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वर्ल्ड कप में टॉस की अहमियत

१५ फ़रवरी २०११

भारतीय उप महाद्वीप में अकसर विरोधी टीमों को बड़े स्कोर के दबाव में तोड़ने की कोशिश की जाती है, इसलिए टॉस जीतने पर पहले बल्लेबाजी करने की कोशिश होती है. मैचों में टॉस की भूमिका हमेशा बहुत ज्यादा मानी जाती है.

तस्वीर: AP

भारत और आस पास के देशों की पिचों पर वैसे भी टॉस की अहमियत बढ़ जाती है, क्योंकि यह माना जाता है कि बड़े स्कोर का पीछा करते हुए बल्लेबाजों पर अतिरिक्त दबाव होता है. वर्ल्ड कप के दौरान हर कप्तान की कोशिश होगी कि वह टॉस जीतकर विरोधी टीम पर अतिरिक्त दबाव बनाने की कोशिश करे.

शुरुआत अहमतस्वीर: AP

1992 वर्ल्ड कप में मार्टिन क्रो की न्यूजीलैंड टीम ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी का दस्तूर बनाया. वहीं 1996 वर्ल्ड कप में अर्जुन रणातुंगा की कप्तानी में श्रीलंका ने टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी का नियम बना लिया. श्रीलंका ने टूर्नामेंट का हर मैच जीता और फाइनल में भी टॉस जीतकर पहले फील्डिंग ही चुनी और खिताब पर कब्जा जमाया.

वर्ल्ड कप 1999 में पाकिस्तान की गेंदबाजी बेहद मजबूत थी और इसी के दम पर उसने फाइनल तक का सफर तय किया. क्योंकि यह वर्ल्ड कप इंग्लैंड में हो रहा था, इसलिए पाकिस्तान ने टॉस जीतकर गेंदबाजी चुनने को अपनी सफलता का मंत्र बना लिया था.

वर्ल्ड कप 2011 की बात करें तो जिन टीमों की गेंदबाजी लाइनअप उनकी बल्लेबाजी से दमदार है, वे यहां टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी चुनकर बड़ा स्कोर बनाने की कोशिश करेंगी, जिससे बाद में विरोधी टीमों पर कसी हुई गेंदबाजी से दबाव बनाया जाए. टॉस जीतकर अकसर यही फॉर्मूला अपनाया जाता है, लेकिन कभी कभी खास मौसम में डे नाइट मैचों में मैदान में ओस पड़ने के कारण कप्तान टॉस जीतने के बाद पहले गेंदबाजी चुनते हैं.

बाद में ओस के कारण गेंद पर पकड़ बनाना मुश्किल होता है और बल्लेबाजी कर रही टीम को आसानी होती है. लेकिन वर्ल्ड कप के दौरान गर्मियों में ओस नहीं होगी इसलिए यह फॉर्मूला भी लागू नहीं होगा. लिहाजा ज्यादातर टीमें टॉस जीतकर बल्लेबाजी करना चाहेंगी.

भारत के वर्ल्ड कप विजेता कप्तान कपिल देव ने भी कहा है कि इस वर्ल्ड कप में टॉस की खास भूमिका होगी. कपिल के मुताबिक अगर भारतीय टीम टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करते हुए 300 रन के आस पास स्कोर कर ले तो फिर बाकी का काम आसानी से गेंदबाज कर सकते हैं.

उन्होंने कहा कि इसका उल्टा भी इतना ही सही है कि अगर विरोधी टीम टॉस जीत ले और भारत को 300 रनों का लक्ष्य दे तो इस स्थिति में भारतीय टीम के लिए परेशानी हो सकती है.

यानी बात फिर टॉस की अहमियत पर आ गई. हर मैच में टॉस जीतने के लिए किस्मत का पूरी तरह साथ होना जरूरी है और अगर पिछले कुछ मैचों पर नजर डालें तो भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने लगातार टॉस हारे हैं.

वर्ल्ड कप का इतिहास भी टॉस की महत्ता बयान करता है. हालांकि अब तक हुए नौ वर्ल्ड कप फाइनल में पांच बार टॉस हारने वाली टीम ने खिताब जीता है, जबकि चार बार टॉस जीतकर खिताब पर कब्जा हुआ है. वैसे वर्ल्ड कप हर बार अलग अलग परिस्थितियों में खेला जाता है.

इसलिए हर बार टॉस जीतने से फायदा नहीं होता, जबकि कभी कभी कप्तान से फैसला लेने में भी गलती हो जाती है. बहरहाल इस वर्ल्ड कप में टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने पर ही ध्यान दिया जाएगा.

रिपोर्टः शराफत खान

संपादनः ए जमाल

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