देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से लगातार घर में रहने के कारण बच्चों में चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है. वे बात-बात पर गुस्सा जता रहे हैं.
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बाल रोग विशेषज्ञों और मनोचिकित्सकों के पास हाल के दिनों में ऐसे मामले लगातार बढ़ रहे हैं. इससे परेशान अभिभावक पश्चिम बंगाल बाल अधिकार सुरक्षा आयोग की हेल्पलाइन पर लगातार फोन कर रहे हैं. आयोग के काउंसेलरों ने कई बच्चों और किशोरों की काउंसेलिंग की है. देश के बाकी हिस्सों में भी यही स्थिति है. अब लॉकडाउन बढ़ने की स्थिति में समस्या और गंभीर होने का अंदेशा है.
14 साल का अनिकेत बीते सप्ताह एक दिन अचानक अपने माता-पिता पर चिल्लाने लगा. मानसिक तौर पर एकदम स्वस्थ अपने इकलौते बेटे का यह रूप देख कर वे दोनों घबरा गए. लेकिन लॉकडाउन की वजह से तत्काल डॉक्टर के पास जाना संभव नहीं था. इसलिए अनिकेत के पिता सौरभ ने राज्य बाल अधिकार सुरक्षा आयोग के हेल्पलाइन नंबर पर फोन कर अपनी समस्या बताई. वहां से फोन पर ही दो दिनों तक लगभग आधे-आधे घंटे की काउंसेलिंग के बाद अब अनिकेत कुछ हद तक शांत है.
15 साल की मोमिता तो हर बात पर नाराज हो जाती है. मां की हर बात उसे कड़वी लगने लगी है. उसकी मां जूही बताती हैं, "मेरी बेटी पहले काफी सौम्य और शांत थी. लेकिन बीते 8-10 दिनों से उसका रवैया कुछ अजीब हो गया है. वह हर बात में मुंह फूला लेती है. पसंद का खाना नहीं बना तो नाराज, पढ़ने या खेलने के लिए बोलने पर भी वह नाराज हो जाती है.”
यह समस्या सिर्फ अनिकेत और मोमिता की नहीं है. बीते 20 दिनों से जारी लॉकडाउन की वजह से स्कूल और मोहल्ले के पार्क में आवाजाही बंद होने से लाखों बच्चे और उनके माता-पिता इसी हालत से गुजर रहे हैं. भारत में बच्चों की आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा है. मोटे अनुमान के मुताबिक देश में 47 करोड़ से ज्यादा बच्चे हैं. ऐसे में उनकी और उन के घरवालों की समस्या की गंभीरता समझी जा सकती है. खासकर शहरों में एकल परिवारों में यह समस्या और गंभीर होती जा रही है. यही वजह है कि पश्चिम बंगाल बाल अधिकार सुरक्षा आयोग समेत बच्चों के हित में काम करने वाली तमाम संस्थाओं की हेल्पलाइन पर रोजाना आने वाले फोन की तादाद लगातार बढ़ती ही जा रही है.
लॉकडाउन लागू करने के लिए क्या क्या करना पड़ रहा है?
लोगों से घरों में रहने की तमाम अपीलों के बावजूद दुनिया भर के देशों में कुछ लोग बेमतलब बाहर निकल ही पड़ते हैं. देखिए ऐसे लोगों से कैसे निपट रहे हैं कई देश.
तस्वीर: Reuters/P. Ravikumar
ढाका (बांग्लादेश)
लॉकडाउन के दौरान यूं ही बाहर निकले इस शख्स को ढाका की पुलिस ने कान पकड़वा कर उठक-बैठक कराई.
तस्वीर: DW/H. U. R. Swapan
काठमांडू (नेपाल)
नेपाल की राजधानी में पुलिस एक लंबे डंडे का सहारा लेकर लॉकडाउन तोड़ने वालों को धकेलती नजर आई. दो लोगों के बीच दूरी बरकरार रखने के लिए लंबे डंडे का सहारा लिया जा रहा है. (29 मार्च 2020)
तस्वीर: Reuters/N. Chitrakar
चेन्नई (भारत)
लॉकडाउन तोड़ने वाले स्थानीय लोगों को दक्षिण भारतीय महानगर चेन्नई में पुलिस ने उठक-बैठक करवाई. (एक अप्रैल)
तस्वीर: Reuters/P. Ravikumar
बैंकॉक (थाईलैंड)
प्रोटेक्टिव मास्क से लेस थाईलैंड के पुलिसकर्मी सड़कों पर निकलने वाले लोगों को यूं रोक रहे हैं. (3 अप्रैल)
तस्वीर: Reuters/J. Silva
अहमदाबाद (भारत)
गुजरात के सबसे बड़े शहर अहमदाबाद में रैपिड एक्शन फोर्स के जवान घूम घूम कर लोगों से घर के भीतर रहने की अपील कर रहे हैं. (एक अप्रैल)
तस्वीर: Reuters/A. Dave
मोगादिशू (सोमालिया)
राजधानी मोगादिशू के लिदो बीच पर पुलिस के जवान लोगों को समंदर में नहाने से रोकने की कोशिश करते हुए. (3 अप्रैल)
तस्वीर: Reuters/F. Omar
ब्राइटन (ब्रिटेन)
लॉकडाउन के बावजूद समंदर किनारे पहुंचे इस शख्स को पुलिस कम्युनिटी अफसर ने घर जाने को कहा. (4 अप्रैल)
तस्वीर: Reuters/P. Cziborra
येरूशलम (इस्राएल)
आंशिक तालाबंदी के उल्लंघन के आरोप में इस्राएल पुलिस ने एक अति रूढ़िवादी यहूदी शख्स को हिरासत में ले लिया. (30 मार्च)
तस्वीर: Reuters/R. Zvulun
ग्वाटेमाला सिटी (ग्वाटेमाला)
हाथों में हथकड़ी के साथ ग्वाटेमाला की पुलिस कर्फ्यू तोड़ने वालों को अपने साथ ले जाती हुई. (3अप्रैल)
तस्वीर: Reuters/L. Echeverria
लॉस एजेंलेस (अमेरिका)
यूनियन स्टेशन की तरफ जाते लोगों के कागजों की जांच करती लॉस एजेंलेस पुलिस. सही कागजों के साथ ही यूनियन स्टेशन की तरफ जाने की इजाजत है. (4 अप्रैल)
तस्वीर: Reuters/K. Grillot
मॉस्को (रूस)
आंशिक लॉकडाउन के बाद रेड स्वेयर को लोगों के लिए बंद कर दिया गया है. (31 मार्च)
तस्वीर: Reuters/M. Shemetov
रियो दे जेनेरो (ब्राजील)
लॉकडाउन के बावजूद समंर में घुसे लोगों को पुलिस ने बाहर निकाल कर घर भेज दिया. (28 मार्च)
तस्वीर: Reuters/L. Landau
केप टाउन के पास (दक्षिण अफ्रीका)
दक्षिण अफ्रीका की तीन राजधानियों में से एक केप टाउन के बाहरी इलाके में सैनिक गश्त लगाकर देशव्यापी लॉकडाउन का पालन करवा रहे हैं. (27 मार्च)
तस्वीर: Reuters/M. Hutchings
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आयोग ने भी बच्चों की मानसिक स्थिति में आने वाले इस बदलाव पर चिंता जताते हुए कहा है कि लॉकडाउन और बढ़ने की वजह से हालात अभी और बिगड़ सकते हैं. आयोग की अध्यक्ष अनन्या चक्रवर्ती और काउंसेलर यशवंती श्रीमानी इस विषय को गंभीरता से ले रही हैं. यशवंती कहती हैं, "आजकल खासकर किशोर अपने घर में कुछ समय अकेले अपनी मर्जी के मुताबिक समय बिताना पसंद करते हैं. कुछ को अपने दोस्तों के साथ खेलना और गप्पें लड़ाना पंसद है. लेकिन लॉकडाउन की वजह से मां-बाप के हमेशा घर में रहने की वजह से यह सब बंद हो गया है.” वे कहती हैं कि ज्यादातर मां-बाप बेवजह ही बच्चों पर निगाह रखने के लिए उनके कमरों में जाते रहते हैं और हर बात में टोका-टोकी करते रहते हैं. इससे खास कर किशोर उम्र के लड़के-लड़कियों पर दबाव बढ़ रहा है. नतीजतन उनमें चिड़चिडापन पैदा हो रहा है. यह चिड़चिड़ापन बेवजह नाराजगी के तौर पर सामने आ रहा है.
मनोचिकित्सकों का कहना है कि इस समय कई माता-पिता घर से ही दफ्तर का काम भी कर रहे हैं. ऐसे में उनको घर और दफ्तर के काम के बीच संतुलन बनाना पड़ रहा है. इससे उनके दिमाग पर भी अतिरिक्त दबाव पैदा हो रहा है. इस वजह से ज्यादातर लोग बात-बेबात बच्चों को झिड़क देते हैं. इससे बच्चों पर दबाव पड़ता है. मनोचिकित्सक डॉक्टर सुब्रत लाहिड़ी मौजूदा हालात के लिए सिर्फ मां-बाप को ही दोषी नहीं मानते. वह कहते हैं, "अभिभावकों के सामने भविष्य की चिंता भी है. इतने लंबे लॉकडाउन से नौकरियां सुरक्षित रहेंगी या नहीं? और अगर रहीं भी तो कब तक? इसके अलावा ज्यादातर निजी कंपनियों ने वेतन में कटौती करने या दफ्तर बंद रहने के दौरान वेतन नहीं देने का भी एलान किया है. इस वजह से भी मां-बाप तनाव में रहते हैं.”
बाल अधिकार सुरक्षा आयोग की अध्यक्ष अनन्या कहती हैं, "हालात बेहद जटिल हैं और ऐसे में न चाहते हुए भी कई बार अप्रिय स्थिति पैदा हो जाती है. आयोग ने पहले ही अनुमान लगाया था कि लॉकडाउन का बच्चों के स्वभाव पर प्रतिकूल असर होगा. इसलिए हमने पहले ही हेल्पलाइन नंबर चालू करने का फैसला किया था.” वे बताती हैं कि इस हेल्पलाइन के जरिए मानसिक रोग विशेषज्ञों, मनोवैज्ञानिकों ओर बाल रोग विशेषज्ञों के साथ बच्चों और उनके माता-पिता की कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात कराई जाती है. फिलहाल रोजाना सैकड़ों फोन आ रहे हैं. कई मामलो में बच्चों की काउंसेलिंग भी करनी होती है.
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मानसिक रोग विशेषज्ञों का कहना है कि शहरों में बढ़ते एकल परिवारों की वजह से यह समस्या और जटिल हो गई है. एक विशेषज्ञ डॉक्टर शिवब्रत चौधरी कहते हैं, "बच्चों को अपने जीवन में पहली बार ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है जब वे लगातार 20 दिनों से अपने घरों में बंद हैं. न तो बाहर खेलने जा सकते हैं और न ही स्कूल जा सकते हैं. किसी दोस्त से मुलाकात भी नहीं होती. ऐसे में आखिर बच्चे मोबाइल, कंप्यूटर और टीवी से कब तक मन बहलाएंगे? दरअसल वे हालात से सामंजस्य नहीं बिठा पा रहे हैं. उम्र कम होने की वजह से उनमें परिस्थिति के मुताबिक खुद को ढालने की क्षमता विकसित नहीं हो सकी है.”
क्या इस स्थिति से बचने का कोई रास्ता नहीं है? मानसिक रोग विशेषज्ञ जयशंकर दासगुप्ता कहते हैं, "स्कूलों के बंद होने के बावजूद बच्चों को पहले के रूटीन के मुताबिक ही पढ़ाई करनी चाहिए. मां-बाप स्कूली शिक्षकों की तरह उनको रोजाना होमवर्क दे सकते हैं. इसके अलावा उनको घर के भीतर ही विभिन्न गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए. संभव हो तो समय निकाल कर मां-बाप को भी बच्चों के साथ उनकी ऐसी गतिविधियों में शामिल होना चाहिए. इससे बच्चा अलग-थलग महसूस नहीं करेगा. इसके साथ ही उनको समझाना होगा कि जल्दी ही यह दौर भी बीत जाएगा.”
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के कुछ आवासीय परिसरों में तो वहां रहने वालों ने बच्चों को व्यस्त रखने के लिए एक अनूठा कार्यक्रम शुरू किया है. इसके तहत परिसर के भीतर ही बच्चों से ऑर्गेनिक सब्जियों की खेती कराई जा रही है. इससे बच्चे खेती-किसानी के काम से जुड़ रहे हैं और खुश हैं. शहरी बच्चों के लिए यह एक नया अनुभव है. आठवीं में पढ़ने वाला सौम्यदीप कहता है, "यह काम बहुत अच्छा लग रहा है. इसमें समय कैसे बीत जाता है, पता ही नहीं चलता.” बच्चों की इस व्यस्तता और उनके चेहरे पर खिलने वाली हंसी देख कर वहां रहने वाले लोगों ने राहत की सांस ली है.
ऐसे एक परिसर में रहने वाले आईटी इंजीनियर विकास मंडल बताते हैं, "शुरुआत में हम बच्चों को ले कर काफी परेशान थे. घर से दफ्तर का काम करने की वजह से हम उनको ज्यादा समय नहीं दे पाते थे. लेकिन उसके बाद सबने मिल कर बच्चों को इस काम में लगाने का फैसला किया. अब बच्चे भी खुश हैं और हम भी. बच्चे रोजाना कुछ न कुछ नया सीख रहे हैं.”
कोरोना वायरस के 1 से 11 लाख इंसान तक पहुंचने का सफर
दिसंबर 2019 में कोरोना वायरस के पहले मामले की पुष्टि के बाद अब यह महामारी अब पूरी दुनिया में फैल चुकी है. 60 हजार से ज्यादा लोग मारे गए हैं और 11 लाख से ज्यादा संक्रमित हैं. वैज्ञानिक वैक्सीन की खोज में जुटे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/SOPA Images/A. Marzo
वुहान में न्यूमोनिया जैसा वायरस (31 दिसंबर 2019)
चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को करीब 1.1 करोड़ की आबादी वाली वुहान शहर के लोगों को सांस में दिक्कत का संक्रमण होने की जानकारी दी. मूल वायरस का पता नहीं था लेकिन दुनिया भर के रोग विशेषज्ञ इसकी पहचान करने में जुट गए. आखिरकार शहर के सीफूड मार्केट से इसके निकलने का पता चला जो तुरंत ही बंद कर दिया गया. शुरुआत में 40 लोगों के इससे संक्रमित होने की रिपोर्ट दी गई.
तस्वीर: Imago Images/UPI Photo/S. Shaver
चीन में पहली मौत (11 जनवरी)
11 जनवरी 2020 को चीन ने कोरोना वायरस के कारण पहले मरीज़ की मौत की घोषणा की. 61 साल का एक शख्स वुहान के बाजार में खरीदारी करने गया था. न्यूमोनिया जैसी समस्या के चलते उसकी मौत हुई. वैज्ञानिकों ने सार्स और आम सर्दी की तरह कोरोना वायरस के परिवार में एक नए वायरस की पहचान की. तब उसे 2019 nCoV नाम दिया गया. इसके लक्षणों में खांसी, बुखार और सांस लेने में तकलीफ शामिल थे..
तस्वीर: Reuters/Str
पड़ोसी देशों में पहुंचा वायरस (20 जनवरी)
बाद के दिनों में यह वायरस थाईलैंड और जापान तक पहुंच गया क्योंकि इन देशों के लोग वुहान के उसी बाजार में गए थे. चीन के उसी शहर में दूसरी मौत की पुष्टि हुई. 20 जनवरी तक चीन में 3 लोगों की मौत हो चुकी थी और 200 से ज्यादा लोग इस वायरस की चपेट में आ चुके थे.
तस्वीर: Reuters/Kim Kyung-Hoon
करोड़ों लोग तालाबंदी में (23 जनवरी)
चीन ने वायरस को फैलने से रोकने के लिए वुहान में 23 जनवरी को तालाबंदी कर दी. सार्वजनिक परिवहन बंद कर दिया गया और संक्रमित लोगों के इलाज के लिए रिकॉर्ड समय में एक नया अस्पताल बना दिया गया. तब तक संक्रमित लोगों की संख्या 830 पर पहुंच चुकी थी. 24 जनवरी तक चीन में मरने वालों की तादाद 26 पर पहुंच गई. अधिकारियों ने 13 और शहरों में तालाबंदी करने का फैसला किया. 3.6 करोड़ से ज्यादा लोग घरों में कैद हो गए.
तस्वीर: AFP/STR
दुनिया के लिए हेल्थ इमर्जेंसी?
चीन से बाहर दक्षिण कोरिया, अमेरिका, नेपाल, थाईलैंड, हांगकांग, सिंगापुर, मलेशिया और ताइवान में नए नए मामले सामने आने लगे. मामले बढ़ रहे थे लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 23 जनवरी को कहा कि इसे दुनिया के लिए सार्वजनिक हेल्थ इमर्जेंसी कहना अभी जल्दबाजी होगी.
तस्वीर: Getty Images/X. Chu
कोरोना वायरस पहुंचा यूरोप (24 जनवरी)
24 जनवरी को फ्रांस के अधिकारियों ने देश की सीमा में कोरोना वायरस के तीन मामलों की पु्ष्टि की. इसके साथ ही कोरोना वायरस यूरोप पहुंच गया. इसके कुछ ही घंटे बाद ऑस्ट्रेलिया ने भी पुष्टि की कि चार लोग सांस पर असर डालने वाले वायरस से संक्रमित हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Mortagne
जर्मनी में पहले मामले की पुष्टि (27 जनवरी)
27 जनवरी को जर्मनी ने कोरोना वायरस के पहले मामले की पुष्टि का एलान किया. बवेरिया राज्य में 33 साल का एक शख्स बाहर से आए चीनी सहकर्मी के साथ ट्रेनिंग के दौरान इस वायरस की चपेट में आया. उसे म्युनिख के अस्पताल में क्वारंटीन कर दिया गया. इसके अगले ही दिन उसके तीन और सहकर्मियों में भी वायरस की पुष्टि हुई. तब तक चीन में मरने वालों की तादाद 132 हो गई थी और दुनिया भर में 6000 लोग संक्रमित हुए थे.
तस्वीर: Reuters/A. Uyanik
डब्ल्यूएचओ ने ग्लोबल हेल्थ इमर्जेंसी घोषित की (30 जनवरी)
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 30 जनवरी को कोरोना वायरस के चलते सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा की और "कमजोर स्वास्थ्य सेवाओं" वाले देशों को बचाने के लिए गुहार लगाई. डब्ल्यूएचओ के महासचिव टेड्रोस अधानोम गेब्रेयेसुस ने तब भी कारोबार और यात्रा प्रतिबंधों का समर्थन नहीं किया. उनका कहना था कि इससे "अनावश्यक व्यवधान" होगा.
तस्वीर: picture-alliance/KEYSTONE/J.-C. Bott
चीन के बाहर पहली मौत (2 फरवरी)
कोरोना वायरस के कारण चीन से बाहर पहली मौत फिलीपींस में 2 फरवरी को ुई. 44 साल का एक शख्स चीन के वुहान से मनीला आया था. यहां आने के बाद वह बीमार हुआ जिसके बाद उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया. बाद में वह न्युमोनिया से मर गया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Aljibe
क्रूज यात्रियों का संकट (3 फरवरी)
3 फरवरी को डायमंड प्रिंसेस क्रूज जहाज को जापान के योकोहामा तट पर क्वारंटीन कर दिया गया क्योंकि जहाज पर सवार यात्रियों में कोरोना के नए मामले सामने आए. 17 फरवरी तक जहाज पर 450 लोग इसकी चपेट में आ गए और चीन से बाहर वायरस संक्रमित लोगों की यह तब सबसे बड़ी जमात बन गयी उसके बाद क्रूज पर सवार 3700 से ज्यादा यात्रियों और चालक दल के सदस्यों को विमान से उनके देश भेजा गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/kyodo
इटली में क्वारंटीन (8 मार्च)
इटली में कोरोना वायरस के मामले और लोगों की मौत की संख्या तेजी से बढ़ने लगी. 3 मार्च तक यहां 1000 से ज्यादा लोग संक्रमित थे और 77 लोगों की जान गई थी. इसके बाद कई देशों ने उत्तरी इटली जाने पर रोक लगा दी और वहां सैलानियों की संख्या एकदम से घट गई. 8 मार्च को पूरे लॉम्बार्डी क्षेत्र को क्वारंटीन कर दिया गया. 10 मार्च को इटली में 168 लोगों की जान गई जो एक दिन में किसी एक देश के लिए सबसे ज्यादा थी.
तस्वीर: Reuters/R. Casilli
आर्थिक चिंता (10 मार्च)
6 मार्च को अमेरिका और यूरोपीय शेयर बाजार औंधे मुंह गिर गए जिससे 2008 के बाद आर्थिक क्षेत्र के लिए सबसे बुरे सप्ताह का आगाज हुआ. पूरे दुनिया के कारोबार पर इसका असर हुआ और कई कंपनियों ने घाटा होने की बात कही. सबसे बुरा असर पर्यटन क्षेत्र और एयरलाइनों पर पड़ा. यूरोपीय संघ ने 7.5 अरब यूरो के राहत फंड का एलान किया ताकि यूरोजोन में मंदी को रोका जा सके.
तस्वीर: picture-alliance/Jiji Press/M. Taguchi
महामारी की घोषणा (11 मार्च)
दुनिया भर में कोरोना वायरस के मामले 1 लाख 27 हजार को पार कर गए तो डब्ल्यूएचओ ने 11 मार्च को इसे महामारी का दर्जा दे दिया. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने यूरोप के शेंगेन इलाके से अमेरिका आने वालों पर पाबंदी लगा दी. जर्मन चांसलर ने कहा कि 70 फीसदी से ज्यादा जर्मन लोग इसकी चपेट में आ सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot
यूरोप में रुका सार्वजनिक जीवन (14 मार्च)
14 मार्च को स्पेन ने इटली की राह पर चलते हुए पूरे देश में तालाबंदी की घोषणा कर दी ताकि वायरस के फैलाव को रोका जा सके. 4.6 करोड़ लोगों को बिना किसी जरूरी काम के घर से बाहर निकलने से रोक दिया गया. फ्रांस में कैफे, रेस्तरां और गैर जरुरी दुकानें 15 मार्च तक के लिए बंद कर दी गईं. जर्मनी में कई सार्वजनिक कार्यक्रम रद्द हो गए और स्कूलों को बंद कर दिया गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AAB. Akbulut
अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर पाबंदियां (15 मार्च)
15 मार्च तक कई देशों ने कई तरह की यात्रा पाबंदियों का एलान कर दिया. न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया ने सभी अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए देश में आने के बाद 14 दिन का क्वारंटीन जरूरी कर दिया. भारत ने भी कई देशों से आने वाले यात्रियों पर इस तरह की पाबंदियां लगाई. अमेरिका ने यूरोपीय देशों के लिए लगाए यात्रा प्रतिबंधों में ब्रिटेन और आयरलैंड को भी शामिल कर दिया.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot
भारत में जनता कर्फ्यू और जर्मनी में आंशिक तालाबंदी (22 मार्च)
भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कहने पर पूरे देश में 22 मार्च को एक दिन के लिए जनता कर्फ्यू लगाया गया. तब तक जर्मनी ने भी देश में आंशिक रूप से तालाबंदी का एलान कर दिया. जर्मनी में एक घर के दो से ज्यादा लोगों को काम की जगह के अलावा कहीं और जमा होने पर रोक लगा दी गई. जर्मनी में बड़ी संख्या में लोग संक्रमित हुए हैं मगर मरने वालों की तादाद काफी कम है.
तस्वीर: picture-alliance/EibnerT. Hahn
ब्रिटेन में भी तालाबंदी (23 मार्च)
23 मार्च को ब्रिटेन लोगों की निजी आजादी पर पाबंदी लगाने वाले देशों में शामिल हुआ जब लोगों को कुछ खास कामों के लिए ही घर से बाहर जाने की छूट देने की घोषणा की गई. प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन खुद कोविड-19 की चपेट में आ गए और साथ ही शाही तख्त के दावेदार प्रिंस चार्ल्स भी. इस बीच यह भी शिकायतें आईं कि लोग सामाजिक दूरी को गंभीरता से नहीं ले रहे.
तस्वीर: picture-alliance/R. Pinney
सबसे बड़ी तालाबंदी (24 मार्च)
कोरोना वायरस के कारण दुनिया की सबसे बड़ी तालाबंदी 24 मार्च को तब शुरू हुई जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश में 21 दिनों के लिए तालाबंदी करने का एलान किया. यह तब तक दुनिया में लगाई गई सबसे बड़ी तालाबंदी थी क्योंकि 130 करोड़ लोग एक झटके में अपने घरों में बंद हो गए.
तस्वीर: Imago/A. Das
अमेरिका कोरोना में सबसे आगे (27 मार्च)
27 मार्च को अमेरिका कोरोना से संक्रमम के मामले में चीन और इटली से भी से आगे निकल गया और सबसे ज्यादा संक्रमित लोगों का देश बन गया. यह तब हुआ जब राष्ट्रपति ट्रंप एलान कर रहे थे कि वो बहुत जल्द देश को कोरोना से मुक्त करा लेंगे. इसके बाद खबर आई कि अमेरिका में 66 लाख लोगों ने बेरोजगारी भत्ते के लिए आवेदन किया है जो एक रिकॉर्ड है.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot/J. Fischer
स्पेन में बढ़ता मौत का आंकड़ा (30 मार्च)
30 मार्च को कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या के मामले में स्पेन ने भी चीन को पीछे छोड़ दिया. यह हालत तब हुई जबकि बहुत पहले ही देश में कठोर तालाबंदी लागू कर दी गई थी. सभी गैर जरूरी कामों को रोक दिया गया. मौत के मामले में स्पेन के आगे सिर्फ इटली है.
तस्वीर: picture-alliance/Geisler-Fotopress
10 लाख से ज्यादा मरीज (2 अप्रैल)
जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी ने गुरुवार को एलान किया कि अब पूरी दुनिया में 10 लाख से ज्यादा कोरोना वायरस के मामले हो गए हैं. अमेरिका फिलहाल सबसे ज्यादा प्रभावित है जहां इटली, चीन और स्पेन के कुल मरीजों से ज्यादा मरीज हैं. यही नहीं एक दिन में सबसे ज्यादा लोगों के मरने का रिकॉर्ड भी अब अमेरिका के नाम हो गया है. गुरुवार से शुक्रवार के बीच यहां 1500 से ज्यादा लोगों की मौत हुई.