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वजूद की खातिर वोट से लड़ेंगे बे-देश लोग

१६ अप्रैल २०११

भारत बांग्लादेश की सीमा पर कुछ भूखंड हैं. वहां के लोग किसी देश के नागरिक नहीं. कैदियों सी जिंदगी जी रहे इन लोगों ने अब वोट को हथियार बनाने का फैसला किया है.

मैमाना खातूनतस्वीर: DW

यह सीमा का बंटवारा करने वालों की अदूरदर्शिता की मिसाल है. पश्चिम बंगाल में भारतीय सीमा के भीतर बसे 55 बांग्लादेशी भूखंडों में रहने वाले कोई सवा लाख लोग कहने को तो बांग्लादेश के नागरिक हैं. लेकिन वे मौलिक अधिकारों से भी वंचित हैं. उन्हें वोट डालने का भी अधिकार नहीं है. यह बात अलग है कि राजनीतिक दलों की सहायता से इनमें से कइयों ने भारतीय मतदाता पहचान पत्र बनवा लिए हैं. लेकिन उनका परिचय पत्र बनवाने वाले दलों ने अब तक उनका इस्तेमाल वोट बैंक की तरह ही किया है.

तस्वीर: AP

ये तमाम भूखंड कूचबिहार और जलपाईगुड़ी जिलों में फैले हैं. इसी तरह, बांग्लादेश की सीमा के भीतर 111 भारतीय भूखंडों में रहने वाले लाखों लोग भी न वोट डाल सकते हैं, न उन्हें शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी नागरिक सुविधाएं मिलती हैं. करीब चार दशकों से इन भूंखडों की अदला-बदली की बात चल रही है. लेकिन अब तक इस दिशा में कोई ठोस प्रगति नहीं हो सकी है.

अपनी लड़ाई आप लड़ेंगे

अब तो राजनीतिक दलों के वादों और झूठे दिलासों से तंग आकर कूचबिहार जिले की दिनहाटा विधानसभा सीट पर इन लोगों ने अपना एक उम्मीदवार ही मैदान में उतार दिया है. इस विधानसभा क्षेत्र के तहत 29 बांग्लादेशी भूखंड हैं और वहां रहने वाले 14 हजार लोगों के नाम भारतीय वोटर लिस्ट में दर्ज हैं. इस सीट पर 18 अप्रैल को मतदान होना है. मैमना खातून इन हजारों लोगों के अधिकारों के नाम पर चुनाव मैदान में हैं. वह जनवादी फॉरवर्ड ब्लॉक के बैनर तले चुनाव लड़ रही हैं.

तस्वीर: DW

मैमना का जन्म तो भारत में हुआ, लेकिन उनकी शादी 13 साल पहले भारतीय सीमा के बांग्लादेशी भूखंड पोआतूरकुठी में रहने वाले रहमान मियां से हो गई. मैमना भी तब से वहीं रहती हैं. भारत-बांग्लादेश भूखंड विनिमय समन्वय समिति ने भी मैमना की उम्मीदवारी को समर्थन दिया है.

कैदी जैसी जिंदगी

भारतीय सीमा में बसे बांग्लादेशी भूखंडों और बांग्लादेश की सीमा में स्थित भारतीय भूखंडों में रहने वाले लाखों लोगों की हालत कैदियों जैसी है. वे कानूनी तरीके से न तो अपने मूल देश में जा सकते हैं और न ही अपने मौलिक अधिकारों का इस्तेमाल कर सकते हैं. ये लोग लंबे समय से इन भूखंडों की अदला-बदली की मांग कर रहे हैं.

तस्वीर: AP

इनका कहना है कि भारतीय सीमा में बसे बांग्लादेशी भूखंडों को भारत का हिस्सा मान लिया जाए और सीमा पार बसे भारतीय भूखंडों को बांग्लादेश का. लेकिन कई दौर की बातचीत के बावजूद यह मसला अब तक जस का तस है. भूखंड विनिमय समन्वय समिति के संयोजक दीप्तिमान सेनगुप्ता बताते हैं, "साल1974 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बांग्लादेश के मुजीबुर रहमान ने इन भूखंडों की अदला-बदली पर सहमति जताई थी. लेकिन उसके बाद अब तक कुछ नहीं हुआ."

नेताओं के वादों पर

इलाके में चुनाव प्रचार करने आए केंद्रीय वित्त मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रणब मुखर्जी कहते हैं, "हमने भारतीय भूखंडों में रहने वाले लोगों की समस्याओं को दूर करने की दिशा में पहल की है. दोनों देशों के लोगों की शिकायत है कि इन भूखंडों में मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं. लेकिन अब जल्दी ही इस दिशा में ठोस उपाय किए जाएंगे."

तस्वीर: DW

दिनहाटा सीट पर अपनी किस्मत आजमा रही मैमना इन समस्याओं का जिक्र करते हुए कहती हैं कि हम कहने को तो बांग्लादेशी नागरिक हैं, लेकिन हमारा गांव चारों ओर से भारत से घिरा है. भारत हमारे लिए विदेश है और हम अपने मूल देश तक जा नहीं सकते. हम नागरिकताविहीन लोग हैं.

दिनहाटा के स्कूल में बच्चों के दाखिले के समय मैमना को अपने पति की नागरिकता के बारे में झूठ बोलना पड़ा था. अगर वह बता देतीं कि उनका घर बांग्लादेशी भूखंड में है तो दाखिला ही नहीं मिलता. एक अन्य बांग्लादेशी भूखंड यानी गांव मशालडांगा के साहेब अली कहते हैं, "हमारा जीवन बेहद कठिन है. हमने राजनीतिक दलों की सहायता से फर्जी तरीके से राशन कार्ड, वोटर कार्ड और ऐसे दूसरे कागजात हासिल किए हैं. इनकी सहायता से हम किसी तरह जीवन गुजार रहे हैं."

बन गए भारतीय वोटर

कूचबिहार और जलपाईगुड़ी जिलों में फैले इन भूखंडों के हजारों लोग ने अपने नाम भारत की मतदाता सूची में भी दर्ज करा लिए हैं. जिला प्रशासन मानता है कि भारत में स्थित बांग्लादेशी भूखंडों के लगभग 30 फीसदी नागरिकों ने राजनीतिक दलों की सहायता से भारतीय वोटर कार्ड हासिल कर लिए हैं.

अब इन लोगों को उम्मीद है कि जीतने के बाद मैमना उनकी समस्या को विधानसभा में उठाएंगी. पहले इन भूखंडों के लोग लेफ्ट फ्रंट को वोट देते थे. लेकिन उनमें इस बात पर भारी नाराजगी है कि बरसों तक वोट बैंक के तौर पर उनका इस्तेमाल करने के बावजूद सीपीएम या लेफ्ट फ्रंट ने उनकी समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दिया.

मैमना कहती हैं कि जीतने के बाद उनका पहला काम दिल्ली पर इस बात के लिए दबाव बनाना होगा कि वह ढाका के साथ बातचीत कर इन भूखंडों की अदला-बदली की प्रक्रिया तेज करे.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः वी कुमार

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