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विएतनाम के तटीय इलाकों को बचाने की कोशिश

२१ जुलाई २०११

समुद्र स्तर के बढ़ने से विएतनाम के मेकोंग डेल्टा पर खतरा मंडरा रहा है. यहां मैंग्रोव के जंगल होने के कारण थोड़ी राहत तो है, लेकिन लम्बे समय से उन्हें हटाया जा रहा है, ताकि झींगा मछलियों की पैदावार बढ़ाई जा सके.

BioShrimpfarm –Vietnam +++Naturland e.V.++++ mail vom:6.4.10: c.veller@naturland.de: "...gerne können Sie im Sinne Ihrer unten stehenden Anfrage unsere Bilder im Anhang nutzen." //er meint die übliche Rechteeinräumung//
विएतनाम में 'ऑर्गेनिक' फार्मतस्वीर: Naturland e.V.

मैंग्रोव ऐसे पेड़ या पौधे होते हैं, जो खारे पानी में तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं. ये जितना पानी के ऊपर दिखते हैं उतना ही नीचे तक इनकी जड़ें फैली होती हैं. पानी पर फैले हुए मैंग्रोव पेड़ों का नजारा बहुत अद्भुत होता है. लेकिन विएतनाम के मेकोंग डेल्टा में अब कुछ ही मैंग्रोव दिखाई देते हैं. इन थोड़े बहुत पेड़ों को देख कर भी लोगों को यह आशा मिलती है कि शायद आने वाले समय में सब ठीक हो जाएगा और पानी का स्तर बढ़ने के बाद भी वे इस इलाके में रह सकेंगे.

झींगा मछलियों के लिए काटे जा रहे हैं मैंग्रोव के पेड़तस्वीर: Naturland e.V.

यह इलाका विएतनाम के सबसे उपजाऊ इलाकों में से एक है और दुनिया की सबसे घनी आबादी भी यहीं है. विएतनाम दुनिया में चावल और झींगा मछली के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक है. देश में इन दोनों ही चीजों का सबसे अधिक उत्पादन इसी इलाके में होता है. लेकिन आने वाले समय में स्थिति बदल सकती है. जलवायु परिवर्तन के कारण यहां पानी का स्तर बढ़ने लगा है और ऐसा हो सकता है कि कुछ सालों में ना तो यहां खेती बाडी हो सके, ना ही यह लोगों के रहने लायक बचे. मना जा रहा है कि यदि ऐसा ही रहा तो मेकोंग डेल्टा पूरी तरह डूब जाएगा. वैज्ञानिकों का मानना है कि बांग्लादेश में भी ऐसा हो सकता है.

बढ़ती मांग से खतरा

पानी में मैनग्रोव के पेड़ों की जडें बाढ़ रोकने का काम करती हैं. इस बात को नजरअंदाज करते हुए विएतनाम में लगातार इन पेड़ों को काटा जा रहा है. ऐसा अनुमान लगाया गया है कि पिछले एक दशक में यहां इन पेड़ों की संख्या आधी हो चुकी है. पहले तो इन्हें लकड़ी के लिए कटा जाता था. विएतनाम युद्ध के बाद हुई तबाही के कारण यहां नए सिरे से घर बनाने की जरूरत थी. लेकिन पिछले कुछ समय में इन्हें इसलिए काटा जा रहा है ताकि इस पानी में झींगा मछली की पैदावार बढ़ाई जा सके. दुनिया भर में इस मछ्ली की बढ़ती मांग के चलते यहां ऐसा हो रहा है.

लंबी जड़ों के कारण बाढ़ रोकने का काम करते हैं मैंग्रोव के पेड़तस्वीर: doris oberfrank-list / Fotolia.com

पिछले पंद्रह सालों में यहां मछली उद्योग दोगुना हो गया है. इसके कारण लोगों को नई नौकरियां भी मिली हैं और देश की अर्थव्यवस्था को भी फायदा मिला है. लेकिन साथ साथ इकोसिस्टम को नुकसान भी पहुंचा है. पेड़ काटने के कारण पानी और खारा होता जा रहा है और झींगा मछली को जमा करने के लिए जो प्लांट लगाए गए हैं, वहां से निकलने वाले केमिकल्स के कारण पानी इतना प्रदूषित हो चुका है कि यहां कुछ उगाया भी नहीं जा सकता.

'ऑर्गेनिक' मछलियां

जर्मन संस्था नाटुअरलांड ने इस समस्या का हल निकाला है. उन्होंने एक ऐसा प्रस्ताव दिया है जिससे झींगा मछली की पैदावार भी बढाई जाए और मैनग्रोव के पेड़ भी ना काटे जाएं. उनकी शर्त है कि मछलियों के लिए किसी भी तरह के केमिकल्स का इस्तेमाल ना किया जाए और मछलियां पकड़ने के लिए जो इलाका लिया जाए, उसमें से आधे में मैंग्रोव के पेड़ लगाए जाएं. मछली पकड़ने वाली कंपनियों को इसके लिए नाटुअरलांड से सर्टिफिकेट लेना होगा.

यूरोप और अमेरिका में बेहद लोकप्रिय है झींगा मछली से बने पकवानतस्वीर: CC / yomi955

नाटुअरलांड का कहना है कि इन 'ऑर्गेनिक' मछलियों को बाजार में दोगुने दाम पर बेचा जा सकता है. विएतनाम में एक हजार से अधिक फिश फार्म नाटुअरलांड के बताए रास्ते पर चल रहे हैं. संस्था का मानना है कि यह समुद्र में पानी की एक बूंद के समान है. पिछले दस साल से संस्था फिश फार्म के मालिकों को मनाने में लगी है. मेकोंग डेल्टा में रहने वाले लोग भी इस से खुश हैं. उनका मानना है कि इस से बेहतर तरीका हो ही नहीं सकता, क्योंकि इस से मछली उद्योग को पहले की तुलना में अधिक मुनाफा हो रहा है और यूरोप और अमेरिका के जिन देशों में इन मछलियों को भेजा जा रहा है वहां लोग स्वस्थ्य मछलियां खा पा रहे हैं, और साथ ही मैनग्रोव पेड़ों की संख्या बढ़ने से इलाके के डूबने के आसार भी कम हो रहे हैं.

रिपोर्ट: ओलिवर सैमसन/ ईशा भाटिया

संपादन: आभा एम

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