इन चारों महिलाओं को एमआरकेएच सिंड्रोम था. यह एक आनुवंशिक बीमारी है जो बहुत कम ही देखने को मिलती है. जन्म के दौरान ही योनि या गर्भाशय या फिर दोनों ही पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं. ऐसे में कई महिलाओं को मासिक धर्म नहीं हो पाता और कई अन्य मासिक धर्म होने के बाद भी मां नहीं बन पाती. डॉक्टर ऑपरेशन कर इलाज करने की कोशिश जरूर करते हैं ताकि गर्भधारण किया जा सके. लेकिन पहली बार वेक फॉरेस्ट इंस्टीट्यूट फॉर रीजनरेटिव मेडिसिन के डॉक्टर नई योनि बनाने में कामयाब हो पाए हैं.
नॉर्थ कैरोलाइना के इस इंस्टीट्यूट में जिस वक्त ऐसा किया गया, इन चारों की उम्र 13 से 18 साल के बीच थी. डॉक्टरों ने उन्हीं की कोशिकाएं ले कर लैब में योनि बनाई. फिर ऑपरेशन कर उन्हें शरीर में लगाया गया. ये ऑपरेशन 2005 से 2008 के बीच हुए. इसके बाद डॉक्टरों का काम इस बात पर नजर रखना था कि क्या योनी सामान्य रूप से काम कर पा रही हैं. अब डॉक्टरों ने इस बात की पुष्टि की है कि सालों पहले किया गया प्रयोग सफल रहा. लैब में बनी योनि और महिलाओं की कोशिकाओं में कोई फर्क नहीं देखा जा सकता. वक्त के साथ योनि का विकास सामान्य रूप से हो गया और उन्हें संभोग में भी कोई परेशानी नहीं हो रही है.
इनमें से दो महिलाओं के पास गर्भाशय था और योनि नहीं. इन दोनों को अब सामान्य रूप से मासिक धर्म हो रहा है. हालांकि अभी तक यह साफ नहीं है कि क्या वे मां बन पाएंगी. पर वेक इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉक्टर एंटनी अटाला का कहना है कि मासिक धर्म का मतलब है कि उनके अंडाशय में कोई गड़बड़ी नहीं है, इसलिए उन्हें कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए.
स्तन कैंसर को जीवनशैली से जोड़ कर देखा जाता है, जबकि सिगरेट शराब से इसका कोई लेना देना नहीं है.
तस्वीर: AFP/Getty Imagesपश्चिमी देशों में स्तन कैंसर तेजी से फैल रहा है. हर 8 में से 1 महिला को ब्रेस्ट कैंसर है. हालांकि भारत में अभी हर 22 में से एक महिला में ही यह पाया गया है, लेकिन आंकडें बढ़ रहे हैं
तस्वीर: picture alliance/CHROMORANGEएंजेलीना जोली ने स्तन कैंसर के खतरे से खुद को बचाने के लिए एक ऐसा कदम उठाया है जिसे लेने से पहले कोई भी महिला बार बार सोचेगी. अपने स्तन हटवा कर एंजेलीना दुनिया भर में महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गयी हैं.
तस्वीर: Getty Images/Oli Scarffस्तन कैंसर के बारे में पता लगने में अक्सर देर हो जाती है और इसीलिए इलाज करना भी मुश्किल हो जाता है. लेकिन मैग्नेट रेसोनेंस मैमोग्राफी या एमआरएम की मदद से वक्त रहते इस कैंसर की पहचान की जा सकती है.
तस्वीर: picture-alliance/ dpaएमआरएम एक्सरे से अलग और कई गुना ज्यादा प्रभावशाली होता है. इसमें कॉन्ट्रास्ट का इस्तेमाल किया जाता है. काले बैकग्राउंड पर सफेद रंग का ट्यूमर साफ नजर आ जाता है, जबकि एक्स रे में सब धुंधला सा होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaअब तक स्तन कैंसर के मामले में ऑपरेशन कर ट्यूमर को हटाया जाता है. वैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं कि जल्द ही ऐसी तकनीक का इस्तेमाल हो सके जिसमें लेजर किरणों की मदद से बिना किसी चीर काट के ट्यूमर को नष्ट किया जा सके.
तस्वीर: picture-alliance/dpaयदि परिवार में मां या बहन को यह हुआ हो तो इसका खतरा ज्यादा रहता है. ऐसे मामलों में कई बार डॉक्टर एहतियातन स्तन हटा कर ब्रेस्ट इम्प्लांट करवा लेने की सलाह देते हैं.
तस्वीर: dapdसाल 2012 में फ्रांस की कंपनी पीआईपी के ब्रेस्ट इम्प्लांट में सस्ते सिलिकॉन के इस्तेमाल की खबर आई. घटिया सिलिकॉन से स्तन कैंसर हो सकता है. इस कारण यूरोप भर में कई महिलाओं को इन्हें हटवाना पड़ा.
तस्वीर: picture-alliance/dpaजानकारों की सलाह है कि महिलाएं अपनी सेहत को ले कर खुद सचेत रहे. अपनी जांच कर पता करें कि किसी तरह की गांठ तो नहीं बनी है और थोड़ा भी शक होने पर डॉक्टर के पास जाएं.
तस्वीर: Fotolia/Forgiss30 साल की उम्र के बाद महिलाओं को नियमित रूप से अपनी जांच करानी चाहिए. साल में एक बार पूरा चेक अप कराएं ताकि डॉक्टर वक्त रहते स्तन कैंसर जैसे खतरों को भांप सके.
तस्वीर: APऐसा नहीं है कि स्तन कैंसर से केवल महिलाएं ही प्रभावित होती हैं. हालांकि पुरुषों में इसकी संख्या बहुत कम है. भारत में 1,200 पुरुषों पर स्तन कैंसर की जांच में आठ में ही यह पाया गया.
तस्वीर: Benny Weber/Fotoliaअमेरिका की मशहूर अभिनेत्री सिंथिया निक्सन भी स्तन कैंसर से गुजरीं पर उन्होंने अपने करियर पर इसका कोई असर नहीं पड़ने दिया.
तस्वीर: AFP/Getty Images अटाला ने बताया कि इस तरह के मामले उनके पास अधिकतर तभी आते हैं जब लड़कियां किशोरावस्था में पहुंचती हैं, "योनि के अभाव में उन्हें रक्त स्त्राव नहीं होता, गर्भाशय में एंडोमेट्रियम की लेयर टूटने से मासिक स्राव होता है. लेकिन इसके बाहर निकलने का रास्ता ही नहीं होता, तो वह जम जाता है. इसलिए पेट में दर्द होने लगता है." दर्द की शिकायत के साथ जब मरीज डॉक्टर के पास पहुंचते हैं, तब उन्हें पहली बार अपनी हालत का पता चलता है.
इस से पहले अटाला की टीम को पुरुषों में मूत्राशय और मूत्रमार्ग बनाने में भी सफलता मिल चुकी है. उस समय भी उन्होंने मरीजों की ही कोशिकाओं का इस्तेमाल किया था.
आईबी/एएम (रॉयटर्स)