कोरोना के प्रकोप से बचाने के लिए हुए संपूर्ण लॉकडाउन ने रोज कमाई करके पेट भरने वालों की परेशानियां बढ़ा दी हैं. पंचर बनाने और दिहाड़ी मजदूरी करने वालों को सब्जी बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.
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गांव से शहरों में आकर लाखों लोग दिहाड़ी काम कर किसी तरह से अपना पेट भरते हैं. दिहाड़ी मजदूर, ठेले पर सामान बेचने वाले या फिर रिक्शा चलाने वाले, इन्हें पता ही नहीं होता है कि सरकार इनके हितों के लिए कौन-कौन सी योजनाएं चला रही हैं.
बिहार के गोपालगंज के रहने वाले रामू पिछले 25 साल से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पंचर बनाने का काम करते आए हैं. रामू पंचर बनाकर कभी 300 तो कभी 500 रुपये कमा लेते थे, लेकिन कोरोना की महामरी ने धंधा बंद करा दिया. रामू के साथ उनके मां-बाप और भाई रहते हैं. ऐसे में सबके खाने-पीने का इंतजाम करने के लिए वह ठेले पर सब्जी बेच कर किसी तरह से गुजारा कर रहे हैं. रामू कहते हैं, "इस समय जिस गली में जा रहे हैं, वहां ठेलों की संख्या भी खूब बढ़ गई है, इस वजह से बिक्री भी ना के बराबर है. हम किसी तरह से जीवन चला रहे हैं."
तालाबंदी: जब थम सी गई जिंदगी
भागती-दौड़ती जिंदगी जब अचानक एक वायरस की वजह से थम जाती है तो बहुत अलग अहसास होता है. क्या गांव और क्या शहर, सभी की रफ्तार अचानक थम गई. तस्वीरों के जरिए डालिए एक नजर "कोरोना लॉकडाउन" के असर पर.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
सोशल डिस्टैंसिंग
दिल्ली में बेघरों के कैंप में खाने का इंतजार कर रहे लोगों ने अपनी जगह सफेद गोलाकार में चप्पल रख दी है. बेघरों के लिए सरकार ने खाने और रहने की व्यवस्था की है.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
भोजन और दूरी
भोजन के लिए कतार में लगे लोग सामाजिक दूरी का पालन करते हुए. भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में वायरस को काबू करना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
खाने का इंतजार
कैंपों में रह रहे प्रवासी मजदूर अचानक फंस गए हैं. एक ओर कोरोना का डर तो दूसरी ओर घर वापस न लौट पाने की चिंता. उन्हें लॉकडाउन के खत्म होने का इंतजार है.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
संक्रामक रोगाणु से मुक्ति?
मुंबई की सड़कों को संक्रामक वायरस से मुक्त करने के लिए सफाई कर्मचारी ब्लोअर का इस्तेमाल करते हुए. इस ब्लोअर के जरिए ऐसे केमिकल का इस्तेमाल हो रहा है जिससे वायरस नष्ट हो सके.
तस्वीर: Reuters/F. Mascarenhas
संकट में मिली छत
प्रवासी मजदूर और बेघरों के रहने के लिए दिल्ली के खेल परिसर को अस्थायी रूप से आश्रम में तब्दील कर दिया गया है. यहां लोगों को रहने और खाने-पीने की सुविधा दी जा रही है.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
प्रवासी मजदूरों की चिंता
पिछले दिनों हजारों प्रवासी मजदूर दिल्ली से अपने गांव लौट गए थे. जब लोगों के पैदल ही घर निकल पड़ने पर विवाद बढ़ा तो राज्य सरकार ने उनके रहने और खाने का इंतजाम किया.
तस्वीर: DW/S. Kumar
सुस्त जिंदगी
तालाबंदी की वजह से लोग अपने घरों में ही रह रहे हैं. जिनको जरूरी काम के लिए बाहर नहीं जाना होता है वह इसी तरह से अपनी खिड़की से बाहर देख अपना समय काटते हैं.
तस्वीर: Reuters/F. Mascarenhas
मास्क का साथ
भारत में कोरोना वायरस के फैलाव से बचने के लिए मास्क का इस्तेमाल हो रहा है. चेन्नई में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के दफ्तर में कर्मचारी मास्क बनाते हुए. यह मास्क पुलिसकर्मियों में बांटे जाएंगे.
तस्वीर: Reuters/P. Ravikumar
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लखीमपुर के रामदुलारे लखनऊ में दिहाड़ी मजदूरी करते थे. उनका भी काम बंद है और वह ठेले पर खीरा और फल बेच कर गुजर-बसर कर रहे हैं. वह कहते हैं, "बड़ी मुश्किल से मंडी से फल लाकर बेचने को मिलता है. सब साधन बंद हैं, हम गांव भी नहीं लौट सकते हैं. ऐसे में यहीं पर फल बेचकर अपना पेट पाल रहे हैं."
बलरामपुर के दनकू पान की दुकान चलाते थे. लेकिन इन दिनों वह ठेले पर दूध, ब्रेड और मक्खन बेच रहे हैं, वह कहते हैं कि दुकान बंद है और जिंदा रहने के लिए कुछ ना कुछ तो करना पड़ेगा. जब उनसे सरकारी योजना के लाभ के बारे में पूछा गया तो उन्होंने किसी योजना के बारे में जानकारी होने से इनकार कर दिया.
फुटपाथ और फेरी दुकानदारों को जागरूक करने के लिए काम करने वाले मथुरा प्रसाद कहते हैं, "सरकार की जरूरतमंदों के लिए अनेक योजनाएं चल रही हैं. लेकिन जानकारी के अभाव में इसका फायदा उन्हें नहीं मिल पा रहा है."