वजह से लंबे खिंचते मामले और ज्यादातर मामलों में सबूतों के अभाव में अभियुक्तों का बरी हो जाना इसकी प्रमुख वजह है. रेप के मामलों में अभियुक्तों को सजा मिलने का राष्ट्रीय औसत 28 फीसदी है लेकिन राजधानी दिल्ली में यह दर महज 17 फीसदी है. इससे अपराधियों के हौसले बुलंद रहते हैं. पूर्व एडिशनल सॉलीसिटर जनरल इंदिरा जयसिंग कहती हैं, "ऐसे मामलों की पुलिसिया जांच ठीक से नहीं होना पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाने की सबसे बड़ी वजह है. जांच के दौरान हुई खामियों के चलते अभियुक्त अक्सर अदालत से बेदाग छूट जाते हैं."
पैनिकबटन
रेप के बढ़ते मामलों को ध्यान में रख कर केंद्र सरकार ने अब मोबाइल निर्माताओं को भारत में बिकने वाले मोबाइल फोनों में पैनिक बटन लगाने का निर्देश दिया है. यह नियम अगले साल जनवरी से लागू होगा. केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री रविशंकर प्रसाद बताते हैं, "कम कीमत वाले फोन में पांच या नौ का बटन और स्मार्टफोन में तीन बार पावर बटन दबाकर पैनिक बटन को सक्रिय किया जा सकता है. इससे पीड़िता के परिजनों, मित्र या पुलिस को संकेत मिल जाएगा." सुरक्षा को और अचूक बनाने के लिए 2018 से सभी मोबाइल सेट्स में जीपीएस होना भी अनिवार्य होगा ताकि जगह का पता लगाया जा सके.
इससे पहले भी स्मार्टफोन में मुसीबत के समय सहायता के लिए कुछ नए एप्स लगाए गए थे. लेकिन केंद्रीय महिला व बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी का कहना था कि एक पैनिक बटन से महिलाओं को काफी सहूलियत होगी. सरकार की दलील है कि मुसीबत की घड़ी में महिला के पास मदद की गुहार लगाने के लिए एक या दो सेकेंड से ज्यादा समय नहीं होता. ऐसे में पैनिक बटन ही बेहतर विकल्प है. मेनका कहती हैं, "मोबाइल में पैनिक बटन होने की स्थिति में देश में महिला सुरक्षा का परिदृश्य काफी बदल जाएगा. इससे जहां महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस करेंगी वहीं अपराधी भी किसी महिला पर हमला करने से पहले कई बार सोचेंगे." सरकार ने पूरे देश के लिए एक सेंट्रलाइज्ड इमरजेंसी काल सिस्टम शुरू करने का भी फैसला किया है. यह नया नेशनल इमरजेंसी नंबर (112) निकट भविष्य में काम करने लगेगा.
क्यों होते हैं बलात्कार?
भारत में रोजाना औसतन 92 महिलाओं का बलात्कार होता है. जब भी किसी महिला के साथ यह जघन्य अपराध होता है, कभी सवाल उसके कपड़ों तो कभी देर रात घर से बाहर रहने पर उठाए जाते हैं. क्या महिलाओं पर बंदिशें लगाना ही है उपाय?
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तन ढकने की जरूरत
मानव सभ्यता की शुरुआत से ही मौसम की मार से बचने के लिए शरीर को ढकने की जरूरत महसूस की गई. बीतते समय के साथ जानवरों की छाल पहनने से लेकर आज इतने तरह के कपड़े मौजूद हैं. जीवनशैली के आसान होने के साथ साथ कपड़ों के ढंग भी बदले हैं और अब यह अवसर, माहौल, पसंद और फैशन के हिसाब से पहने जाते हैं. फिर पूरे बदन को ढकने वाले कपड़ों पर जोर क्यों?
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अंग प्रदर्शन यानि बलात्कारियों को न्यौता
भारत में बलात्कार के ज्यादातर मामलों में पाया गया है कि पीड़िता ने सलवार कमीज और साड़ी जैसे भारतीय कपड़े पहने हुए थे. उनपर हमला करने वाले पुरुषों ने अपनी सेक्स की भूख के कारण संतुलन खो दिया. ऑनर किलिंग के कई मामलों में किसी महिला को सबक सिखाने के मकसद से उस पर जबरन यौन हिंसा की गई और फिर जान से मार डाला गया. इन सबके बीच कपड़ों पर तो किसी का ध्यान नहीं गया.
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कानून का डर नहीं
संयुक्त राष्ट्र ने 2013 में एशिया प्रशांत क्षेत्र में किए अपने सर्वे में पाया गया कि सर्वे में शामिल हर चार में एक पुरुष ने अपने जीवन में कम से कम एक बार किसी महिला का बलात्कार किया है. इनमें से 72 से लेकर 97 फीसदी मामलों में इन पुरुषों को किसी कानूनी कार्यवाई का सामना नहीं करना पड़ा था.
तस्वीर: DW/P.M. Tewari
मनोरंजन का साधन हैं यौन अपराध
उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ इतने ज्यादा यौन अपराधों का कारण प्रदेश की पुलिस ने वहां मोबाइल फोनों के बढ़ते इस्तेमाल, पश्चिमी देशों के बुरे असर और छोटे कपड़ों को ठहराया. लोगों को सुरक्षा देने की अपनी जिम्मेदारी में पूरी तरह विफल पुलिस का कहना है कि मनोरंजन के बहुत कम साधन होने के कारण पुरुष यौन अपराधों को अंजाम देने लगते हैं.
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महिलाओं से मिल रही है चुनौती
सड़कों, ऑफिसों या किसी सार्वजनिक स्थान पर कई बार महिलाओं के कपड़े नहीं बल्कि उनके चेहरे से झलकता आत्मविश्वास, स्वच्छंद रवैया और अब तक पुरुषों के कब्जे में रहे कई क्षेत्रों में उनकी पहुंच कई पुरुषों को बौखला रही है. सदियों से स्थापित पुरुषसत्तात्मक समाज के समर्थक ऐसी औरतों को सामाजिक संतुलन को बिगाड़ने का जिम्मेदार मानते हैं और यौन हिंसा कर उन्हें समाज में उनकी सही जगह दिखाने की कोशिश करते हैं.
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महिलाओं को ज्यादा बड़ा खतरा किससे
दुनिया के सबसे युवा देश में आज बलात्कार महिलाओं के खिलाफ चौथा सबसे बड़ा अपराध बन चुका है. नेशनल क्राइम ब्यूरो की 2013 रिपोर्ट बताती है कि साल दर साल दर्ज होने वाले इन करीब 98 फीसदी मामलों में बलात्कारी पीड़ित का जानने वाला था. ज्यादातर मामले जो प्रकाश में आते हैं वे सार्वजनिक जगहों पर अनजान लोगों द्वारा किए गए होते हैं जिस कारण इस सच्चाई पर ध्यान नहीं जाता.
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एक कदम आगे, दो कदम पीछे
एक ओर पहले के मुकाबले ज्यादा लड़कियां पढ़लिख रही हैं और कार्यक्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं. दूसरी ओर इस कारण वे शादी और बच्चे देर से पैदा कर रही हैं. भारत में शादी के पहले शारीरिक संबंध बनाने के मामले समाज के लिए असहनीय और खतरा बताए जाते हैं. इस कारण बहुत से युवा पुरुष को अपनी यौन इच्छा पूरी करने का कोई स्वस्थ तरीका नहीं मिलता और कई बार यही यौन हिंसा का कारण बनता है.
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हिंसा का चक्र गर्भ से ही शुरु
भारत में अजन्मे बच्चे की लिंग जांच कर मादा भ्रूण को गर्भ में ही मार देने की घटनाएं आम हैं. जो लड़कियां जन्म ले पाती हैं वे संख्या में इतनी कम हैं कि समाज का संतुलन बिगड़ गया है. स्त्री-पुरुष अनुपात के मामले में भारत 1970 से भी नीचे आ गया है. इसके अलावा बाल विवाह, कम उम्र में मां बनना, प्रसव से जुड़ी मौतें और घरेलू हिंसा के लिए भी क्या छोटे कपड़ों को ही जिम्मेदार मानेंगे.