जर्मन संसद अध्यक्ष नॉर्बर्ट लामर्ट राष्ट्रपति अल सिसी से नहीं मिलेंगे. क्रिस्टॉफ श्ट्राक का कहना है कि यह प्रोटोकॉल का विवाद नहीं है. बुंडेसटाग के अध्यक्ष मिस्र में लोकतांत्रिक प्रक्रिया में कमियों का विरोध कर रहे हैं.
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हां, मिस्र एक महत्वपूर्ण देश है. अरब दुनिया के विकास से लेकर लोकतंत्र तक के लिए महत्वपूर्ण. यूरोप के लिए महत्वपूर्ण. इसलिए संपर्क और राजनीतिक वार्ताएं अहम हैं. अब मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल सिसी जून के शुरू में बर्लिन आ रहे हैं. और जर्मन संसद के प्रमुख नॉर्बर्ट लामर्ट क्या करते हैं? वे काहिरा से आने वाले मेहमान से मिलने से इंकार कर देते हैं. आखिर क्यों? नॉर्बर्ट लामर्ट ने भी डॉयचे वेले के साथ एक इंटरव्यू में मिस्र को "एक अहम देश" बताया है. लेकिन सबसे ज्यादा आबादी वाला अरब देश इस समय लोकतांत्रिक नहीं है. सवाल किया जा सकता है कि क्या वह कभी स्थिर लोकतांत्रिक सिद्धांतों वाला था. लेकिन तय है कि 2012 में लोकतांत्रिक चुनाव हुए और जनता ने एक संसद चुना. लेकिन उसके बाद हुए आंदोलनों और अल सिसी के नेतृत्व में सैनिक तख्तापलट ने जो कुछ भी लोकतंत्र था उसे नष्ट कर दिया.
संकेतसेज्यादा
लामर्ट का कदम सांकेतिक भर लग सकता है. लेकिन वह लोकतंत्र और संसद के विचार के लिए महत्वपूर्ण है. अल सिसी ने कई कदमों के जरिए अपनी सत्ता को पुख्ता कर लिया है, लेकिन आम लोगों की भागीदारी के प्रयास उनमें नहीं दिखते हैं. फील्डमार्शल अल सिसी विपक्ष का दमन कर रहे हैं, मौलिक अधिकारों में कटौती कर रहे हैं और अभिव्यक्ति तथा प्रेस स्वतंत्रता को नजरअंदाज कर रहे हैं. 2012 के अंत से दसियों हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया है, प्रदर्शनों में हजारों जानें गई हैं और न्यायपालिका भी स्वतंत्र नहीं है.
सरकारों को स्थिति को प्रभावित करने के लिए दुनिया के सभी शासकों के साथ बात करनी चाहिए. राजनीतिकतौर पर मुश्किल तानाशाहों और निरंकुश शासकों के साथ भी. बर्लिन में प्रमुख विदेशनीति विशेषज्ञ और राजनीतिज्ञ भी मिस्र में हो रहे विकास की आलोचना करते हैं और उन्हें चिंताजनक मानते हैं, लेकिन कहते हैं कि संवाद बना रहना चाहिए ताकि एक अस्थिर इलाके के स्थिर देश मिस्र का समर्थन किया जा सके.
दिलसेसांसद
लेकिन लामर्ट जैसे संसद अध्यक्ष को क्या करना चाहिए? बुंडेसटाग के अध्यक्ष अपने फैसले से इस बात की याद दिलाते हैं कि जनप्रतिनिधि सभा के रूप में संसदों के अपने मूल्य होते हैं. वे लोकतंत्र की याद दिला रहे हैं. पिछले महीनों में कई स्मृति सभाओं में लोकतांत्रिक परंपरा की सराहना की गई है.
नॉर्बर्ट लामर्ट की कभी कभी इस बात के लिए हंसी उड़ाई जाती है कि वे अच्छा बोलते हैं, उन्हें बोलना पसंद है और वे भावनाओं को सही शब्द देते हैं. इस तरह वे सही मायनों में सांसद हैं. हाल का एक उदाहरण. कई हफ्तों तक जर्मनी में इस पर बहस हो रही थी कि उसमानी साम्राज्य में अर्मेनियाई लोगों के हत्याकांड को नरसंहार कहा जाए या नहीं. किसी जर्मन राजनीतिज्ञ ने इतनी साफगोई नहीं दिखाई जितनी लामर्ट ने और कहा, "यह जनसंहार था." यह वाक्य बना रहेगा क्योंकि संसद प्रमुख ने सांसदों के दिल की बात कह दी थी.
नील नदी के किनारे जीवन
तीन उभरते हुए फोटोग्राफरों ने अपनी तस्वीरों में नील नदी के आसपास के इलाकों के जीवन को दर्शाया. ये तस्वीरें मिस्र, इथियोपिया और सूडान की हैं.
तस्वीर: Brook Zerai Mengistu
रशीद शहर के निवासी
ये फोटोग्राफर राजनीतिक पहलुओं पर नहीं बल्कि आम इंसानों की रोजमर्रा की जिंदगी की तस्वीरें खींचना चाहते थे. महमूद याकूत ने रशीद शहर के निवासियों को अपना विषय बनाया. यहां रहने वालों के रोजगार के लिए नील डेल्टा की उपजाऊ जमीन वरदान है.
तस्वीर: Mahmoud Yakut
नील पर मछली के फार्म
मिस्र के शहर रशीद से यह नदी भूमध्य सागर में जाकर गिरती है. इस इलाके में ज्यादातर लोगों का रोजगार मछली पकड़ना है. लकड़ी से बनाए गए फिश फार्म पानी पर तैरते दिखाई देते हैं, जिन पर छोटी झोपड़ियां बनी हुई हैं. झोपड़ी में एक बिस्तर और एक छोटा सा किचन है, यहां से परिवार का कोई एक व्यक्ति फार्म की निगरानी करता है.
तस्वीर: Mahmoud Yakut
शहर की जिंदगी
रशीद में अतीत और वर्तमान आपस में आकर मिलते हैं. प्राचीन समय से ही यह बंदरगाही इलाका व्यापार के लिए अहम माना जाता है. लोगों का जीवन बेहद सादा है. मिस्र का यह शहर अपने निवासियों के बड़े दिल और अच्छे व्यवहार के लिए मशहूर है.
तस्वीर: Mahmoud Yakut
महिलाओं की भूमिका
इस शहर की महिलाएं ज्यादातर घर पर रहती हैं. वे घरेलू काम करती हैं और बच्चों को पालती हैं. तंदूरों में रोटियां भी बनाती हैं और बाजार में सब्जियां और घर पर तैयार पनीर बेचती हैं. गरीबी के बावजूद यहां के निवासी आपस में मिल बांट कर रहना पसंद करते हैं.
तस्वीर: Mahmoud Yakut
रचनात्मकता की लैबोरेटरी
इन फोटोग्राफरों को 2013 में गर्मियों में गोएथे इंस्टीट्यूट में वर्कशॉप के लिए आने का न्यौता दिया गया था. उनकी प्रदर्शनी पहली बार जर्मनी में दिखाई जा रही है. सूडान के अलसादिक मुहम्मद को बर्तन बनाने की कला से लगाव है. नील के साथ के इलाकों में बर्तन बनाने की परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है.
तस्वीर: Elsadig Mohamed Ahmed
लाइफलाइन
नील नदी के आसपास के इलाकों में बर्तन बनाने की प्राचीन परंपरा है. असवान बांध बनने तक यह हाल था कि नदी में आने वाली बाढ़ अपने साथ उर्वर मिट्टी लाती थी. खासकर आजकल के हालात में पानी बहुत कीमती चीज है. लोग नील पर पानी के अलावा रोजगार और यातायात के लिए निर्भर हैं.
तस्वीर: Elsadig Mohamed Ahmed
प्राचीन परंपराएं
मिट्टी से बने बर्तन काम के भी होते हैं और खूबसूरत भी. सदियों पुरानी इस कला ने समय के साथ अपने रूप बदले. आजकल नूबया के इलाकों में बनने वाले बर्तन दुनिया भर की प्रदर्शनियों में दिखाए जाते हैं. और सूडान के इस इलाके के सदियों पुराने उस इतिहास को दुनिया के सामने लाते हैं जिसपर नील की छाप है.
तस्वीर: Elsadig Mohamed Ahmed
बाइबिल के छात्र
इथियोपिया की झलक ब्रूक जेराई सेंगिस्तू की तस्वीरों में. इथियोपिया में जन्म लेने वाली नील नदी के साथ साथ यहां बसा प्राचीन ईसाई समुदाय मिलता है. आध्यात्म की खोज में ये दुनिया से अलग थलग रहते हैं. यहां रहने वाले छात्र खुद अकेलेपन में जीना चुनते हैं और इनकी शिक्षा दीक्षा 14 साल में पूरी होती है.
तस्वीर: Brook Zerai Mengistu
विनम्रता सिखाती नदी
समय समय पर ये छात्र अपने अकेलेपन से निकलकर नील नदी का रुख करते हैं. वे गांव में जाकर खाना मांगते हैं. उनके मुताबिक भिक्षा से विनम्रता आती है और विनम्रता से आध्यात्म की प्राप्ति होती है.
तस्वीर: Brook Zerai Mengistu
निरंतरता का प्रतीक
इथियोपिया के इलाके में बहने वाला नील नदी का यह हिस्सा यहां की एकता और निरंतरता का प्रतीक है. गोएथे इंस्टीट्यूट की वर्कशॉप में हिस्सा लेने वाले कई लोग अपने अपने देश गए, जिनमें से कई इन दिनों युद्ध और हिंसा की चपेट में हैं. उनकी शानदार तस्वीरें देसाऊ में केंद्रीय पर्यावरण एजेंसी में 27 मई तक देखी जा सकती हैं.