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वायु प्रदूषण से लड़ने चला चीन

४ अगस्त २०१३

चीन ने हाल ही में वायु प्रदूषण ने निपटने के लिए एक बड़ी योजना बनाई है. इस कदम से यह तो पता चला गया है कि चीन के लिए यह कितना अहम हो गया है लेकिन जानकारों का कहना है कि बदलाव जड़ से करने होंगे.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

चीन इसे वायु प्रदूषण घटाने की "सबसे विशाल और सख्त योजना" बता रहा है. सरकारी अखबार "चायना डेली" के मुताबिक चीनी सरकार 2017 तक 277 अरब डॉलर खर्च करने जा रही है. कुछ इलाकों में 2.5 माइक्रोमीटर वाले कणों की बेहद सख्त सीमा लागू करने की योजना है. इस आकार से छोटे कण बेहद नुकसानदेह होते हैं क्योंकि यह फेफड़ों में अंदर तक चले जाते हैं.

चीन सरकार की इस योजना को एयरबोर्न पॉल्यूशन प्रीवेंशन एंड कंट्रोल एक्शन प्लान नाम दिया गया है. इस योजना में उत्तरी चीन को लक्ष्य बनाया गया है, खासतौर से बीजिंग, तियाजिन जैसे शहर और हेबेई प्रांत. सरकार इन इलाकों में 2017 तक वायु में उत्सर्जन की मात्रा 2012 के मुकाबले 25 फीसदी घटाना चाहती है.

लोगों की मांग

सरकार की तरफ से योजना का एलान होने के बाद राज्य परिषदों ने वायु प्रदूषण पर काबू के लिए 10 कदम उठाए हैं. नए नियमों में भारी उद्योगों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के साथ ही स्वच्छ ऊर्जा की आपूर्ति प्रणाली विकसित करना भी शामिल है. गैर सरकारी संगठन चायना डॉयलॉग से जुड़ी चीन की जानकार इसाबेल हिल्टन के मुताबिक प्रदूषण का मुद्दा सरकार के लिए एक बड़ी राजनीतिक समस्या बन गया है. हिल्टन ने डीडब्ल्यू को बताया कि कुल मिला कर चीन का खराब होता पर्यावरण लोगों के बढ़ते विरोध का कारण बन गया है और सरकार राजनीतिक स्थिरता को लेकर इस मामले पर बेहद चिंतित है. हिल्टन ने कहा, "कई सालों से अधिकारी लोगों से सच्चाई छिपाते रहे लेकिन आज कोई भी हाथ में लेकर इस्तेमाल किया जाने वाले मॉनीटर खरीद सकता है और तुरंत बता सकता है कि आप जिस हवा में सांस ले रहे हैं वह कितनी बुरी है. अब इसे छिपाना मुश्किल है और लोग कार्रवाई की मांग कर रहे हैं."

नई योजना के बारे में अभी यह नहीं बताया गया है कि पांच साल का लक्ष्य पूरा कैसे होगा. इससे यह सवाल उठ रहे हैं कि नए नियमों को कौन लागू करेगा और यह कैसे होगा. हिल्टन की दलील है कि पर्यावरण सुरक्षा मंत्रालय काफी कमजोर है और, "उसमें इतना दम नहीं कि बड़े आर्थिक और कारोबारी हितों से जूझ सके." जानकारों का कहना है कि भले ही मंत्रालय नियम और मानक तय कर दे लेकिन उनकी खुल कर अवहेलना होती है और प्रदूषण के लिए जुर्माना इतना मामूली होता है कि उसका कोई असर ही नहीं होता.

समय से पहले लाखों मरे

चीन ऊर्जा के लिए कोयले पर बहुत ज्यादा निर्भर रहा है और इसने पिछले कुछ दशकों में चीन को ऐतिहासिक आर्थिक विकास हासिल करने में बड़ी मदद की है. हालांकि इस विकास की बड़ी ऊंची कीमत चुकानी पड़ी है. मशहूर विज्ञान पत्रिका लैंसेट में दुनिया पर रोगों के बोझ के बारे में छपी सालाना रिपोर्ट के मुताबिक केवल 2010 में वायु प्रदूषण के कारण 12 लाख लोग असमय मौत का शिकार हुए. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि घर से बाहर का प्रदूषण चीन में असमय मौतों के पीछे चौथा सबसे बड़ा कारण है. असमय मौत की वजहों में पोषण, उच्च रक्तचाप और धूम्रपान शामिल हैं.

हिल्टन का मानना है कि इसका सीधा संबंध विकास के उस मॉडल से है जिस पर देश पिछले 30 सालों से चल रहा है. हिल्टन ने बताया, "चीन में सालाना कोयले की खपत करीब 4 अरब टन है, 1990 की तुलना में यह एक अरब टन बढ़ा है." इसके अलावा उद्योग और सड़क यातायात से होने वाला प्रदूषण भी बहुत तेजी से बढ़ा है. 2006 में अमेरिका को पीछे छोड़ चीन सबसे ज्यादा कार्बनडायोक्साइड पैदा करने वाला देश बना और तब से अब तक यह उस जगह पर कायम है. इसी महीने की शुरुआत में एक अमेरिकी साइंस जर्नल ने एक रिसर्च के आधार पर बताया कि हुआई नदी के उत्तरी हिस्से के शहरों में सर्दी से लड़ने के लिए मुफ्त में कोयला बांटने की वजह से वहां के 50 करोड़ लोगों की जीवन प्रत्याशा साढ़े पांच साल कम हो गई. चीन सरकार यह नीति दशक भर से चला रही है. शिंघुआ यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर ली होंगबिन इस रिसर्च में शामिल रहे हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा कि उम्मीद है कि चीनी अधिकारियों ने अब महसूस कर लिया है कि मानव जीवन को प्रदूषण की कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है.

जड़ से बदलाव की जरूरत

कई जानकारों का मानना है कि चीन के ऊर्जा ढांचे में पूरी तरह से बदलाव होने में कई साल लगेंगे. प्रदूषण के ऊंचे स्तर ने चीन की बढ़ती अर्थव्यवस्था पर भी असर डाला है. मैसेचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों का मानना है कि ओजोन और सूक्ष्म कणों की कीमत अर्थव्यवस्था के लिए 1975 में 22 अरब डॉलर थी जो 2005 में 112 अरब डॉलर पर पहुंच गई.

कुल मिला कर लगता है कि चीन के वायु प्रदूषण की समस्या का तुरंत कोई हल नहीं होने वाला है. हालांकि लोगों के विरोध और स्वास्थ्य पर होने वाले असर ने इसे सरकार की प्राथमिकता में जरूर शामिल करा दिया है. हिल्टन का मानना है कि एक और कारण है जो चीन को प्रदूषण के खिलाफ लड़ने के लिए उकसा रहा है और वह है राष्ट्रीय गौरव. हिल्टन ने कहा, "बीजिंग एक ऐसे देश की राजधानी है जो खुद को आर्थिक महाशक्ति के रूप में तैयार कर रहा है. यह किसी सरकार के लिए बेहद शर्मनाक है कि एक ओर तो वह आर्थिक करिश्मे को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है लेकिन उसकी राजधानी ही रहने के लायक नहीं, ना सिर्फ बाहरी लोगों के लिए बल्कि चीनी लोगों के लिए भी."

रिपोर्टः गाब्रिएल डोमिन्ग्वेज/एनआर

संपादनः आभा मोंढे

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