अपनी वार्षिक रिपोर्ट में आमतौर पर कम विकसित देशों में जन दुर्व्यवहार की बातें करने वाले संगठन 'ह्यूमन राइट्स वॉच' ने इस बार अमेरिका और यूरोप के विकसित देशों में पॉपुलिस्ट नेताओं के उभार के खिलाफ तीखी चेतावनी जारी की है.
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अमेरिका और यूरोप में मजबूत होती दिख रही पॉपुलिस्ट राजनीति और उसके नेता आधुनिक मानवाधिकार आंदोलनों और यहां तक कि पश्चिमी लोकतंत्र के लिए भी खतरा हैं. अपनी 704 पेजों वाली "वर्ल्ड राइट्स 2017" रिपोर्ट में मानवाधिकार संगठन 'ह्यूमन राइट्स वॉच' ने मानव अधिकारों से जुड़े प्रमुख वैश्विक रुझान और कुल 90 देशों में स्थानीय हालात की समीक्षा शामिल की है. इसमें भी अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के अलंकारपूर्ण भाषण की ओर अलग से ध्यान दिलाते हुए उसे "असहिष्णुता की राजनीति का एक ज्वलंत उदाहरण" बताया गया है.
रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई गई कि अगर ऐसी आवाजें आगे बढ़ती रहें तो "दुनिया अंधे युग में चली जाएगी." यह भी लिखा है कि ट्रंप की सफलता से एक खतरनाक और "सबसे ताकतवर आदमी के शासन के प्रति मोह" की प्रवृत्ति उभर कर आती है. रिपोर्ट में अमेरिका की ही तरह ऐसी प्रवृत्ति के रूस, चीन, वेनेजुएला और फिलिपींस में भी हावी होने की बात कही गई है.
ह्यूमन राइट्स वॉच के निदेशक केनेथ रॉथ ने रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि कंबोडिया में हुन सेन जैसे नेता भी ट्रंप की चुनावी जीत और उनके जैसे नेताओं के उदय को "अपनी दमनकारी गतिविधियां जारी रखने के लिए हरी बत्ती" समझते हैं. रॉथ ने ट्रंप कैबिनेट में विदेश मंत्री के तौर पर एक्सॉनमोबिल कंपनी के पूर्व प्रमुख रेक्स टिलरसन के चुनाव की आलोचना करते हुए कहा कि "यह वही आदमी है जिसने अपना पूरा करियर ही तानाशाहों के साथ साठगांठ के बूते बनाया" और जो दुर्व्यवहारों की शिकायतों पर कार्रवाई ना करने के आरोपों का सामना करने जब सीनेट के सामने पेश हुआ तो भी केवल "बहाने पर बहाने" बनाता रहा.
दुनिया के 90 देशों में सर्वे के आधार पर रिपोर्ट पेश करने वाले संगठन ने बताया कि सीरिया "अधिकारों पर सबसे गंभीर संकट का प्रतिनिधि उदाहरण" है क्योंकि यहां आम लोगों पर सरकारी सेनाओं, उसकी सहयोगी सेनाओं और विद्रोही सेनाओं ने बिना अंतर किए जुल्म ढाए हैं. राइट्स समूह का कहना है कि भले ही आईएस जैसे आतंकी गुट को मिटाने में कामयाबी मिल जाए, लेकिन ऐसे बर्ताव का बदला लेने के लिए वहां से ही हिंसक चरमपंथियों की एक नई पौध तैयार हो जाएगी.
दुनिया के हर इंसान के हक में...
मानव अधिकारों के अपने सार्वभौमिक घोषणापत्र में संयुक्त राष्ट्र ने अपने सभी सदस्य देशों के नागरिकों के लिए कुछ मौलिक अधिकार सुनिश्चित करने की बात कही है. आइए देखें क्या हैं वे अधिकार...
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सब के लिए समान अधिकार (अनुच्छेद 1)
"सभी मनुष्य स्वतंत्र हैं और समान गरिमा और अधिकारों के साथ पैदा होते हैं," संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 दिसंबर 1948 को पेरिस में मानवाधिकारों की इस सार्वभौम घोषणा को अपनाया गया. विश्व भर में इनके लागू होने में अभी वक्त है.
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जीने का अधिकार (अनुच्छेद 2)
घोषणापत्र के सभी अधिकार सब लोगों पर लागू होते हैं. भले ही वे किसी भी "जाति, रंग, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक विचारधारा, राष्ट्रीय या सामाजिक मूल" के हों.
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जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 3,4,5)
"प्रत्येक व्यक्ति को जीवन, स्वाधीनता और वैयक्तिक सुरक्षा का अधिकार है." (3) "किसी को भी गुलामी या दासता की हालत में नहीं रखा जाना चाहिए." (4) (5) "किसी को भी यातना या क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या सजा का शिकार नहीं बनाया जाना चाहिए." एमनेस्टी इंटरनेशनल को पिछले पांच सालों में ही 141 देशों से प्रताड़ना और दुर्व्यवहार की रिपोर्टें मिली हैं.
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कानून सबके लिए समान (अनुच्छेद 6 से 12)
हर इंसान को निष्पक्ष अदालती सुनवाई और कानूनी संरक्षण (6,8,10,12) का अधिकार है. जब तक किसी पर कोई दोष सिद्ध नहीं होता तब तक उसे निर्दोष माना जाएगा. (11) कानून के समक्ष सभी बराबर हैं. "किसी को भी मनमाने ढंग से गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, हिरासत में नहीं रखा जा सकता या देशनिकाला नहीं दिया जा सकता." (7, 9)
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कोई नहीं है अवैध (अनुच्छेद 13,14,15)
"हर कोई किसी भी देश में खुलकर आने जाने और अपने निवास स्थान का चयन करने के लिए स्वतंत्र है." हर किसी को कोई भी देश छोड़ने का अधिकार (13) है. (14) "उत्पीड़न से परेशान होने पर हर किसी को अन्य देशों में शरण की तलाश करने और पाने का अधिकार है." (15) "हर व्यक्ति को कोई एक राष्ट्रीयता रखने का अधिकार है." संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी का अनुमान है कि कम से कम 10 लाख लोग आज भी राज्यविहीन हैं.
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जबरन शादी के खिलाफ संरक्षण (अनुच्छेद 16)
घोषणापत्र में पुरुषों और महिलाओं को जबर्दस्ती शादी रोकने का भी समान अधिकार मिला है. शादी "भावी दम्पत्ति की पूर्ण और स्वतंत्र सहमति के साथ ही हो सकेगी." परिवार को समाज तथा राज्य द्वारा संरक्षण पाने का पूरा अधिकार है. संयुक्त राष्ट्र संस्था यूनिसेफ का कहना है कि विश्व भर में 70 करोड़ महिलाएं जबरन कराई गई शादी में रह रहे हैं.
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संपत्ति का अधिकार (अनुच्छेद 17)
"हर किसी को अकेले अपने नाम या फिर किसी के साथ संपत्ति रखने का अधिकार है. किसी को भी मनमाने ढंग से उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता." लेकिन दुनिया भर में बहुत से लोगों को शहर के विकास, खनन, खेती या बांध बनाने के लिए उनकी जमीन से बेदखल कर दिया जाता है क्योंकि उनके पास जमीन के वैध कागजात नहीं हैं. कई लोगों के पास उनकी ही संपत्ति के सही कागज नहीं होते.
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विचारों की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 18,19,20)
"प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार, अभिव्यक्ति और धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार है." (18) "हर कोई अपनी राय और उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकारी है." (19) "हर कोई शांतिपूर्ण सभा करने और संघ बनाने के लिए स्वतंत्र है." (20) लेकिन रिपोर्टर विदाउट बोर्डर्स के अनुसार दुनिया भर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मामलों में इस समय 350 से भी अधिक पत्रकार हिरासत में हैं.
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सहनिर्णय का अधिकार (अनुच्छेद 21,22)
"हर व्यक्ति को सीधे या निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से सार्वजनिक मामलों के निबटारे में हिस्सा लेने का अधिकार है." (21) घोषणापत्र में कहा गया है कि लोगों को "सामाजिक सुरक्षा का अधिकार" और आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों का हक है जो "उनकी गरिमा के लिए अपरिहार्य है." (22) सऊदी अरब के स्थानीय निकाय के चुनावों में महिलाएं पहली बार 2015 में मतदान कर सकेंगी.
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रोजगार का अधिकार (अनुच्छेद 23,24)
"हर किसी को रोजगार का अधिकार है." इसके साथ "हर कोई समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकारी है." हर कामगार को उचित और संतोेषजनक वेतन पाने और काम से जुड़े ट्रेड यूनियन में शामिल होने का भी अधिकार है." (23) "हर व्यक्ति को खाली समय पाने का भी अधिकार है." (24) अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार आज भी करीब 20 करोड़ लोग बेरोजगार हैं.
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रिपोर्ट में लिखा है कि ब्रिटेन, फ्रांस, हंगरी, नीदरलैंड्स और पोलैंड जैसे कई देशों में नेता जनता में व्याप्त असंतोष को हवा देकर अपनी राजनीति चमका रहे हैं. वहीं रॉथ ने मानवाधिकारों के मामले में "कई पश्चिमी नेताओं के बेहद हल्का समर्थन" दिखाने की बात कही. उन्होंने जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को सही समय पर मानवाधिकारों के मुद्दे पर जोर शोर से बोलने का श्रेय दिया, लेकिन कई अन्य प्रमुख नेताओं के उदासीन रहने और कई बार पॉपुलिस्ट सोच का फायदा उठाने का आरोप लगाया.
मानवाधिकार संगठन ने अपील की है कि ऐसे सभी देशों में केवल सरकारें और नेता ही नहीं बल्कि आम जनता कदम उठाए. अपने संबोधन में रॉथ ने याद दिलाने की कोशिश की है कि समाज में प्रबल होते लोकलुभावनवाद का सबसे बढ़िया इलाज जनता की सक्रियता ही होती है.
आरपी/वीके (एएफपी)
मानवाधिकारों का कड़वा सच
संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य राष्ट्रों के लिए मानवाधिकारों के वैश्विक घोषणापत्र में जिन अधिकारों का वर्णन है, वे वर्तमान समय में दुनिया के कई हिस्सों में ना के बराबर दिखाई दे रहे हैं...
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अभिव्यक्ति की आजादी (अनुच्छेद 18,19,20)
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में 350 से ज्यादा पत्रकार इस समय जेल में हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
समानता का अधिकार (अनुच्छेद 1)
कॉन्गो की सोने की खानों में जबरदस्ती काम में ढकेले गए इस बच्चे की सूरत मानवाधिकारों पर सवालिया निशान लगाती है.
तस्वीर: picture alliance/AFP Creative/Healing
नागरिक अधिकार (अनुच्छेद 2)
म्यांमार के अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों की स्थिति को देखकर यह बात कहना मुश्किल है. सभी मानवों को उनकी जाति, रंग, लिंग, भाषा, धर्म या ऐसी किसी भी विभिन्नता के बावजूद समान नागरिक अधिकार मिलने चाहिए.
तस्वीर: Reuters
जीवन और आजादी का अधिकार (अनुच्छेद 3,4,5)
किसी को भी गुलाम बनाकर रखना मानवाधिकार का हनन है. किसी के साथ भी क्रूरता या दंडनीय बर्ताव करना अमानवीय है. भारत की इस कपड़ा मिल में इस बच्चे के मानवाधिकार कुछ ऐसे कारखानों की भेंट चढ़ रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Godong
साथी चुनने का अधिकार (अनुच्छेद 16)
यूनीसेफ के मुताबिक दुनिया भर में 70 करोड़ से ज्यादा महिलाएं अपनी मर्जी के खिलाफ दांपत्य संबंध में जी रही हैं. ये है आठ साल की उम्र में शादी के बंधन में बांधा गया एक यमनी जोड़ा.
तस्वीर: Stephanie Sinclair, VII Photo Agency for National Geographic magazine/AP/dapd
सम्माननीय कार्य करने का अधिकार (अनुच्छेद 23, 24)
संयुक्त राष्ट्र के श्रम संगठन (आईएलओ) के मुताबिक इस समय 20 करोड़ से ज्यादा लोगों के पास नौकरी नहीं है. फिर घोषणापत्र में दिए गए उनके काम करने के अधिकार का क्या करें.
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गरिमा के बारे में (अनुच्छेद 25)
दुनिया भर में दो अरब से ज्यादा लोग कुपोषण से जूझ रहे हैं, जबकि 80 करोड़ भुखमरी के शिकार हैं. हर किसी को जीवन की गरिमा को बरकरार रखते हुए भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य सुविधाएं और सामाजिक सुविधाएं पाने का हक बताया गया है.
तस्वीर: Roberto Schmidt/AFP/Getty Images
शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 26)
कहां तो प्राथमिक शिक्षा को जरूरी और मुफ्त बनाने का मकसद था. जबकि यूनेस्को के मुताबिक आज भी दुनिया भर में 78 करोड़ लोग लिख पढ़ नहीं सकते.