विकास सहयोग की शुरुआत पिछड़े देशों की हालत सुधारने के लिए की गई थी. लेकिन आर्थिक समता का लक्ष्य अभी तक अधूरा है. जर्मन राहत संस्थाएं चंदे का रिकॉर्ड बना रही हैं तो देश में विकास सहायता के लक्ष्यों पर बहस छिड़ गई है.
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जर्मन चंदा परिषद के अनुसार 2014 में अगस्त तक आम लोगों ने राहत संस्थाओं को 2.7 अरब यूरो का चंदा दिया है. यह राशि पिछले साल की इस अवधि में जमा राशि से 4.6 फीसदी ज्यादा है. पिछले साल कुल 4.7 अरब यूरो इकट्ठा हुआ था. दुनिया में सीरिया और इराक जैसे संकट क्षेत्रों के अलावा अफ्रीका में इबोला महामारी के फैलने के कारण राहत संस्थाओं और विकसित देशों की जिम्मेदारी बढ़ती जा रही है.
1961 में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन की स्थापना के साथ विकास सहायता का शब्द बना था. मकसद था धनी और पिछड़े देशों के बीच आर्थिक खाई को कम करना. हालांकि संयुक्त राष्ट्र के सहस्राब्दी लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में प्रगति हुई है लेकिन चुनौतियां बनी हुई हैं. भारत जैसे देशों में आर्थिक विकास के बावजूद आर्थिक बंटवारा अनुकूल नहीं है.
जर्मन राहत संगठनों ने 2015 के बाद विकास के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए विकास नीति को सटीक बनाने की मांग की है. टेरा देस ओमेस और वेल्ट हुंगर हिल्फे जैसी संस्थाओं का कहना है कि जी-7 में जर्मनी की अध्यक्षता, वैश्विक टिकाऊपन लक्ष्य और पेरिस में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सम्मेलन आने वाले सालों के लिए विकासनीति तय करने की आवश्यकता दिखाते हैं. टेरे देस ओमेस की प्रमुख डानुटा जाखर का कहना है, "इसके केंद्र में टिकाऊ विकास का वैश्विक एजेंडा होना चाहिए जिसमें जर्मनी का बाध्यकारी कर्तव्य भी शामिल हो."
विश्व भर में राहत कार्यों में शामिल जर्मनी की दोनों संस्थाओं ने विकास सहायता के बजट में बढ़ोतरी नहीं करने की आलोचना की है और विकास सहायता मंत्रालय के पुनर्गठन की मांग की है. राहत संस्थाओं को डर है कि इसके बिना सरकार द्वारा पेश किया जाने वाला भविष्य का चार्टर कारगर नहीं हो पाएगा. वे विकास सहायता मंत्रालय को मजबूत करने की मांग कर रहे हैं. वेल्ट हुंगरहिल्फे के वोल्फगांग यामान का कहना है कि इसके लिए मंत्रालय को दूसरे विभागों के साथ समन्वय की भूमिका सौंपनी होगी. इस समय मानवीय सहायता और आपात सहायता की जिम्मेदारी विदेश मंत्रालय की है.
टिकाऊ विकास के लक्ष्य तय करने पर चल रही बहस के बीच वियना के राजनीतिशास्त्री उलरिष ब्रांड ने दक्षिण के देशों के लिए वैकल्पिक नीति की मांग की है. उन्होंने कहा, "वैश्विक पूंजीवाद के की शर्तों के तहत विकस नीति का मतलब है कि उत्पादन और जीवन के मौजूदा तरीकों को न्यायोचित, एकजुटतापूर्ण और पर्यावरणसम्मत बनाया जाए." उन्होंने कहा कि विकास के लक्ष्य तभी स्थायी होंगे जब वे आधारभूत बदलाव को संभव बनाएं.
गटर में रहते बच्चे
रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट में कई अनाथ और गरीब बच्चे शहर के मैन होल में, यानि जमीन के नीचे बिछाए गए पाइपों में रहते हैं. कैसा है उनका जीवन, देखते हैं तस्वीरों में.
तस्वीर: Jodi Hilton
अंडरग्राउंड जीवन
19 साल की क्रिस्टीना नशीली दवा ऑरोलैक का नशा करती है और उसका कोई घर नहीं. बुखारेस्ट में उसकी तरह 1,000 से 6,000 अनाथ बच्चे हैं. जिनके सिर पर छत नहीं. वो कहती है, "यहां हमारे पास पानी, कपड़े कुछ नहीं हैं और कभी कभी खाने को भी कुछ नहीं मिलता."
तस्वीर: Jodi Hilton
एक अदद घर?
कई किशोरों ने जमीन के नीचे अपना ड्रॉइंगरूम बसा लिया है. कारिना यहां बुखारेस्ट के बड़े से हीटिंग और जलनिकासी प्रणाली की संरचना में रहते हैं. रोशनी के लिए मोमबत्ती जलाते हैं. कई अनाथ बच्चे अनाथश्रमों में रहे और बड़े होने के बाद वहां से भाग कर यहां पहुंच गए.
तस्वीर: Jodi Hilton
अनाथ बच्चों की नई पीढ़ी
रोमेनियाई क्रांति के 25 साल बाद अनाथ, ड्रग्स की लत में पड़े बच्चों की एक नई पीढ़ी शहर के मैन होल में सुरक्षा ढूंढ रही है. छोटा, दुखी और परेशानियों से भरा जीवन. 19 साल की मोना दूसरी बार गर्भवती है और अपने जीवनसाथी और बेटी के साथ गटर में रहती है.
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ठंडा और चिपचिपा
रेमुस 20 साल के हैं और शहर नीचे एक कोने में घर बनाए हैं. चूंकि उत्तरी स्टेशन के पास की नालियों में बहुत लोग रहते हैं इसलिए वो यहां पियाटा विक्टोरी के नीचे रहते हैं. शहर के हीटिंग सिस्टम के पास होने से यहां सर्दियों में थोड़ा गर्म रहता है और जगह भी काफी है.
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पुराने अनाथ
रोमानिया का अनाथाश्रम सिस्टम तानाशाह निकोलाई चाउषेस्कू के दौर में शुरू किया गया क्योंकि उन्होंने गर्भपात पर रोक लगा दी थी. 1990 के दशक में इनकी हालत खराब हो गई क्योंकि देश में ही खाने पीने के सामान की भारी कमी थी. कई बच्चे इन अनाथाश्रमों से भाग गए.
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नशेड़ियों का अड्डा
बुखारेस्ट के उत्तरी स्टेशन के पास पार्क से अंडरग्राउंड में थैली पहुंचाता एक व्यक्ति. ये पार्क ड्रग तस्करों और इनका सेवन करने वालों का अड्डा है. यहां बच्चों ने सबसे पहले शहर के नीचे जलनिकास प्रणाली में ठिकाना बनाया था.
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गरीबी
बुखारेस्ट के मध्यम वर्गीय इलाके में एक ड्रग डीलर के यहां रह रहा जोड़ा. रोमानिया की राजधानी में करीब 6000 लोग बेघर हैं. इनमें से अधिकतर सर्दियों में जमीन के नीचे आसरा ढूंढते हैं.
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स्प्रिट का नशा
चार साल की पेपिटा नाश्ता खा रही है जबकि उसकी बहन क्रिस्टीना प्लास्टिक की थैली से ऑरोलैक स्प्रिट सूंघ रही है, जिससे उसे नशा होता है. वह कहती है, "नालियों में रहना आसान नहीं. कभी कभी यहां इतने लोग होते हैं कि यहां सो ही नहीं सकते. मेरी इच्छा है कि मैं कभी किंडरगार्टन में जाऊं."
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बच्चों की परवरिश
सभी बेघर जमीन के नीचे नहीं रहते. 32 साल की गर्भवती निकोलेटा अपने जीवनसाथी और दो बच्चों के साथ स्टेशन के पास रहती हैं. उनके पहले दो बच्चे सरकारी संरक्षण में रह रहे हैं लेकिन उन्हें उम्मीद है कि तीसरे बच्चे को खुद पाल पाएंगी.
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सड़क पर बसेरा
24 साल के सेरजियू अनाथाश्रम में बड़े हुए. वहां से भाग गए और नशा करने लगे. वो बताते हैं, "मैं नालियों में भी रहा. मैं नशा छोड़ना चाहता था. लेकिन ऐसा हुआ नहीं तो मैं पुल के नीचे आकर रहने लगा."