भारत के पूर्वोत्तर राज्यों का जिक्र अक्सर अलगाववादी आंदोलनों और उग्रवाद के सिलसिले में ही किया जाता है. लेकिन ये राज्य लोकतंत्र में आस्था और राजनीतिक जागरुकता की मिसाल भी हैं.
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एक ओर अलगाववादी आंदोलन, संप्रभुता की मांग और दूसरी ओर से देश के संविधान के प्रति आस्था जताते हुए चुनावों में बढ़-चढ़ कर भागीदारी. यह दोनों बातें सुनने में विरोधाभासी लग सकती हैं. लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों में यह जमीनी हकीकत है. इस महीने इलाके के तीन राज्यों-त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय के वोटरों ने एक बार फिर इस बात को साबित किया है. लेफ्ट फ्रंट के शासनवाले राज्यों में राजनीतिक अधिकारों के प्रति जागरुकता कोई नई चीज नहीं है. पश्चिम बंगाल और केरल में चुनावों के मौके पर यह जागरुकता देखने को मिलती रही है. पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में भी लेफ्ट कोई ढाई दशकों से सत्ता में है. नतीजतन इस राज्य में हमेशा भारी मतदान होता रहा है.
वर्ष 2008 के विधानसभा चुनावों में राज्य में 91 फीसदी मतदान हुआ था. अगली बार यानी वर्ष 2013 में यह बढ़ कर 91.8 फीसदी तक पहुंच गया. लेकिन अबकी हुए विधानसभा चुनावों में लगभग 92 फीसदी लोगों ने वोट डाल कर एक नया रिकार्ड बनाया है. त्रिपुरा के मुख्य चुनाव अधिकारी श्रीराम तरणिकांति बताते हैं, "राज्य की 59 सीटों के लिए 89.8 फीसदी वोट पड़े. लेकिन पोस्टल बैलट को जोड़ने पर यह आंकड़ा 92 फीसदी के पार पहुंच जाएगा." वह बताते हैं कि राज्य के खोवाई जिले में तो कई मतदान केंद्रों पर लोगों ने रात को एक बजे तक वोट डाले जबकि मतदान का निर्धारित समय शाम चार बजे तक ही था.
कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
केंद्र में 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद देश में भारतीय जनता पार्टी का दायरा लगातार बढ़ा है. डालते हैं एक नजर अभी कहां कहां बीजेपी और उसके सहयोगी सत्ता में हैं.
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उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में फरवरी-मार्च 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर ऐतिहासिक प्रदर्शन किया और 403 सदस्यों वाली विधानसभा में 325 सीटें जीतीं. इसके बाद फायरब्रांड हिंदू नेता योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की गद्दी मिली.
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त्रिपुरा
2018 में त्रिपुरा में लेफ्ट का 25 साल पुराना किला ढहाते हुए बीजेपी गठबंधन को 43 सीटें मिली. वहीं कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्कसिस्ट) ने 16 सीटें जीतीं. 20 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद मणिक सरकार की सत्ता से विदाई हुई और बिप्लव कुमार देब ने राज्य की कमान संभाली.
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मध्य प्रदेश
शिवराज सिंह चौहान को प्रशासन का लंबा अनुभव है. उन्हीं के हाथ में अभी मध्य प्रदेश की कमान है. इससे पहले वह 2005 से 2018 तक राज्य के मख्यमंत्री रहे. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस सत्ता में आई. लेकिन दो साल के भीतर राजनीतिक दावपेंचों के दम पर शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता में वापसी की.
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उत्तराखंड
उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में भी बीजेपी का झंडा लहर रहा है. 2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए राज्य की सत्ता में पांच साल बाद वापसी की. त्रिवेंद्र रावत को बतौर मुख्यमंत्री राज्य की कमान मिली. लेकिन आपसी खींचतान के बीच उन्हें 09 मार्च 2021 को इस्तीफा देना पड़ा.
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बिहार
बिहार में नीतीश कुमार एनडीए सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. हालिया चुनाव में उन्होंने बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा. इससे पिछले चुनाव में वह आरजेडी के साथ थे. 2020 के चुनाव में आरजेडी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी. लेकिन 74 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही बीजेपी ने नीतीश कुमार की जेडीयू के साथ मिलकर सरकार बनाई, जिसे 43 सीटें मिलीं.
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गोवा
गोवा में प्रमोद सावंत बीजेपी सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने मनोहर पर्रिकर (फोटो में) के निधन के बाद 2019 में यह पद संभाला. 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद पर्रिकर ने केंद्र में रक्षा मंत्री का पद छोड़ मुख्यमंत्री पद संभाला था.
पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में 2017 में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी है जिसका नेतृत्व पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी एन बीरेन सिंह कर रहे हैं. वह राज्य के 12वें मुख्यमंत्री हैं. इस राज्य में भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार नहीं बना पाई.
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हिमाचल प्रदेश
नवंबर 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज कर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापसी की. हालांकि पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी घोषित किए गए प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए. इसके बाद जयराम ठाकुर राज्य सरकार का नेतृत्व संभाला.
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कर्नाटक
2018 में हुए विधानसभा चुनावों में कर्नाटक में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी. 2018 में वो बहुमत साबित नहीं कर पाए. 2019 में कांग्रेस-जेडीएस के 15 विधायकों के इस्तीफे होने के कारण बीेजेपी बहुमत के आंकड़े तक पहुंच गई. येदियुरप्पा कर्नाटक के मुख्यमंत्री हैं.
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हरियाणा
बीजेपी के मनोहर लाल खट्टर हरियाणा में मुख्यमंत्री हैं. उन्होंने 2014 के चुनावों में पार्टी को मिले स्पष्ट बहुमत के बाद सरकार बनाई थी. 2019 में बीजेपी को हरियाणा में बहुमत नहीं मिला लेकिन जेजेपी के साथ गठबंधन कर उन्होंने सरकार बनाई. संघ से जुड़े रहे खट्टर प्रधानमंत्री मोदी के करीबी समझे जाते हैं.
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गुजरात
गुजरात में 1998 से लगातार भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. प्रधानमंत्री पद संभालने से पहले नरेंद्र मोदी 12 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे. फिलहाल राज्य सरकार की कमान बीजेपी के विजय रुपाणी के हाथों में है.
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असम
असम में बीजेपी के सर्बानंद सोनोवाल मुख्यमंत्री हैं. 2016 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 86 सीटें जीतकर राज्य में एक दशक से चले आ रहे कांग्रेस के शासन का अंत किया. अब राज्य में फिर विधानसभा चुनाव की तैयारी हो रही है.
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अरुणाचल प्रदेश
अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू मुख्यमंत्री हैं जो दिसंबर 2016 में भाजपा में शामिल हुए. सियासी उठापटक के बीच पहले पेमा खांडू कांग्रेस छोड़ पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश में शामिल हुए और फिर बीजेपी में चले गए.
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नागालैंड
नागालैंड में फरवरी 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में एनडीए की कामयाबी के बाद नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के नेता नेफियू रियो ने मुख्यमंत्री पद संभाला. इससे पहले भी वह 2008 से 2014 तक और 2003 से 2008 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं.
तस्वीर: IANS
मेघालय
2018 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद सरकार बनाने से चूक गई. एनपीपी नेता कॉनराड संगमा ने बीजेपी और अन्य दलों के साथ मिल कर सरकार का गठन किया. कॉनराड संगमा पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा के बेटे हैं.
तस्वीर: IANS
सिक्किम
सिक्किम की विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी का एक भी विधायक नहीं है. लेकिन राज्य में सत्ताधारी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा है. इस तरह सिक्किम भी उन राज्यों की सूची में आ जाता है जहां बीजेपी और उसके सहयोगियों की सरकारें हैं.
तस्वीर: DW/Zeljka Telisman
मिजोरम
मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार है. वहां जोरामथंगा मुख्यमंत्री हैं. बीजेपी की वहां एक सीट है लेकिन वो जोरामथंगा की सरकार का समर्थन करती है.
तस्वीर: IANS
2019 की टक्कर
इस तरह भारत के कुल 28 राज्यों में से 16 राज्यों में भारतीय जनता पार्टी या उसके सहयोगियों की सरकारें हैं. हाल के सालों में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्य उसके हाथ से फिसले हैं. फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के आगे कोई नहीं टिकता.
तस्वीर: DW/A. Anil Chatterjee
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त्रिपुरा के अलावा एक अन्य उग्रवादग्रस्त राज्य नागालैंड में तमाम उग्रवादी संगठनों की सक्रियता, अलग राज्य की दशकों पुरानी मांग, चुनाव बहिष्कार की अपीलों और प्रतिकूल हालातों के बावजूद अबकी 80 फीसदी से ऊपर मतदान हुआ है. इस बार पहले तो बीजेपी समेत तमाम दलों ने चुनावों में हिस्सा नहीं लेने का एलान कर दिया था. उनकी मांग थी कि पहले दशकों पुरानी नागा समस्या का समाधान हो, उसके बाद ही चुनाव कराए जाएं. लेकिन बाद में तमाम दल चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेने पर सहमत हो गए. राज्य में नागा संगठन काफी ताकतवर हैं और उके निर्देशों पर ही मतदान की रूपरेखा तय होती है. बावजूद इसके अगर इतना भारी मतदान हुआ तो लोकतंत्र में लोगों की आस्था समझी जा सकती है. बीते विधानसभा चुनावो में यहां 90 फीसदी वोट पड़े थे. पूर्वोत्तर का स्कॉटलैंड कहे जाने वाले मेघालय में भी अबकी मतदान का आंकड़ा 70 फीसदी के पार पहुंच गया है. तमाम समस्याओं, बेरोजगारी और पिछडेपन के बावजूद चुनावों में लोगों की भागीदारी उल्लेखनीय है.
बीते लोकसभा चुनावों में भी पूर्वोत्तर के ज्यादातर राज्यों में मतदान का आंकड़ा 80 फीसदी के आस-पास रहा था. नागालैंड (87.82 फीसदी) और त्रिपुरा (85 फीसदी) जैसे राज्यों में तो इसने मतदान के राष्ट्रीय औसत 66.4 फीसदी को काफी पीछे छोड़ दिया था.
वजह
आखिर इलाके में लोकतंत्र और समाज की तस्वरी इतनी विरोधाभासी क्यों है? एक ओर अलग राज्य की मांग में होने वाले आंदोलन और दूसरी ओर लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व यानी चुनावों में देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले बढ़-चढ़ कर भागीदारी. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इसकी जड़ें इलाके में साक्षरता दर बेहतर होने और अपने अधिकारों के प्रति सामाजिक-राजनीतिक जागरुकता में छिपी हैं. मिजोरम में राजनीतिक शास्त्र के एक प्रोफेसर डी.जी. ललथनहौला कहते हैं, "इलाके के तमाम राज्य देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले युवा हैं. ऐसे में अलग राज्य का दर्जा मिलने के बाद पैदा होने वाली पीढ़ी अभी जवान है." वह बताते हैं कि ऐसे लोगों में साक्षरता दर बेहतर है और वह अपने अधिकारों के प्रति सचेत हैं. यही वजह है कि वह अपने मताधिकार के इस्तेमाल के प्रति काफी सचेत हैं.
मेघालय की नार्थ ईस्ट हिल यूनिवर्सिटी (नेहू) में राजनीति विज्ञान की छात्रा एम.सी. संगमा कहती हैं, "हम अपने अधिकारों के प्रति सचेत हैं. देश के संविधान और लोकतंत्र के प्रति इलाके के लोगों की आस्था बनी हुई है."
त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार कहते हैं, "राज्य के लोगों में साक्षरता बढ़ने के साथ अपने अधिकारों के प्रति जागरुकता भी बढ़ी है. वह जानते हैं कि मताधिकार के इस्तेमाल से समाज व राजनीति में सकारात्मक बदलाव संभव है. यही वजह है कि राज्य में हमेशा मतदान का औसत देश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले ज्यादा होता है."
नागालैंड के पूर्व मुख्यमंत्री और अबकी सरकार बनाने की होड़ में सबसे आगे चल रहे नेफ्यू रियो कहते हैं, "दशकों पुरानी नागा समस्या और प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद लोग अपने लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकारों के प्रति काफी सजग हैं." नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) नामक नया संगठन बना कर बीजेपी के साथ तालमेल कर चुनाव लड़ने वाले रियो कहते हैं कि लोगों को पता है कि उनकी समस्याएं संवैधानिक दायरे में रह कर ही हल हो सकती हैं. लेकिन क्या यह तस्वीर विरोधाभासी नहीं है? इस सवाल पर रियो कहते हैं, "ऐसा नहीं है. आंदोलन और उग्रवाद अपनी जगह है. लेकिन लोकतंत्र के प्रति इलाके के लोगों का भरोसा कम नहीं हुआ है. देश के बाकी हिस्सों की तरह राज्य में चुनावों के प्रति उदासनीता नहीं आई है."
पर्यवेक्षकों का कहना है कि पूर्वोत्तर राज्यों ने लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व में लगातार भारी तादाद में शिरकत कर एक बार फिर विविधता में एकता वाली कहावत को चरितार्थ कर दिया है. देश के बाकी हिस्सों के लोग भी इलाके के लोगों की इस मानसिकता से सबक सीख सकते हैं. यह कहना ज्यादा सही होगा कि इस मामले में पूर्वोत्तर इलाका देश के बाकी राज्यों को एक नई राह दिखा सकता है.
खूबसूरत नहीं, बदसूरत दिखना चाहती हैं ये महिलाएं
पूर्वोत्तर भारत में आज भी कई कबीले रहते हैं. उनकी पहचान और संस्कृति एक दूसरे से काफी अलग है. अरुणाचल प्रदेश की अपातानी कबीले की महिलाएं तो दूर से ही पहचान में आ जाती है.
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सुंदरता छुपाओ
अपातानी कबीले की महिलाएं नाक में जेवर के बजाए लकड़ी की एक मोटी बाली जैसी पहनती हैं. आमतौर पर आभूषण सुंदरता को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल होते हैं, लेकिन अपातानी समुदाय की महिलाएं सुंदरता को छुपाने के लिए ऐसा करती हैं.
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अपहरण का डर
किस्से कहानियों के मुताबिक अपातानी कबीले की महिलाएं अपनी सुंदरता के लिए मशहूर थीं. पुराने समय में कई बार दूसरे समुदाय के पुरुष अपातानी महिलाओं का अपहरण भी करते थे. एक बुजुर्ग अपातानी महिला के मुताबिक अपहरण से बचने के लिए महिलाओं से नाक में लकड़ी पहनना शुरू किया.
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कुरूप दिखने की कोशिश
ऐसा कर महिलाओं ने खुद को कुरूप स्त्री के तौर पर दिखाने की कोशिश की. दोनों तरफ नाक छेदने के साथ साथ माथे पर एक लंबा काला टीका भी लगाया जाने लगा. ठुड्डी पर पांच लकीरें खीचीं जाने लगीं.
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पहचान
पंरपरा के रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक यह रिवाज पहुंचा. इस रिवाज को अपनाने वाली महिलाओं को स्थानीय समाज में सम्मान मिलता था. लेकिन 1970 के दशक के बाद धीरे धीरे यह परंपरा खत्म होने लगी है.
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विश्व धरोहर
अरुणाचल प्रदेश के सबसे ऊंचे जिले में रहने वाला अपातानी कबीला कृषि के जबरदस्त तरीकों के लिए भी मशहूर है. बेहतरीन पर्यावरण संतुलन के चलते ही यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर का दर्जा भी दिया.
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मछली पालन
ये मछली खेतों में छोड़ी जाती है. अपातानी घाटी में मछली पालन काफी प्रचलित है. यहां के लोग मछली, बांस, चीड़ और कृषि में संतुलन साध चुके हैं. जून और जुलाई में खेतों में छोड़ी जाने वाली ये मछलियां सितंबर व अक्टूबर में पकड़ी जाती हैं.
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इतिहास बनती एक संस्कृति
आज ज्यादातर अपातानी महिलाएं नाक में बड़े छेद कर लकड़ी की बाली नहीं पहनती. ये परंपराएं अब सिर्फ कबीले के बुजुर्गों में दिखाई पड़ती हैं.
रिपोर्ट: एपी/ओएसजे