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'लोकतंत्र चाहती है पाकिस्तानी सेना'

५ दिसम्बर २०१०

बनने के बाद से ही जिस देश ने सबसे ज्यादा वक्त फौजी संगीनों के साए में और सेना ने बैरक से ज्यादा वक्त सत्ता के गलियारे में बिताया है उसी देश की सेना कह रही है कि वह जम्हूरियत के साथ है. यह पाकिस्तान है.

तस्वीर: AP

पाकिस्तान की सेना ने शनिवार को कहा कि वह "लोकतंत्र की समर्थक है और ऐसी ही बनी रहेगी." सेना का यह दावा ऐसे वक्त में आया है जब विकीलीक्स पर जारी दस्तावेजों से पता चला है कि सेना प्रमुख जनरल अशफाक कियानी के लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुने गए राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के साथ मतभेद हैं. मतभेद यहां तक पहुंच चुके हैं कि जरदारी अपनी मारे जाने का अंदेशा भी जता चुके हैं. जरदारी ने तो अपने मारे जाने की सूरत में अपनी बहन को उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त करने की तैयारी भी कर ली थी.

इन दस्तावेजों से कई ऐसी बातें सामने आईं जिनसे सेना और सरकार के बीच गहरे मतभेद और सरकार पर सेना के दबदबे का पता चला. अब इन्हीं बातों के सामने आने से देश की बिगड़ी छवि को बचाने के लिए सेना ने मुंह खोला है. पाकिस्तान सेना की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, "संविधान के दायरे में रहते हुए सेना राजनीतिक व्यवस्था का समर्थन करती है."

विकीलीक्स के जरीये सामने आए अमेरिकी दूतावास के केबल की बातों पर सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल अतहर अब्बास ने कहा कि सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कियानी देश के राजनीतिक नेतृत्व और पीएमएलएन के नेता नवाज शरीफ समेत सभी राष्ट्रीय नेताओं का सम्मान करते हैं. अतहर अब्बास ने मीडिया से कहा, "पाकिस्तानी सेना संविधान के दायरे में रहते हुए राजनीतिक व्यवस्था का समर्थन करती है और सेना प्रमुख सभी नेताओं का सम्मान करते हैं." उन्होंने यह भी कहा कि देश के सामने मौजूद चुनौतियों से लड़ते वक्त सेना देशहित को सबसे ऊपर रखती है.

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः वी कुमार

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