दिल्ली के शाहीन बाग में पिछले 101 दिनों से महिलाएं विवादित सीएए के खिलाफ धरने पर बैठी हुई थीं. देश में कोरोना वायरस के बढ़ते मामले और दिल्ली में लॉकडाउन के बाद पुलिस ने धरना स्थल को खाली करा कर तंबू उखाड़ दिया है.
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दिल्ली के शाहीन बाग में पिछले 101 दिनों से जारी विरोध प्रदर्शन को पुलिस ने मंगलवार को हटा दिया. शाहीन बाग में मुख्य रूप से महिलाएं शांतिपूर्ण तरीके से नागरिकता संशोधन कानून (सीएए),राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के खिलाफ विरोध कर रही थीं. वे पिछले 101 दिनों से सरकार से सीएए को वापस लेने की मांग कर रही थीं. पिछले दिनों पुलिस ने कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए उनसे विरोध प्रदर्शन खत्म करने का आग्रह किया था. हालांकि महिलाओं ने पुलिस की बात नहीं मानी और धरने पर डटी रहीं, हालांकि उन्होंने वायरस के संक्रमण से बचने के लिए धरना में शामिल होने वाले प्रदर्शनकारियों की संख्या सीमित जरूर कर दी, एक से दूसरे के बीच की दूरी तय कर दी गई और हैंड सैनेटाइजर और मास्क का इस्तेमाल नियमित रूप से होने लगा था.
24 मार्च की सुबह भारी संख्या में पुलिस बल ने शाहीन बाग के धरना स्थल पर पहुंचकर वहां मौजूद प्रदर्शनकारियों को हटा दिया. एक अधिकारी ने बताया, "बार-बार कहने के बावजूद वे लोग नहीं हट रहे थे. जब उन्होंने हटने से इनकार किया तो उन्हें जबरन वहां से हटा दिया गया." अधिकारी का कहना है कि दिल्ली में धारा 144 लागू होने की वजह से भारी संख्या में लोगों के जमा होने पर प्रतिबंध है. पुलिस ने कुछ लोगों को हिरासत में भी लिया है.
शहर-शहर शाहीन बाग
दिल्ली का गुमनाम इलाका शाहीन बाग महिलाओं के विरोध प्रदर्शन और जज्बे के लिए सुर्खियों में है. कभी सार्वजनिक या राजनीतिक मंच पर ना जाने वाली महिलाएं पिछले एक महीने से इलाके में सीएए और एनआरसी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं.
तस्वीर: DW/M. Javed
शाहीन बाग की महिलाएं
पिछले एक महीने से शाहीन बाग की महिलाएं नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रही हैं. महिलाएं मानती हैं कि नागरिकता कानून से मुसलमानों के साथ भेदभाव होगा और यह संविधान की प्रस्तावना के खिलाफ है.
तस्वीर: DW/M. Javed
पहली बार विरोध प्रदर्शनों में शामिल
शाहीन बाग की कई महिलाओं का कहना है कि वे जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों पर हुई कथित पुलिस ज्यादतियों और नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध जता रही हैं. प्रदर्शन में अधिकतर महिलाएं ऐसी हैं जो कभी इस तरह के प्रदर्शनों में शामिल नहीं हुई हैं. इसमें कॉलेज जाने वाली छात्राओं से लेकर गृहिणियां तक शामिल हैं.
तस्वीर: DW/M. Javed
बच्चे और बूढ़ी औरतें भी बनीं हिस्सा
शाहीन बाग की औरतों की चर्चा देश और विदेश में हो रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि पहली बार इतनी बड़ी संख्या में भारत की मुसलमान महिलाएं अधिकारों की मांग करते हुए विरोध पर बैठी हुई हैं. प्रदर्शन में महिलाएं अपने बच्चों को भी लाती हैं और कई बार घर का काम निपटाने के बाद धरने पर बैठ जाती हैं.
तस्वीर: DW/M. Javed
संविधान के लिए सड़क पर
महिलाओं का कहना है कि वे संविधान को बचाने के लिए सड़क पर उतरी हैं और जब तक यह कानून वापस नहीं हो जाता उनका विरोध प्रदर्शन इसी तरह से जारी रहेगा. महिलाओं का कहना है कि वे हिंदुस्तान से बहुत प्यार करती हैं और धर्म के आधार पर देश में नागरिकता देने का विरोध करती हैं.
तस्वीर: DW/M. Javed
आम महिलाओं का आंदोलन
शाहीन बाग की महिलाओं का आंदोलन पिछले एक महीने से ज्यादा समय से शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है. विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व महिलाएं कर रही हैं और घर के पुरुष उन महिलाओं का समर्थन कर रहे हैं. शाहीन बाग की महिलाओं को समर्थन देने के लिए कला, फिल्म, साहित्य, राजनीति और सामाजिक कार्यकर्ता भी आकर संबोधित कर चुके हैं.
तस्वीर: DW/M. Javed
पंजाब से आए किसान
शाहीन बाग में लगातार लोगों को अन्य जगह से समर्थन मिल रहा है. पंजाब से सैकड़ों की संख्या में लोग शाहीन बाग पहुंचे, इसमें भारतीय किसान यूनियन के सदस्य भी थे. इन लोगों ने धरने पर बैठी महिलाओं के लिए लंगर भी बनाया.
तस्वीर: DW/S. Kumar
दूसरे धर्म के लोगों का समर्थन
शाहीन बाग की महिलाएं दिन और रात, सर्दी और बारिश के बीच 24 घंटे प्रदर्शन कर रही हैं. ऐसे में उन्हें अन्य धर्मों के लोगों का भी समर्थन मिल रहा है. पिछले दिनों सभी धर्मों के लोगों ने मिलकर वहां सर्व धर्म पाठ किया. इसके पहले कई धर्म गुरुओं ने मंच पर आकर संविधान की प्रस्तावना भी पढ़ी और एकता, समानता और शांति का संदेश दिया.
तस्वीर: DW/M. Javed
शाहीन बाग से सीख
पूर्वी दिल्ली के खुरेजी इलाके में भी शाहीन बाग की तर्ज पर महिलाएं विरोध प्रदर्शन कर रही हैं. पहले यहां महिलाएं कम संख्या में प्रदर्शन कर रही थी लेकिन बाद में इसने बड़ा रूप ले लिया. प्रदर्शन में बुजुर्ग महिलाएं भी शामिल हैं और उनका कहना है कि वे इस कानून के खिलाफ सड़क पर आई हैं.
तस्वीर: DW/S. Kumar
कॉलेज की छात्रों का विरोध
दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामजस कॉलेज की छात्राओं ने नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध किया और संविधान की प्रस्तावना पढ़ी. दूसरी ओर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने 'वंदेमातरम्' के नारे लगाए. रामजस कॉलेज की छात्राओं ने सीएए और एनआरसी के खिलाफ यह प्रदर्शन किया.
तस्वीर: DW/S. Kumar
शहर-शहर शाहीन बाग
शाहीन बाग की तर्ज पर ही कोलकाता के पार्क सर्कस में महिलाएं विरोध प्रदर्शन कर रही हैं. यहां की महिलाओं ने दिल्ली के शाहीन बाग की महिलाओं से प्रेरणा लेते हुए विरोध करने के बारे में सोचा और उनका विरोध भी दिन और रात जारी है.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
आंचल बना परचम
दिल्ली और कोलकाता के बाद उत्तर प्रदेश के प्रयागराज की महिलाएं मंसूर अली पार्क पर धरने पर बैठ गई हैं. यह महिलाएं नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रही हैं. हर बीतते दिन के साथ महिलाओं की संख्या भी बढ़ रही हैं. हालांकि पुलिस ने महिलाओं को धारा 144 का हवाला देते हुए वहां से हटने को कहा है लेकिन वह अब तक नहीं हटी हैं.
तस्वीर: DW/A. Ansari
बुलंद होती आवाज
बिहार के गया में भी महिलाओं ने सीएए और एनआरसी के खिलाफ आवाज बुलंद की. महिलाओं के इस तरह से आगे आने से पुरुष भी उन्हें समर्थन दे रहे हैं.
तस्वीर: DW/Rafat Islam
अधिकार के लिए संघर्ष
झारखंड के जमशेदपुर में भी हजारों की संख्या में महिलाओं ने मार्च निकालकर सीएए का विरोध किया और केंद्र सरकार से कानून वापस लेने की मांग की.
तस्वीर: DW/A. Ansari
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शाहीन बाग के प्रदर्शन में शामिल होने वाली फातिमा कहती हैं, "कोरोना वायरस की आड़ लेकर हमारे धरने को खत्म किया गया है. 23 मार्च की शाम मैं भी धरना स्थल पर मौजूद थी, जब पुलिस ने धमकी दी थी कि अगर हम नहीं उठे तो पुलिस उन्हें डंडे मारकर हटाएगी. हमने अनुरोध किया था कि हमें 24 मार्च की सुबह 10 बजे मीटिंग तक का समय दिया जाए, जिसमें अपने धरने को एक-दो हफ्ते आगे बढ़ाने का फैसला कर लेंगे लेकिन उन्होंने हमारी एक नहीं सुनी और सुबह पुलिस ने तोड़ फोड़ कर जुल्म और ज्यादती का प्रदर्शन किया."
दो दिन पहले ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कोरोना वायरस से लड़ने के लिए लॉकडाउन की घोषणा की थी. देश भर में कोरोना वायरस के बढ़ते मामले को देखते हुए सरकारें सजग हैं और वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए अभूतपूर्व कदम उठा रही हैं. एक और प्रदर्शनकारी रिजवां खालिद कहती हैं, "शाहीन बाग प्रशासन की आंखों में पहले से ही खटकता आया है और कोरोना वायरस का बहाना बनाकर विरोध प्रदर्शन को खत्म किया गया. औरतों के साथ इस तरह की ज्यादती नहीं होनी चाहिए थी."
दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया, जाफराबाद, तुर्कमान गेटऔर निजामुद्दीन में भी 100 दिनों से प्रदर्शन चल रहा था, लेकिन अब पुलिस ने महामारी को देखते हुए कड़े आदेश के बाद सभी प्रदर्शन खत्म करा दिए हैं. शाहीन बाग में महिलाएं 15 दिसंबर 2019 से सीएए के खिलाफ प्रदर्शन पर बैठी हुईं थीं और इस कारण दिल्ली और नोएडा को जोड़ने वाला रास्ता बंद हो गया था, मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा और उसके बाद कोर्ट ने दो मध्यस्थ वकील भी नियुक्त किए थे लेकिन मसला हल नहीं हो पाया था.