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वायरस से लड़ने में शार्क की मदद

२१ सितम्बर २०११

शार्क बहुत आदिम जंतु हैं लेकिन उनके बदन से एक ऐसा परिष्कृत पदार्थ पैदा होता है जिसमें हेपेटाइटिस से लेकर पीला बुखार तक कई मानवीय वायरस से लड़ने की संभावनाएं मौजूद हैं.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

स्क्वैलेमीन नामक यह यौगिक पदार्थ 1993 में खोजा गया था, लेकिन नैशनल एकैडमी ऑफ साइंसेस में प्रकाशित स्टडी में पहली बार मानवीय वायरस से लड़ने में इसके संभावित उपयोग की जांच की गई है. डॉगफिश शार्क की लीवर से तैयार स्कवैलेमीन का शोधकर्ताओं ने अध्ययन किया और पाया कि ये वायरल संक्रमण को रोक सकते हैं या उनपर कंट्रोल कर सकते हैं. कुछ मामलों में तो वे जानवरों की बीमारी दूर करते भी दिखे.

परियोजना की शुरुआत

इस परियोजना की शुरुआत तब हुई जब मुख्य रिसर्चर माइकल जासलॉफ ने, जो जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर में सर्जरी और पेड्रियाटिक्स के प्रोफेसर हैं, स्क्वैलेमीन के सैंपल पूरे अमेरिका में टेस्ट के लिए भेजे. 1995 में स्क्वैलेमीन को प्रयोगशाला में बनाना शुरू किया गया था, तब से वह सीधे शार्क के टिश्यू से नहीं निकाला जाता. शोध में कहा गया है कि टिश्यू के गुण दिखाते हैं कि वह "इंसानी खून में डेंगू वायरस के संक्रमण को और इंसानी लीवर की कोशिकाओं में हेपेटाइटिस बी और डी के संक्रमण को रोकता है."

जानवरों के ऊपर किए गए शोध से पता चला है कि यौगिक पदार्थ पीत ज्वर, इस्टर्न इक्वीन एनसेफेलाइटिस वायरस और हर्पीस वायरस के एक प्रकार मूरीन साइटोमेगालो वायरस पर नियंत्रण करता है. जासलॉफ कहते हैं, "यह निश्चित तौर पर संभावनाओं वाला ड्रग है और यह असर की प्रक्रिया और रसायनिक संरचना में किसी दूसरे तत्व से अलग है जिनकी इस समय वायरल इंफेक्शन के इलाज के लिए जांच चल रही है." वे कहते हैं, "हमने अभी तक किसी भी जानवर में जिनपर हमने अध्ययन किया है, स्क्वैलेमीन का डोज तय नहीं किया है और हम अभी तक नहीं जानते कि इलाज में इनका अधिकतम लाभ कितना हो सकता है."

हिपेटाइटिस बी और डी से बचा सकती हैं शार्कतस्वीर: Creative Commons/Wikipedia

इंसानों पर परीक्षण

जासलॉफ का कहना है कि उनकी टीम को एंटीवायरल एजेंट के रूप में स्क्वैलेमीन की उपयोगिता पर पूरा भरोसा है और अब वे इसका प्रयोग इंसानों पर भी करना चाहते हैं. स्क्वैलेमीन इंसानों के लिए सुरक्षित है और उसे कैंसर तथा नेत्र रोग के उपचार के लिए संभावित दवा समझा गया है. इस समय कुछ लोगों पर उसका क्लिनिकल ट्रायल भी चल रहा है.जासलॉफ ने कहा है कि "पहले के कई ट्रायल में स्क्वैलेमीन ने महत्वपू्र्ण और आशाजनक परिणाम दिए हैं, कैंसर के कुछ रूपों और डायबेटिक रेटेनोपैथी में भी." स्क्वैलेमीन की खोज 1993 में प्रो. जासलॉफ ने ही की थी. उन्हें मैढ़क की खाल के प्राकृतिक एंटीबायटिक गुणों की खोज के लिए भी जाना जाता है.

रिपोर्ट: एएफपी/महेश झा

संपादन: वी कुमार

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