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कैसे कट रहे हैं पान-गुटखे के शौकीन लोगों के दिन

समीरात्मज मिश्र
७ अप्रैल २०२०

भारत में पान, गुटखा, पान मसाला, तंबाकू जैसी चीजों का सेवन आम है. उत्तर प्रदेश तो इस मामले में अग्रणी है. ना सिर्फ बड़े पैमाने पर यहां इनकी खपत है बल्कि पान मसाला बनाने वाली ज्यादातर कंपनियां और फैक्ट्रियां भी यहां हैं.

Indien Leben und Kultur in Varanasi
तस्वीर: DW/Onkar Singh Janoti

कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने की जंग के दौरान शुरू हुए लॉकडाउन के तुरंत बाद ही यानी 25 मार्च से ही उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में पान, पान-मसाला और गुटखा बनाने, उसके वितरण और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया. आदेश का उल्लंघन पाए जाने पर तत्काल लाइसेंस निरस्त कर प्रतिष्ठान को बंद कराए जाने के अलावा कठोर विधिक कार्रवाई की बात कही गई है.

इस संबंध में आदेश जारी करते वक्त बताया गया है कि कोविड-19 महामारी का संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है. पान मसाला खाकर थूकने और पान मसाले के पाउच के उपयोग से भी संक्रमण की आशंका रहती है, जिसकी वजह से यह निर्णय लिया गया है. उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार और कुछ अन्य राज्यों में भी इन सब पर प्रतिबंध लगाया गया है.

जहां तक उत्तर प्रदेश का सवाल है तो यहां के कई शहरों में पान मसाले का काफी प्रचलन है, खासकर राजधानी लखनऊ और कानपुर में. दूसरे शहरों में भी लोग पान मसाला बड़े शौक से खाते हैं. साथ ही पान और तंबाकू का भी बड़ी संख्या में लोग शौक रखते हैं. लॉकडाउन होने से एक तो दुकानें बंद हैं और दूसरी ओर तंबाकू उत्पादों और पान मसाले जैसी चीजों के उत्पादन, सेवन और बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध है. ऐसे में इन चीजों के शौकीन लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

तस्वीर: DW/Onkar Singh Janoti

कानपुर में एक वरिष्ठ पत्रकार नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं कि वो पिछले 28 सालों से यानी विद्यार्थी जीवन से ही पान और गुटखा खा रहे हैं. तो क्या अब उन्होंने छोड़ दिया है, इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं, "छोड़ क्यों देंगे? सरकार ने प्रतिबंध लगाया है लेकिन ऐसा थोड़ी न है कि ये चीजें मिल नहीं रही हैं. हां, ब्लैक में मिल रही हैं. दस रुपये की चीज पंद्रह रुपये या बीस रुपये में मिल रही है. लोग खरीद रहे हैं और खा रहे हैं.”

इस तरह की बातें करने वाले कई और लोग भी हैं. नोएडा के सेक्टर 50 में रहने वाले दीपक सिंह मूल रूप से बनारस के रहने वाले हैं. एक आईटी कंपनी में अच्छे पद पर काम करते हैं. कहते हैं कि पान खाने की लत बचपन से ही लग गई, "घर में सभी पान खाते थे तो देखा-देखी हम भी खाने लगे. कॉलेज में पहुंचते-पहुंचते आदत सी बन गई. आमतौर पर पान हर जगह मिल भी जाता है. नोएडा में तमाम ऐसी दुकानें हैं जहां बिल्कुल बनारस की तरह ही पान मिलता है. लेकिन लॉकडाउन होने के कारण दुकानें बंद हैं. पान मिल भी नहीं रहा है. एक हफ्ते से ज्यादा हो गया पान खाए.”

दीपक सिंह हँसते हुए कहते हैं कि यदि लॉकडाउन लंबा चला और पान न मिला तो हो सकता है कि उनकी आदत छूट भी जाए. वो कहते हैं, "दिक्कत तो कुछ खास नहीं होती लेकिन इतने दिनों से आदत पड़ी है तो थोड़ा अजीब सा लगता है. लेकिन अब धीरे-धीरे तलब कम होने लगी है. अब जब मिलेगा ही नहीं तो क्या करेंगे. मैं सिर्फ पान खाता हूं, गुटखा या मसाला खाता नहीं. गुटखा या मसाला तो चोरी-छिपे लोगों को मिल भी जा रहा है लेकिन पान नहीं मिल रहा है.”

नोएडा में दीपक सिंह को पान भले ही नहीं मिल रहा है लेकिन इलाहाबाद और बनारस जैसी जगहों पर कुछ लोग पान का भी इंतजाम कर ही ले रहे हैं. हालांकि यह आसान नहीं है. उत्तर प्रदेश में पान के पत्ते की ज्यादातर आपूर्ति महोबा से होती है और महोबा से यह सप्लाई लगभग बंद है. पान ऐसी चीज भी नहीं है कि जिसे ज्यादा दिन तक स्टोर किया जा सके. इसलिए जहां अब तक मिल भी रहा होगा, अब मिलना बंद हो जाएगा. हालांकि तमाम लोग ऐसे हैं जो कि पान के विकल्प के तौर पर पान मसाला खाकर काम चला लेते हैं.

तस्वीर: DW/Onkar Singh Janoti

पान मसाला इत्यादि पर प्रतिबंध की घोषणा के बाद उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी ने कहा था कि फिलहाल यह प्रतिबंध अस्थाई है लेकिन सरकार ऐसा रास्ता ढूंढ़ रही है कि इन पर स्थाई प्रतिबंध कैसे लगाया जा सकता है. क्योंकि इनसे न सिर्फ लोगों का स्वास्थ्य खराब होता है बल्कि गंदगी फैलाने में भी अहम भूमिका होती है.

पान और पान मसाला, तंबाकू इत्यादि के शौकीन न सिर्फ शहरों में बल्कि कस्बों और गांवों में भी हैं. प्रतिबंध के बावजूद लोगों को इसके लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ रही है. लोग चोरी-छिपे महंगे दामों पर बेच रहे हैं और जो खाने वाले हैं, उन्हें पता भी है कि ये चीजें कहां मिल रही हैं. प्रतिबंध के बाद कई जगहों पर छापेमारी भी हुई है और लाखों रुपये के अवैध पान मसाले जब्त भी हुए हैं.

कानपुर में पान मसाला बिजनेस से जुड़े एक व्यवसायी धीरेंद्र अवस्थी बताते हैं, "उत्तर प्रदेश में कानपुर में सबसे ज्यादा पान मसाले की खपत है. दो बड़ी फैक्ट्रियां भी यहां हैं. कई टन माल कानपुर से हर महीने बाहर भेजा जाता है. इसके अलावा छोटे-मोटे ब्रांड भी कई हैं. लेकिन इन दिनों लॉकडाउन के चक्कर में सभी पूरी तरह बंद हैं. बाहर जो पान मसाला बिक रहा है वो जरूर पहले से स्टाक किया होगा. क्योंकि उत्पादन नहीं हो रहा है.”

उत्तर प्रदेश में आबकारी विभाग के एक बड़े अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, "बंद तो शराब की दुकानें भी हैं लेकिन शराब किसे नहीं मिल रही है. वही हाल पान मसाले का भी है. सरकार ने सख्ती की है लेकिन पालन करने वालों में भी वैसी जागरूकता होनी चाहिए. इन चीजों की काला बाजारी को इन्हीं सबसे बल मिलता है. आप खरीदना बंद कर देंगे तो कैसे बिकेंगी?”

हालांकि इसका दूसरा पहलू ये है कि लोग बाहर यदि किसी अत्यावश्यक काम से निकल भी रहे हैं, तो भी बाहर न तो पान मसाला खा रहे हैं और न ही इधर-उधर थूंक रहे हैं. लेकिन यह सब भी वहीं है जहां पुलिस वालों की नजर है, अन्यथा हर जगह इसका पालन नहीं हो रहा है. ऐसा नहीं है कि सड़कों से पान- गटखा थूकने के निशान गायब हो गए हों.

तस्वीर: DW/Onkar Singh Janoti

लखनऊ के व्यवसायी बताते हैं कि जरूरी सामानों की सप्लाई की आड़ में इन चीजों की सप्लाई भी हो रही है और ऐसी ही दुकनों पर ये चीजें मिल भी रही हैं. चूंकि पहले ये चीजें पान की दुकानों या फिर छोटी-बड़ी चाय की दुकानों पर मिलती थीं, जो अब पूरी तरह से बंद हैं.

जानकारों की मानें तो अकेले राजधानी लखनऊ में हर महीने करीब पचास करोड़ रुपये के पान-मसाले की खपत है. कानपुर में इससे भी ज्यादा की खपत है. लेकिन लॉकडाउन की वजह से इसमें कमी तो आई ही है.

ऐसे में क्या यह भी संभव है कि लॉकडाउन लंबा खिंचे तो पान मसाला खाने वालों की संख्या में कमी भी आ सकती है. इस सवाल पर मनोवैज्ञानिक जीएन दिवाकर कहते हैं, "लॉकडाउन में जिन्हें नहीं मिल रहा है, वो मजबूरी में नहीं खा रहे हैं. लंबे समय तक न मिले तो हो सकता है जो छोड़ने की इच्छा रखते हों, वो छोड़ भी दें. लेकिन ऐसे लोग कम ही हैं. जब ये चीजें मिलने लगेंगी तो लोग फिर शुरू कर देंगे. हां, यदि उत्पादन पर प्रतिबंध लग जाएगा, तब जरूर कमी आएगी लेकिन ऐसा करना आसान नहीं है.”

राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि गुटखा, पान मसाला जैसी चीजें स्वास्थ्य के लिए कितनी भी हानिकारक हैं लेकिन इनसे न सिर्फ सरकार को हर साल करोड़ों रुपये का राजस्व मिलता है बल्कि इन सबका अरबों रुपये का व्यवसाय है. ऐसे में स्थाई प्रतिबंध लगा पाना बड़ा मुश्किल है.

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