अगर हवा को साफ करने के लिए कुछ किया नहीं गया तो 2050 तक सालाना 60 लाख से ज्यादा लोगों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से हो सकती है. जर्मनी में रिसर्च.
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महानगरों के आसमान में धुएं का गुबार. घनी आबादी वाले इलाकों में सूक्ष्म कणों से भरी धूल की चेतावनी. जहरीली हवा लोगों को बीमार कर रही है. दुनिया भर में हर साल 30 लाख से ज्यादा लोगों की वायु प्रदूषण से मौत होती है. सबसे ज्यादा मौतें एशिया में होती है.
जर्मनी के माइंस शहर में माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रोफेसर योहानेस लेलीफेल्ड के मुताबिक, "लोगों को फेफड़े और दिल की बीमारियां हैं. दिल का दौरा पड़ने से या स्ट्रोक से लोगों की मौत हो जाती है. इसके अलावा धूल के बेहद छोटे कण हैं जो खून में भी जा सकते हैं. वे कुछ हद तक टॉक्सिक भी होते हैं, इस तरह से जहरीले तत्व फेफड़े में चले जाते हैं और फिर वहां उनका असर होता है."
एशिया में सबसे ज्यादा मौतें
योहानेस लेलीफेल्ड की टीम ने पहली बार इस बात की खोज की है कि कितने लोग हवा में धूल के सूक्षम कण, ओजोन और सल्फर डाय ऑक्साइड की वजह से बीमार होते हैं और अपनी जान गंवाते हैं. और किन जगहों पर इस बीमारी से कितनी मौतें हुई हैं. लेलीफेल्ड ने बताया, "वायु प्रदूषण से एशिया में होने वाली सबसे ज्यादा मौतों की वजह यह है कि हवा तो खराब है ही, आबादी का घनत्व भी ज्यादा है. बड़े शहरों में बहुत से लोगों को सूक्ष्म धूलकणों का सामना करना पड़ता है और इसका नतीजा बीमारी और वक्त से पहले मौत के रूप में सामने आता है. चीन में हर साल 14 लाख लोग समय से पहले मर रहे हैं और भारत में उनकी तादाद सात लाख है. यह बहुत ही ज्यादा है."
9 शहर जहां सांस लेना खतरनाक है
हवा में इतना धूल, धुआं और स्मॉग मिल चुका है कि फेफड़ों को साफ हवा नसीब होना मुश्किल है. देखिए दुनिया भर से कुछ ऐसे शहरों की तस्वीरें, जहां सांस लेना खतरनाक होता जा रहा है.
तस्वीर: picture alliance/AP Images
नई दिल्ली, भारत
नई दिल्ली में पिछले 30 सालों में वाहनों की संख्या 1.8 लाख से बढ़ कर 35 लाख हो गई है. गाड़ियों के अलावा शहर में कोयले से चलने वाले पावर प्लांट प्रदूषण का अहम कारण हैं. कुल वायु प्रदूषण में 80 फीसदी हाथ इन्हीं का है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
उलान बतोर, मंगोलिया
उलान बतोर ना सिर्फ सबसे ठंडी राजधानी है बल्कि यहां वायु प्रदूषण भी भयंकर है. शहर में धुंध का 70 फीसदी हिस्सा सर्दी के महीनों में कोयला और लकड़ी जलाने से होता है. यहां वायु प्रदूषण विश्व स्वास्थ्य संगठनों के सांस लेने के लिए सुरक्षित पैमानों से सात गुना ज्यादा है.
तस्वीर: DW/Robert Richter
बीजिंग, चीन
चीन की राजधानी बीजिंग में धुंध का यह हाल है कि वैज्ञानिक इसे रिहाइश के लिए लगभग असुरक्षित घोषित कर चुके हैं. हालांकि यहां 2 करोड़ लोग रहते हैं. अनुमान है कि तगभग 35 लाख लोग हर साल दुनिया भर में वायु प्रदूषण के कारण जान गंवा रहे हैं. इनमें से आधे मामले चीन के हैं.
तस्वीर: picture alliance/Photoshot
लाहौर, पाकिस्तान
वायु प्रदूषण पाकिस्तान के लिए भी बड़ी जलवायु समस्या है. लाहौर में हालात सबसे ज्यादा खराब हैं. आसपास के मरुस्थल से आने वाली रेत के अलावा धूल और वाहनों से निकलने वाला धुआं वायु प्रदूषण के प्रमुख कारक हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
रियाध, सऊदी अरब
रियाध में रेत के तूफानों से सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण होता है. सऊदी अरब में पराबैंगनी किरणें यातायात और औद्योगिक धुएं से मिलकर ओजोन बनाती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
काहिरा, मिस्र
काहिरा में वायु प्रदूषण के कारण शहरियों में कई तरह की श्वास संबंधी बीमारियां पाई जा रही हैं. वायु प्रदूषण में बढ़ोत्तरी की बड़ी वजह शहर में बढ़ रहा यातायात और औद्योगिक विस्तार है.
तस्वीर: DW Akademie/J. Rahe
ढाका, बांग्लादेश
जर्मन शहर माइंस के माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट के मुताबिक ढाका में हर साल करीब 15 हजार लोग वायु प्रदूषण के कारण मरते हैं. रिसर्चरों के मुताबिक यहां वायु में सल्फर डाई ऑक्साइड का स्तर दुनिया में सबसे ज्यादा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
मॉस्को, रूस
मॉस्को में धुंध की वजह वायु में हाइड्रोकार्बन का उच्च स्तर है. मॉस्को से गुजरने वाली पश्चिमी हवाओं के कारण शहर के पश्चिमी भाग में वायु पूर्वी भाग से बेहतर है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
मेक्सिको शहर, मेक्सिको
मेक्सिको शहर तीन ओर से पहाड़ियों से घिरा है. हवा में हाइड्रोकार्बन और सल्फर डाई ऑक्साइड की उच्च मात्रा के कारण काफी लंबे समय तक मेक्सको को दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर माना जाता रहा. कुछ फैक्ट्रियों को बंद किए जाने और यातायात नियमों में परिवर्तन से हालात कुछ बेहतर हुए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
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माक्स प्लांक के वैज्ञानिकों ने इस स्टडी के लिए खुद अपनी रीडिंग और धरती का चक्कर लगाते उपग्रहों से मिलने वाले डाटा का सहारा लिया है. इन सूचनाओं के आधार पर उन्होंने एक कंप्यूटर सिमुलेशन सिस्टम डेवलप किया है जिससे पता चलता है कि जहरीले तत्वों का फैलाव कैसे होता है. इसे मौत के आंकड़ों के साथ जोड़कर देखा जाता है कि जहरीले तत्व के किस घनत्व पर लोग सचमुच मरते हैं. रिसर्चरों को सबसे ज्यादा इस बात ने हैरान किया कि शहरों में हवा को प्रदूषित करने के लिए यातायात और औदि्योगिक कारखानों की चिमनियां मुख्य रूप से जिम्मेदार नहीं हैं.
मुख्य कारण
लेलीफेल्ड ने बताया, "एशिया में वायु प्रदूषण के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है जगह जगह लगाई जाने वाली छोटी आग, खाना पकाने के लिए, सर्दी से बचने के लिए या फिर कूड़ा जलाने के लिए लगाई गई आग, इनसे काफी धुआं पैदा होता है. भारत, बांग्लादेश और दक्षिण एशिया में यह मुख्य वजह है."
धुंआ एशिया में बहुत सारा सूक्ष्म धूलकण पैदा करता है. अत्यंत छोटे कण डीजल जेनरेटरों, कोयले के चूल्हों और जलती लकड़ी से पैदा होते हैं. चीन में यह कुल सूक्ष्म कणों का एक तिहाई पैदा करता है. इंडोनेशिया और भारत में तो इसका अनुपात 50 से 60 प्रतिशत है.
क्यों छाती है धुंध की चादर
भारत ही नहीं चीन, इटली और दुनिया के कई अन्य देश इस समय धुंध से परेशान रहते हैं. लेकिन यह आती कहां से है? आखिर क्या है धुंध और क्या होता है जब यह नीचे उतरती है? आइए देखें...
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/G. Borgia
कैसे बनता है
इटली की पो घाटी में पिछले कुछ हफ्तों से मौसम शांत और ठंडा रहा. ऐसे मौसम में वाहनों से निकलने वाला धुआं जमीन के पास की हवा में ही फंस जाता है. लेकिन गर्मियों में होने वाली धुंध फोटोकेमिकल होती है. वह वायु प्रदूषण और सूर्य की किरणों के मिलने से बनती है. दोनों ही स्वास्थ्य के लिए बुरे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Porta
दो धारी तलवार
गर्मियों में होने वाली धुंध में ओजोन की मुख्य भूमिका होती है. ओजोन वह कंपाउंड है जो सूर्य की पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करता है. नियम यह है कि अगर ओजोन ऊपर स्ट्रैटोस्फियर में है तो अच्छा है लेकिन अगर यह नीचे ट्रोपोस्फियर में आ जाए तो हमारे लिए खतरनाक हो सकती है.
तस्वीर: imago/Science Photo Library
बेहद छोटा
हालांकि धुंध में दिखाई देना मुश्किल हो जाता है लेकिन धुंध जिन बारीक कणों से बनी होती है उन्हें अलग अलग सामान्य आंखों से देख पाना संभव नहीं.
धुंध या कोहरा?
30 अक्टूबर 2014 को जर्मन अंतरिक्ष यात्री आलेक्जांडर गेर्स्ट ने एक अहम सवाल किया. उन्होंने इटली के पो इलाके को अंतरिक्ष से देख कर पूछा कि उसके ऊपर दिखाई दे रहा आवरण धुंध है या कोहरा? तकनीकी जवाब है - दोनों. धुंध यानि स्मॉग असल में धुएं (स्मोक) और कोहरे (फॉग) से मिलकर बनता है.
तस्वीर: Alexander Gerst
पिज्जा बनाने वालों की मुश्किल
शहरों के बाहर धुंध ज्यादा होती है क्योंकि यहां औद्योगिक धुआं ज्यादा निकलता है. इटली के शहर नेपल्स के पास स्थित विटालियानो में स्थिति इतनी बुरी है कि गांव ने लकड़ी जलाकर इस्तेमाल होने वाले तंदूरों में पिज्जा बनाने पर प्रतिबंध लगा दिया है.
तस्वीर: picture-alliance/landov/B. Duke
ऑड ईवन रूल
धुंध से लड़ने के लिए नए साल में दिल्ली सरकार ने राजधानी में गाड़ियों के लिए सम और विषम नंबर प्लेट का नियम शुरू किया. इसके मुताबिक एक दिन सम और दूसरे दिन विषम नंबर वाली गाड़ियां सड़क पर होंगी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D.Fiedler
धुंध का गढ़
चीन की राजधानी बीजिंग धुंध की मार से बुरी तरह परेशान है. कई बार शहर में रेड अलर्ट जारी कर स्कूलों और कॉलेजों को बंद रखना पड़ा. यही नहीं निजी वाहनों के इस्तेमाल पर भी पाबंदी लगाई गई. साल 2015 में चीन में इतिहास में सबसे अधिक धुंध रिकॉर्ड हुआ.
तस्वीर: picture-alliance/epa/W. Hong
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जरूरी कदम
हैरानी की बात यह है कि दुनिया भर में जहरीले सूक्ष्म कणों का स्रोत कारखाने नहीं बल्कि कृषि उद्योग है. यूरोप, जापान और अमेरिका के पूर्वोत्तर में खाद के बड़े पैमाने पर इस्तेामल और पशुपालन से बड़ी मात्रा में अमोनिया गैस पैदा होती है. और इसकी वजह से सूक्ष्मकण बनते हैं. ऐसे में सूक्ष्म धूल कणों की समस्या से निबटने के लिए नई रणनीति की जरूरत है.
लेलीफेल्ड के मुताबिक, "यूरोप में कोशिश करनी होगी कि कृषि क्षेत्र में उत्सर्जन को कम किया जाए. इसके लिए पशुपालन उद्योग पर ध्यान देना होगा. एशिया में लोगों को बिना धुआं पैदा किए खाना पकाने और घर गर्म करने के लिए नई तकनीक दिए जाने की जरूरत है. यह तकनीक उपलब्ध है और यह महंगी भी नहीं है." लेकिन अगर इसमें कामयाबी नहीं मिलती है, तो 2050 तक 60 लाख से ज्यादा लोग असामयिक मौत के शिकार होंगे और इनमें से 40 लाख एशिया में ही होंगे.