भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. लेकिन यह जान कर भारी हैरत हो सकती है कि यहां चुनाव आयोग के समक्ष पंजीकृत 1,900 से ज्यादा राजनीतिक दलों में से 4,00 ने कभी कोई चुनाव ही नहीं लड़ा है.
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यह जान कर भारी हैरत हो सकती है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के चुनाव आयोग के समक्ष पंजीकृत 1,900 से ज्यादा राजनीतिक दलों में से 4,00 ने आज तक कभी कोई चुनाव ही नहीं लड़ा है. अब आयोग हर साल ऐसे दलों की छंटनी पर विचार कर रहा है. नोटबंदी के बाद कालेधन पर निगाह जमाए सरकार की निगाह अब इन पंजीकृत दलों पर है. जवाबदेही से बचने के लिए ही तमाम राजनीतिक दल सूचना के अधिकार यानी आरटीआई के दायरे में आने का विरोध कर रहे हैं.
कालाधनकोसफेदबनातेदल
देश के पंजीकृत राजनीतिक दलों को आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 13 ए के तहत आयकर से छूट मिलती है. उनके लिए दान या चंदा लेने की कोई अधिकतम सीमा तय नहीं है. उनको सिर्फ उस लेन-देन का ब्योरा चुनाव आयोग के समक्ष पेश करना होता है जो 20 हजार या उससे ज्यादा हो. इससे कम की रकम का कोई हिसाब उसे नहीं देना होता. इसी का लाभ उठा कर तमाम राजनीतिक दलों पर कालेधन को सफेद करने और चुनावों में बेहिसाब कालाधन खर्च करने के आरोप लगते रहे हैं. एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि राजनीतिक दलों को मिलने वाली 75 फीसदी रकम का स्त्रोत अज्ञात है. मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी का कहना है कि आयोग में पंजीकृत डमी राजनीतिक दल कालाधन को सफेद करने का जरिया हो सकते हैं. वह कहते हैं कि ऐसे दलों की जांच के बाद पंजीकृत दलों की सूची से उनके नाम हटा देने से उनको आयकर से मिलने वाली छूट भी खत्म हो जाएगी. अब आयोग ने राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारियों से ऐसे पंजीकृत दलों की सूची तैयार करने को कहा है जिन्होंने कभी भी चुनाव नहीं लड़ा है. उनको मिलने वाले चंदे व दान की रकम का भी ब्योरा मांगा गया है.
भारत में राजनीतिक भ्रष्टाचार
समय के साथ अपराधी भी राजनीति को अपना घर समझने लगे. 2014 के चुनावों के बाद नई संसद में पिछले दशकों में सबसे ज्यादा आपराधिक आरोपों वाले नेता चुने गए. भारत के कई प्रमुख नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप में मुकदमे चले हैं.
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लालू यादव
सालों तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू यादव पर भ्रष्टाचार के 63 मामले थे लेकिन चारा घोटाले के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा और अपना पद छोड़ना पड़ा. अपराध साबित होने के कारण उन पर पिछला चुनाव लड़ने पर रोक लग गई. इस समय वे जमानत पर बाहर हैं.
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बीएस येदियुरप्पा
कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को 2008 में बीजेपी को प्रांत में पहली बार सत्ता में लाने का श्रेय जाता है. लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने परिवारवाद शुरू कर दिया और अपने बच्चों को जमीन के अलॉटमेंट में पक्षपात किया. भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया और अपना पद भी छोड़ना पड़ा.
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ए राजा
चार बार संसद के सदस्य और दो बार भारत के संचार मंत्री रहे ए राजा 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में अभियुक्त हैं. मामले की जांच कर रही सीबीआई का कहना है कि 3000 करोड़ के इस घोटाले में मनपसंद लोगों को स्पेक्ट्रम के लाइसेंस दिए गए. 2011 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन 2012 से वे जमानत पर बाहर हैं.
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कणिमोझी
राजनीतिक भ्रष्टाचार का एक रूप फैसला लेने वाले राजनीतिज्ञों के करीबी लोगों के कारोबार में भागीदारी के रूप में सामने आया है. कणिमोझी डीएमके नेता एम करुणानिधि की बेटी हैं और आरोप है कि उनकी कंपनी कलाइनार टीवी में ए राजा की वजह से स्पेक्ट्रम लाइसेंस पाने वाले कारोबारियों का पैसा आया.
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सुरेश कलमाड़ी
कांग्रेस पार्टी के प्रमुख राजनीतिज्ञ के अलावा सुरेश कलमाड़ी देश के प्रमुख खेल अधिकारी भी रहे हैं. उनका नाम भारत में कॉमनवेल्थ कराने से जुड़ा है तो उसके आयोजन में हजारों करोड़ के घोटाले के साथ भी. कलमाड़ी और उनके सहयोगियों को धांधली के आरोप में गिरफ्तार किया गया. इस समय मामला अदालत में है.
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मधु कौड़ा
गरीब आदिवासी परिवार से आए झारखंड के मुख्यमंत्री मधु कौड़ा राजनीति की वजह से कोरड़पति बन गए. उनकी दिलचस्पी सिर्फ अपने प्रांत में होने वाले खनन में ही नहीं थी बल्कि अफ्रीकी देशों में भी. उनपर 4000 करोड़ की संपत्ति रखने का आरोप लगा, जो प्रांत के बजट का एक चौथाई था. इस समय वे जमानत पर हैं.
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पीवी नरसिंह राव
भ्रष्टाचार के आरोप तो प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर भी लगे लेकिन नरसिंह राव भारत के पहले प्रधानमंत्री थे जिनपर पद पर रहते हुए अदालत में आरोप पत्र दाखिल किए गए जिसमें उन्हें सहअभियुक्त बनाया गया था.
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मुख्य चुनाव आयुक्त का कहना है कि अब हर साल नियमित रूप से ऐसे दलों की गतिविधियों पर निगाह रखी जाएगी और सूची से उनका नाम हटाने का फैसला किया जाएगा. जैदी सवाल करते हैं, "आखिर पंजीकरण के बरसों बाद भी चुनाव लड़ने वाले दलों का मकसद क्या है? जब चुनाव नहीं लड़ना है तो पंजीकरण का क्या मतलब?" उनको अंदेशा है कि आयकर छूट की आड़ में ऐसे दल काले धन को सफेद बनाने में जुटे हैं. चुनावों को पारदर्शी और भ्रष्टाचारमुक्त बनाने के लिए आयोग ने सरकार से एक कानून बना कर वोटरों को पैसे बांटने और पेड न्यूज छपवाने को अपराध की श्रेणी में रखने में सिफारिश की है. जैदी कहते हैं, "इन दोनों को अपराध की श्रेणी में रखने पर दोषियों को बिना जमानत के गिरफ्तार किया जा सकता है." इसी तरह उन्होंने झूठा हलफनामा दायर करने वाले उम्मीदवारों की सजा छह महीने से बढ़ा कर दो साल करने को भी कहा है. चुनावों को साफ-सुथरा बनाने के लिए आयोग जनप्रतिनिधित्व कानून की भी समीक्षा कर रहा है. जैदी कहते हैं, "चुनावों के दौरान वोटरों को पैसे बांटना और पेड न्यूज छपवाना अब आम हो गया है. इससे कई किस्म की समस्याएं पैदा हो रही हैं."
विरासत की नेतागिरी
बीजेपी और कम्युनिस्ट पार्टियों को छोड़ दें तो भारतीय लोकतंत्र की प्रमुख पार्टियां वंशवाद के सहारे चल रही हैं. एक नजर ऐसी ही पार्टियों और विरासत में नेतागिरी पाने वाले नेताओं पर.
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राहुल गांधी
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बेटे राहुल गांधी ने अपनी मां सोनिया गांधी से पार्टी की बागडोर संभाली. सोनिया ने 19 साल तक पार्टी का नेतृत्व किया. हालांकि बहुत से लोग राहुल की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाते हैं. पार्टी को लगातार वंशवाद के आरोपों को भी झेलना पड़ता है.
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अखिलेश यादव
मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव बेटा होने के कारण पद पर आए. लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने पिता के तिकड़म के विपरीत स्वच्छ और भविष्योन्मुखी प्रशासन देने की कोशिश की है.
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तेजस्वी यादव
बिहार के मुख्यमंत्री माता-पिता की संतान तेजस्वी यादव बिहार के उप मुख्यमंत्री रह चुके हैं. नीतीश सरकार से अलग होने के बाद बिहार सरकार और बीजेपी पर खूब हमलावर रहते हैं. पिता लालू यादव भ्रष्टाचार के दोषी होने के कारण चुनाव लड़ नहीं सकते.
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महबूबा मुफ्ती
जम्मू-कश्मीर की मौजूदा मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री सैयद मुफ्ती की बेटी हैं और पिता द्वारा बनाए गए राजनीतिक साम्राज्य को संभालने और पुख्ता करने की कोशिश में हैं.
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उमर अब्दुल्लाह
उमर अब्दु्ल्लाह दादा शेख अब्दुल्लाह और पिता फारूक अब्दुल्लाह की राजनीतिक विरासत संभाल रहे हैं. वे जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे हैं और पिछला चुनाव हारने के बाद वे प्रांत में विपक्ष के नेता हैं.
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सुप्रिया सूले
सुप्रिया सूले प्रमुख मराठा नेता शरद पवार की बेटी हैं और सांसद हैं. पिछले चुनाव तक पिता स्वयं सक्रिय राजनीति में थे, इसलिए अभी तक सुप्रिया को राजनीतिक प्रशासनिक अनुभव पाने का मौका नहीं मिला है.
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एमके स्टालिन
द्रमुक नेता और तमिलनाडु के कई बार मुख्यमंत्री रहे करुणानिधि ने अपने बेटे स्टालिन को अपना उत्तराधिकारी चुना है. 63 साल के स्टालिन पार्टी की युवा इकाई के प्रमुख हैं और युवा नेता माने जाते हैं.
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अनुराग ठाकुर
अनुराग ठाकुर हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर से भारतीय जनता पार्टी के सांसद हैं. उनके पिता प्रेम कुमार धूमल भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. अनुराग ठाकुर बीसीसीआई के प्रमुख भी रह चुके हैं.
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अशोक चव्हाण
अशोक चव्हाण महाराष्ट्र में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं और वह राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उनके पिता शंकर राव चव्हाण ने भी दो बार बतौर मुख्यमंत्री राज्य की बागडोर संभाली थी.
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चिराग पासवान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे हैं और सांसद हैं. बिहार में रामविलास पासवान की दलित राजनीति को चमकाना और उसे आधुनिक चेहरा देना उनकी जिम्मेदारी है.
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दुष्यंत चौटाला
वे देश के उपप्रधानमंत्री और हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे देवी लाल की खानदानी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. उनके दादा ओमप्रकाश चौटाला भी मुख्यमंत्री थे, लेकिन अब भ्रष्टाचार के लिए जेल काट रहे हैं.
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सुखबीर बादल
पिता प्रकाश सिंह बादल ने खानदानी राजनीति की नींव रखी. पिता बादल की सरकार में उनके बेटे सुखबीर पंजाब के उपमुख्यमंत्री रहे. बादल की राजनीतिक पूंजी को बचाना का भार उन पर है.
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आरटीआईकाविरोध
तमाम राजनीतिक दल सूचना के अधिकार के दायरे में शामिल किए जाने का विरोध कर रहे हैं. सीपीएम जैसी सर्वाहारा पार्टी भी इसके सख्त खिलाफ है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका के जवाब में केंद्र सरकार ने कहा था कि राजनीतिक दलों को इस कानून के दायरे में लाने पर उनका अंदरुनी और राजनीतिक कामकाज प्रभावित होगा. केंद्रीय सूचना आयोग ने वर्ष 2013 में कांग्रेस, बीजेपी और सीपीएम समेत छह दलों को उक्त कानून के दायरे में लाने का फैसला किया था. लेकिन तमाम दलों ने उसका विरोध करते हुए उक्त आदेश नहीं माना. सीपीएम नेता वृंदा कारत कहती हैं कि उनकी पार्टी का कामकाज पारदर्शी है और वह हर साल अपने आय-व्यय का लेखा-जोखा चुनाव आयोग के समक्ष पेश करती रही है. वृंदा कहती हैं, "राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार के दायरे में लाने पर सरकार को उनकी जासूसी करने और उन्हें परेशान करने का मौका मिल जाएगा. हम कभी ऐसा नहीं होने देंगे." लेकिन क्या राजनीतिक दलों को नकदी की बजाय महज चेक या आनलाइन ट्रांसफर के जरिए चंदा नहीं लेना चाहिए? इस सवाल पर उनका कहना है कि माकपा गरीबों, मजदूरों व किसानों की पार्टी है. हम घर-घर जाकर पांच-दस रुपए चंदा लेते हैं. हमें चंदा देने वालों के पास बैंक खाते तक नहीं हैं.
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि दाल में कुछ काला तो जरूर है. एक विश्लेषक प्रोफेसर मंजीत गोस्वामी कहते हैं, "सरकार और आयोग को पहले ही इस बात की जांच करना चाहिए थी कि आखिर बरसों से पंजीकरण कराने वाले दल चुनाव क्यों नहीं लड़ रहे हैं. उनका मकसद क्या है?" वह कहते हैं कि आयकर से मिली छूट का लाभ उठा कर ऐसे दल बेहिसाब रकम बटोरते रहे हैं. ऐसे में कालेधन को सफेद बनाने के अंदेशे से इंकार नहीं किया जा सकता. विश्लेषकों का कहना है कि अब सरकार को ऐसे दलों के खातों की जांच करनी चाहिए और जरूरत पड़े तो इसके लिए मौजूदा कानूनों में संशोधन करना चाहिए. ऐसा होने पर ही चुनावी खर्च और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकेगा.