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लोकगीत से चुनाव प्रचार

१८ नवम्बर २०१३

भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता में लोकगीतों और लोककला की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है. दिल जीतने वाली इन कलाओं की खूबियों के कारण अब राजनीतिक दल भी प्रचार के लिए इनका सहारा ले रहे हैं.

तस्वीर: DW/V. Srivastava

देश के पांच राज्यों में इन दिनों चुनावी माहौल है और मतदाताओं तक पहुंचने के लिए सभी राजनीतिक दल अलग-अलग तरीके ढूंढने में लगे हुए हैं. छत्तीसगढ़ में लगभग सभी राजनीतिक दल लोकगीतों और लोककला के सहारे अपनी बात जनता तक पंहुचा रहे हैं.

मतदाताओं को लुभाते लोकगीत

चुनाव आयोग ने जारी की हुई खर्च की सीमा का कड़ाई से पालन करने को कहा है और इसीलिए भाजपा, कांग्रेस सहित सभी छोटे बड़े दलों को प्रचार के तौर तरीकों में बदलाव लाना पड़ा है. खर्चीले प्रचार से बचने के लिए इन दलों ने लोकगीतों को पार्टी प्रचार का साधन बनाया है. राज्य के चुनावी समर में उतरी सत्ताधारी भाजपा हो या विपक्षी कांग्रेस पार्टी, सभी ने अपने लिए लोकगीत तैयार करवाये हैं. कांग्रेस के मीडिया सेल से जुड़े राजेश बिस्सा कहते हैं,"लोकगीत अभिव्यक्ति का सबसे प्रभावी माध्यम है और लोकतंत्र में प्रभावी अभिव्यक्ति ही मायने रखती है."

रायपुर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी के कार्यक्रम समन्वयक अजय साहू लोकगीतों और लोककला की महत्ता को स्वीकार करते हुए कहते हैं, "इन कलाओं के जरिये संदेश और मनोरजन एक साथ हो जाता है. वह आगे कहते, “ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह के प्रचार का काफी असर हो रहा है."

जैसा बजट वैसा गीत

छत्तीसगढ़ में रिकॉर्डिंग स्टूडियो खुल जाने के बाद अब कम बजट में लोकगीत तैयार हो रहे हैं. उम्मीदवार अपनी जेब और जरूरत देखकर 1000 से लेकर 20000 खर्च कर ऐसे गीतों को तैयार करवा रहे हैं. कुछ निर्दलीय उम्मीदवार लोकप्रिय लोकगीतों की पैरोडी के सहारे अपनी चुनावी नैया पार लगाने की फिराक में हैं. एडिटिंग और मिक्सिंग का काम करने वाले विजय कुमार कहते हैं कि चुनाव की घोषणा के साथ ही उनकी व्यस्तता बढ़ गई है. वह बताते हैं कि कभी कभी उम्मीदवारों को इतनी जल्दी रहती है कि पूरा काम तीन से चार घंटे में निपटना होता है, "इसका बजट इसमें काम करने वाले कलाकारों पर निर्भर करता है."

बड़े छोटे सभी कलाकार अपनी निष्ठा या व्यावसायिक प्रतिबद्धताओं के कारण इस काम से जुड़े हुए हैं. दिनेश पोटाई कहते हैं कि स्थापित कलाकारों के जुड़ने से बजट बढ़ जाता है. बड़ी पार्टियां ही ऐसे कलाकारों से अपने लिए प्रचार गीत तैयार करवाती हैं.

बढ़ी पूछ परख

लोक कलाकार दिनेश पोटाई कहते हैं कि आम दिनों के मुकाबले लोक कलाकारों की पूछ परख चुनावी मौसम में काफी बढ़ जाती है. आम लोगों के जीवन से सीधे जुड़े होने के कारण ही लोक कलाओं ने आधुनिक संगीत की चकाचौध के बावजूद अपना अस्तित्व बनाए रखा है. सभी पार्टियां लोक कलाकारों की क्षमताओं का अपने पक्ष में इस्तेमाल कर रही हैं.

लोकगीतों के अलावा प्रचार के लिए लाइट एंड शो का भी जमकर सहारा लिया जा रहा है. लोकगीतों की तरह यह भी सस्ता और कारगर माध्यम है. जहां सत्ताधारी दल अपनी सरकार की उपलब्धियों पर नाटक का मंचन करते हैं, वहीं विरोधी दल सरकार की खामियां गिनाने वाले नाटक का मंचन करवा रहे हैं. लोक गायकों और लोक कलाकारों के जरिये हो रहे प्रचार को ग्रामीण क्षेत्रों में काफी सराहना मिल रही है. पंथी कलाकार राधेश्याम के अनुसार इस चुनावी मौसम में अगर कलाकार कुछ कमाई कर लेते हैं तो इसे गलत नहीं मानना चाहिए.

रिपोर्ट: विश्वरत्न, रायपुर

संपादनः आभा मोंढे

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