आठ पुलिसकर्मियों की हत्या का आरोपी विकास दुबे शुक्रवार सुबह उत्तर प्रदेश पुलिस के हाथों मारा गया. पुलिस इसे मुठभेड़ बता रही है, लेकिन इस तथाकथित मुठभेड़ पर कई सवाल उठ रहे हैं.
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पुलिस का कहना है कि विकास दुबे को जिस गाड़ी में मध्य प्रदेश से उत्तर प्रदेश लाया जा रहा था वो रास्ते में पलट गई थी. मौके का फायदा उठा कर विकास ने एक पुलिसकर्मी की बंदूक छीन कर भागने की कोशिश की, जिसके बाद पुलिस की "जवाबी कार्रवाई" में उसे गोली लग गई और अस्पताल के रास्ते में उसकी मौत हो गई.
उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में तीन जुलाई की रात विकास दुबे को गिरफ्तार करने गई पुलिस टीम के आठ पुलिसकर्मी मारे गए थे, जिनकी हत्या का आरोप विकास पर लगा था. उसके बाद से विकास छह दिनों तक फरार रहा जिस बीच खबरें आती रहीं कि उसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में कई जगह देखा गया है. गुरूवार नौ जुलाई को मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर में उसे मध्य प्रदेश पुलिस ने पकड़ कर बाद में उत्तर प्रदेश पुलिस को सौंप दिया.
उत्तर प्रदेश पुलिस विकास को वापस कानपुर ला रही थी और रास्ते में ही यह हादसा हुआ. पुलिस इसे मुठभेड़ बता रही है, लेकिन इस तथाकथित मुठभेड़ पर कई सवाल उठ रहे हैं. जानकारों का कहना है कि विकास जब से पकड़ा गया था तब से उसने भागने की कोई भी कोशिश नहीं की थी, फिर अचानक वो पुलिस की पूरी एक टीम के बीच बंदूक छीन कर भागने की कोशिश क्यों करेगा.
इस बात पर भी सवाल उठ रहे हैं कि मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने विकास को कानपुर लाने के लिए ट्रांजिट रिमांड क्यों नहीं ली थी. जानकार यह भी कह रहे हैं कि इस मुठभेड़ पर सवाल उठाने वाली सबसे बड़ी बात यह है कि विकास पुलिस, माफिया और राजनीतिक नेताओं की मिली भगत के तंत्र का एक बड़ा गवाह था और कानूनी कार्रवाई के तहत उस से इस तंत्र के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी हासिल की जा सकती थी. अब उसके मारे जाने जाने से वो सारे रहस्य रहस्य ही रह जाएंगे.
पहले भी हुई है इस तरह की 'मुठभेड़'
दिसंबर 2019 में आंध्र प्रदेश के हैदराबाद में एक 26-वर्षीय महिला के सामूहिक बलात्कार और हत्या के जुर्म में गिरफ्तार किए गए चार आरोपी भी एक पुलिस "मुठभेड़" में मारे गए थे. पुलिस का कहना था कि जुर्म के दृश्य की फिर से रचना करने के लिए उन्हें मौके पर ले जाया गया था, जहां उन्होंने एक पुलिसकर्मी की बंदूक छीन कर भागने की कोशिश की और पुलिस की "जवाबी कार्रवार" में मारे गए.
भारत में इस तरह संदिग्ध हालत में पुलिस के साथ मुठभेड़ में लोगों का मारे जाना एक बड़ी समस्या है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार 2017-18 में पूरे देश में पुलिस के साथ मुठभेड़ के कम से कम 155 मामले दर्ज हुए थे. इनमें से सबसे ज्यादा मामले, कुल 44, उत्तर प्रदेश में ही दर्ज हुए थे.
अगर 2014 से 2018 के बीच चार साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तर प्रदेश से ज्यादा गंभीर स्थिति कुछ और राज्यों में उभर कर आती है. इन चार सालों में पूरे देश में पुलिस द्वारा मुठभेड़ के 849 मामले दर्ज हुए जिनमें 232 मामलों के साथ छत्तीसगढ़ सबसे आगे है, 195 मामलों के साथ असम दूसरे नंबर पर है और 81 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश तीसरे नंबर पर है.
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया और लोकल सर्किल ने 'इंडिया करप्शन सर्वे 2019' की रिपोर्ट में बताया है कि भारत में 2018 के मुकाबले 2019 में भ्रष्टाचार में 10 प्रतिशत की कमी आई है. यह सर्वे 20 राज्यों में किया गया है.
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संपत्ति निबंधन और भूमि मामला
भारत में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार संपत्ति निबंधन और भूमि से जुड़े मामलों है. सबसे अधिक 26 प्रतिशत घूस के मामले इस विभाग से जुड़े हैं. जानकारों का मानना है कि भारत के कई राज्यों में चकबंदी नहीं होने और जमीन के कागजात पुरखों के नाम पर होना इसकी बड़ी वजह है. दूसरी वजह तेजी से संपत्ति की कीमतों में इजाफा होना है. बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों तक में जमीन की धोखाधड़ी से जुड़े मामलों सामने आते रहते हैं.
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पुलिस
भ्रष्टाचार और घूसखोरी के मामले में पुलिस दूसरे स्थान पर है. 19 प्रतिशत घूस के मामले इस विभाग से जुड़े हैं. कुछ ही दिनों पहले बिहार की राजधानी पटना में घूसखोरी का बड़ा मामला सामने आया था. महात्मा गांधी सेतु पुल पर ओवरलोडेड वाहनों को पार कराने के लिए घूस लेने के आरोप में एक साथ 45 पुलिस वालों को निलंबित किया गया था.
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नगर निगम
घूस लेने के मामले में नगर निगम भी पीछे नहीं है. 13 प्रतिशत घूस के मामले इसी विभाग से जुड़े हैं. बिहार की राजधानी पटना के रहने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि वे अपने घर का नक्शा पास कराने के लिए महीनों से कोशिश कर रहे थे लेकिन आज-कल की बात कर महीनों तक उन्हें कार्यालय का चक्कर लगवाया गया. आखिरकार कर्मचारी को पैसे देने के बाद उनका काम हुआ.
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बिजली विभाग
सर्वे शामिल 3 प्रतिशत लोगों ने बिजली विभाग में घूस देने की बात कही है. प्रीपेड मीटर आने के बाद से इस विभाग में भ्रष्टाचार के मामलों में कमी आई है लेकिन पैसे लेकर कनेक्शन जोड़ने और काटने का मामला चलता रहता है. कुछ महीने पहले झारखंड झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड के सहायक अभियंता को एंटी करप्शन ब्यूरो ने 20 हजार रुपये घूस लेते हुए गिरफ्तार किया था.
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ट्रांसपोर्ट ऑफिस
सर्वे में शामिल 13 प्रतिशत लोगों ने ट्रांसपोर्ट ऑफिस में घूस देने की बात कही है. जानकार बताते हैं कि ट्रांसपोर्ट विभाग के कर्मचारी हाइवे पर वाहनों को पास देने से लेकर कार्यालय में ड्राइविंग लाइसेंस बनावने तक के काम के लिए घूस लेते हैं. कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश में प्रदूषण के नाम पर उगाही करने वाला वीडियो वायरल हुआ था, जिसने ट्रांसपोर्ट विभाग में खलबली मचा दी थी.
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टैक्स डिपार्टमेंट
सर्वे में शामिल 8 प्रतिशत लोगों ने टैक्स विभाग में घूस देने के बात कही. टैक्स विभाग में घूसखोरी की बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि केंद्र की मोदी सरकार भ्रष्टाचार के आरोपित टैक्स अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें जबरन रिटायर कर रही है.
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जल विभाग
5 प्रतिशत लोगों ने बताया कि उन्होंने जल विभाग में घूस दी है. वहीं 13 प्रतिशत लोगों ने अन्य विभागों में घूस देने की बात कही है.
तस्वीर: Reuters/F. Mascarenhas
सर्वेक्षण में शामिल लोग
'इंडिया करप्शन सर्वे 2019' में 20 राज्यों के 248 जिलों के 1,90,000 लोग शामिल हुए. सर्वे के अनुसार 51 प्रतिशत भारतीयों ने पिछले 12 महीनों में एक बार घूस जरूर दी है.
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इन राज्यों में ज्यादा भ्रष्टाचार
भारत के राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, झारखंड और पंजाब में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है.
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इन राज्यों में कम भ्रष्टाचार
दिल्ली, हरियाणा, गुजरात, पश्चिम बंगाल, केरल, गोवा और ओडिशा में कम भ्रष्टाचार है. भारत भर में 2018 के मुकाबले 2019 में भ्रष्टाचार के कुल स्तर में 10 प्रतिशत की कमी आई है.