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विकास के रास्ते और ग़ैरसरकारी संगठन

नॉरिस प्रीतम, नई दिल्ली१८ फ़रवरी २००९

भारत में विकास के लिए ग़ैरसरकारी संगठनों की भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता है. सस्ते घर से लेकर कम ब्याज पर कर्ज़ और दूसरी सेवाएं उपलब्ध कराने में इनका बड़ा हाथ है.

महिलाओं के लिए भी कई ग़ैरसरकारी संस्थाएं काम कर रही हैंतस्वीर: picture-alliance/ dpa

प्राचीन काल में मनुष्य अपने दायरे में सिमट कर रहता था. ज़रूरतें कम थीं और उनकी आपूर्ति के के साधन भी बहुत कम. लेकिन जैसे जैसे समय बदला, इसमें एक बड़ा बदलाव आया. पहले लोगों ने अपने आस पास मेल जोल बढ़ाया और फिर गांव, शहर, देश से होते हुए यह मेल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखा जाने लगा. आज स्थिति यह है की उचित विकास के लिए एक देश दूसरे देश पर निर्भर करता है. इस साझेदारी में भारत की भी अहम भूमिका है. यह साझेदारी भारत अन्य देशों से भी करता है और साथ ही गैर सरकारी संस्थाओं के साथ भी.

बाल मज़दूरी के खिलाफ़ मुहिमतस्वीर: AP

अमेरिका की ऐसी ही एक गैर सरकारी संस्था है हैबिटैट फॉर ह्यूमैनिटी. जैसा की नाम से ही पता चलता है इस संस्था ने भारत के निम्न वर्ग के लोगों के लिए सस्ते घर मुहय्या कराने का बीड़ा उठाया है. दिल्ली में हैबिटैट संस्था चला रहे अमित गॉर्डन के अनुसार यह संस्था गरीबों को पैसा उधार देती है और स्वयंसंवकों के श्रमदान द्वारा सस्ते घर बनाने में गरीबों की मदद करती है. गॉर्डन के अनुसार जर्मनी, कोरिया, जापान आदि देशों के युवा भारत आकर श्रमदान देते हैं.

लेकिन सिर्फ़ सस्ते घर से तो विकास नहीं हो पाता. विकास के लिए ज़रूरी है शिक्षा. और इसका अभाव देश के दूर दराज़ इलाकों में देखा जा सकता है. लेकिन कुछ संस्थाएं इस क्षेत्र में काम कर रही हैं. उनमे से एक है कनाडा की वर्ल्ड लिटरेसी कनाडा संस्था. यह संस्था मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में सक्रिय है. इसी संस्था की देख रेख में महिलाएं अपना अखबार भी निकल रही हैं. संस्था से जुड़ी मंजू देवी ने बताया की एक दफा एक पत्रकार ने उनसे कुछ बात की और दूसरे दिन ख़बर को तोड़ मरोड़ कर पेश किया. मंजू ने संस्था के सामने इस बात को रखा और इस घटना के बाद संस्था ने इन महिलाओं द्वारा जागृति नाम के स्थानीय अख़बार को जनम दिया. मंजू जैसे और कई महिलाएं हैं जो वर्ल्ड लिटरेसी कनाडा संस्था से जुड़ कर पढ़ना लिखना सीख रही हैं.

पर्यावरण के लिए भी ग़ैरसरकारी संगठनतस्वीर: AP

ऐसा नहीं कि सिर्फ़ भारत में ही विदेशों से आकर लोग काम कर रहे हों. भारत ने पड़ोसी देश म्यांमार में आधुनिक ऑप्टिक फाइबर लाइन ढाल कर म्यांमार के टेलीफोन और इंटरनेट की काया पलट का काम शुरू कर दिया है. टेलीकॉम्युनिकेशन इंडिया लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी राकेश उपाध्याय के अनुसार इस ऑप्टिक फाइबर लाइन से म्यांमार की लाइन भारत से जुड़ जाएगी और दोनों देशों के लोग और करीब आ जाएंगे.

जब भारत में इतना सब कुछ हो रहा है तो विदेश में बसे भारतीय देश को कैसे भूल सकते हैं? हाल में जापान में बसे भारतीयों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को उनकी जापान यात्रा के दौरान भारत के लिए भरपूर सहायता का आश्वासन दिया. मनमोहन सिंह ने जापान और वहां बसे भारतीय लोगों का धन्यवाद दिया.

लेकिन इस सबके बावजूद देश में अभी भी लाखों लोग ऐसे हैं जिन्हें दिन में भर पेट खाना भी नहीं मिलता. भारत में ओक्सफैम संस्था के उपाध्यक्ष डॉ विट्टल राजन कहते हैं की सिर्फ़ पैसे से ही गरीबों का विकास नहीं होता. डॉ राजन के अनुसार गरीब लोगों में भी नए प्रयोग करने और अच्छा काम करने की भूख होती है जिसे उजागर करने की ज़रूरत है. शायद डॉ राजन ठीक ही हों. लेकिन फिर भी पिछड़ी श्रेणी के लोगों के लिए सबको कंधे से कंधा मिला कर चलना होगा. तभी होगा सबका पूर्ण विकास.

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