वरुण को मिला 14वां चांद
१६ जुलाई २०१३अनुमान लगाया गया है कि इस चांद का व्यास कोई 20 किलोमीटर है और यह करीब एक लाख किलोमीटर की दूरी से वरुण ग्रह का चक्कर लगा रहा है. रहस्यों से भरे इस ग्रह का यह 14वां चांद है.
कैलीफोर्निया में माउंटेन व्यू की सेटी इंस्टीट्यूट के खगोलविज्ञानी मार्क शोवाल्टर का कहना है कि उन्होंने जब आकाशगंगा की गहराई से पड़ताल करनी शुरू की, तो उन्हें इस चांद की छवि मिली. वह प्रतिष्ठित हबल टेलीस्कोप पर काम करते हैं.
उनका कहना है, "हम काफी समय से डाटा खंगाल रहे थे, जिसके बाद मैंने कहा कि चलो, कुछ और गहराई में झांकते हैं. मैंने अपना प्रोग्राम बदला और सिर्फ बाहरी छल्ले पर रुकने की बजाय मैंने उससे परे डाटा जमा करना शुरू किया. इस दौरान मैं घंटे भर अपने कंप्यूटर से दूर रहा और इसे अपना काम करने दिया. जब मैं लौटा और छवि देखी, तो यह बिंदी दिखाई दी, जो नहीं होनी चाहिए थी."
वरुण से जुड़े दूसरे दस्तावेजों और आंकड़ों की बारीकी से पड़ताल के बाद यह निश्चित किया गया कि यह उसका एक उपग्रह यानी चांद है. शोवाल्टर अपने साथियों के साथ इसका नाम तलाश रहे हैं, जिसे अंतरराष्ट्रीय खगोलविज्ञानी संघ को दिया जाएगा. नाम की पुष्टि यही संगठन करता है.
शोवाल्टर का कहना है, "मैं इस बारे में ज्यादा नहीं कह सकता. सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि यह रोमन और ग्रीक मान्यताओं पर आधारित होगा और इसका संबंध इस ग्रह से होगा. वरुण ग्रह को सागरों का देवता माना जाता है."
वरुण का पता लगने के कुछ ही समय बाद 1846 में इसके सबसे बड़े चांद ट्रिटॉन का पता लगा. नेराइड नेप्च्यून का तीसरा बड़ा चांद है, जिसके बारे में वैज्ञानिकों ने 1949 में खुलासा किया.
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वोयेजर 2 अंतरिक्षयान ने वरुण के दूसरे सबसे बड़े चांद प्रोटियुस और पांच छोटे चांदों नायाद, थालासा, डेस्पीना, गालाटिया और लारिसा का पता लगाया.
जमीन पर स्थित टेलीस्कोपों से हालिमेडे, लाओमेडिया, साओ और नेस्टर नाम के चांदों का पता 2002 में लगा. एक और चांद सामाथे का पता 2003 में लगाया गया.
नए खोजे गए चांद को फिलहाल एस/2004 एन1 कहा जा रहा है और यह लारिसा और प्रोटियुस के बीच है. यह करीब 23 घंटे में वरुण का एक चक्कर लगा रहा है.
एजेए/ओएस (रॉयटर्स)