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वामपंथियों ने की मजबूत लोकपाल की पैरवी

२१ जुलाई २०११

वामपंथी पार्टियों ने प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने की पैरवी की है. उनका कहना है कि भारत में उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार से निपटना होगा. हालांकि सीपीआई इस मुद्दे पर अन्ना हजारे के अनशन के खिलाफ है.

तस्वीर: UNI

वामपंथी पार्टियों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों ने जल्द ही मजबूत, प्रभावी और स्वतंत्र लोकपाल के लागू होने की जरूरत पर जोर दिया है. सीपीएम के महासचिव प्रकाश करात ने कहा कि पिछली चार सरकारों के लोकपाल विधेयक में प्रधानमंत्री को इसके दायरे में लाने का प्रावधान था. इस तरह की कोशिशें एनडीए, संयुक्त मोर्चा और वीपी सिंह की सरकारों के दौरान हुई.

करात ने कहा, "लोकपाल के चार बिल 1989 में, 1996 में और दो बार एनडीए सरकार के तहत लाए गए. इनमें प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखने की बात शामिल थी." उन्होंने 'भ्रष्टाचार और कॉरपोरेट लूट' विषय पर एक कार्यक्रम में यह बात कही.

सीपीआई के महासचिव एबी वर्धन ने भी प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने की हिमायत की. उन्होंने कहा, "हालांकि कुछ बचाव के उपाय हो सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट को प्रधानमंत्री के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने से पहले इस बात का जायजा लेना होगा कि क्या पहली नजर में ऐसा कोई मामला बनता है. दरअसल पूरी दुनिया में प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों की जांच होती है और उन्हें सजा भी दी जाती है. ऐसा भ्रष्टाचार और अन्य मामलों में होता है."

करात ने कहा कि भ्रष्टाचार से निपटने की खातिर कानून बनाने के लिए यह बिल्कुल सही समय है. उनके मुताबिक, "भ्रष्टाचार के खिलाफ ज्यादा से ज्यादा लोग सड़कों पर आ रहे हैं. उनका कहना है कि वे अब भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं कर सकते. ऐसे में हमें भ्रष्टाचार से निपटने के लिए कई कदम उठाने होंगे."

16 अगस्त से फिर अनशन पर बैठेंगे अन्ना हजारेतस्वीर: UNI

'अनशन की जरूरत नहीं'

उधर वर्धन ने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे को सलाह दी कि वह 16 अगस्त से अनशन पर न बैठें क्योंकि इससे मामले और पेचीदा होंगे. उन्होंने कहा, " मुझे नहीं लगता कि 16 अगस्त से अन्ना साहब का अनशन करने का कदम कोई समझदारी वाला है. हालांकि आप जोड़ घटाव के साथ बहुत से कदम उठाते रहे हैं और उनमें से कई कारगर रहे हैं, लेकिन ऐसा कोई कदम मत उठाइए जिससे लगे कि आप संसद पर दवाब बना रहे हैं या उसके काम में दखलंदाजी कर रहे हैं."

सीपीआई नेता ने कहा, " एक कानून ऐसे पास नहीं हो सकता. संविधान की प्रक्रियाओं का पालन करते हुए कानून को संसद से ही गुजरना होगा. हमारे यहां अब भी एक संविधान है और हमें इसका सम्मान करना होगा." अप्रैल में अन्ना हजारे के 96 घंटे के अनशन के बाद ही सरकार लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने पर राजी हुई. हालांकि इसके लिए बनाई गई मंत्रियों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों की साझा कमेटी में काफी मतभेद रहे. लेकिन सरकार मॉनसून सत्र में लोकपाल विधेयक संसद में पेश करने का वादा करती रही है.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः ओ सिंह

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