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विकास सहायता के लक्ष्यों पर बहस

एमजे/एएम (डीपीए)१६ नवम्बर २०१४

विकास सहयोग की शुरुआत पिछड़े देशों की हालत सुधारने के लिए की गई थी. लेकिन आर्थिक समता का लक्ष्य अभी तक अधूरा है. जर्मन राहत संस्थाएं चंदे का रिकॉर्ड बना रही हैं तो देश में विकास सहायता के लक्ष्यों पर बहस छिड़ गई है.

तस्वीर: DW/K. Keppner

जर्मन चंदा परिषद के अनुसार 2014 में अगस्त तक आम लोगों ने राहत संस्थाओं को 2.7 अरब यूरो का चंदा दिया है. यह राशि पिछले साल की इस अवधि में जमा राशि से 4.6 फीसदी ज्यादा है. पिछले साल कुल 4.7 अरब यूरो इकट्ठा हुआ था. दुनिया में सीरिया और इराक जैसे संकट क्षेत्रों के अलावा अफ्रीका में इबोला महामारी के फैलने के कारण राहत संस्थाओं और विकसित देशों की जिम्मेदारी बढ़ती जा रही है.

1961 में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन की स्थापना के साथ विकास सहायता का शब्द बना था. मकसद था धनी और पिछड़े देशों के बीच आर्थिक खाई को कम करना. हालांकि संयुक्त राष्ट्र के सहस्राब्दी लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में प्रगति हुई है लेकिन चुनौतियां बनी हुई हैं. भारत जैसे देशों में आर्थिक विकास के बावजूद आर्थिक बंटवारा अनुकूल नहीं है.

तस्वीर: Noorullah ShirzadaAFP/Getty Images

जर्मन राहत संगठनों ने 2015 के बाद विकास के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए विकास नीति को सटीक बनाने की मांग की है. टेरा देस ओमेस और वेल्ट हुंगर हिल्फे जैसी संस्थाओं का कहना है कि जी-7 में जर्मनी की अध्यक्षता, वैश्विक टिकाऊपन लक्ष्य और पेरिस में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सम्मेलन आने वाले सालों के लिए विकासनीति तय करने की आवश्यकता दिखाते हैं. टेरे देस ओमेस की प्रमुख डानुटा जाखर का कहना है, "इसके केंद्र में टिकाऊ विकास का वैश्विक एजेंडा होना चाहिए जिसमें जर्मनी का बाध्यकारी कर्तव्य भी शामिल हो."

विश्व भर में राहत कार्यों में शामिल जर्मनी की दोनों संस्थाओं ने विकास सहायता के बजट में बढ़ोतरी नहीं करने की आलोचना की है और विकास सहायता मंत्रालय के पुनर्गठन की मांग की है. राहत संस्थाओं को डर है कि इसके बिना सरकार द्वारा पेश किया जाने वाला भविष्य का चार्टर कारगर नहीं हो पाएगा. वे विकास सहायता मंत्रालय को मजबूत करने की मांग कर रहे हैं. वेल्ट हुंगरहिल्फे के वोल्फगांग यामान का कहना है कि इसके लिए मंत्रालय को दूसरे विभागों के साथ समन्वय की भूमिका सौंपनी होगी. इस समय मानवीय सहायता और आपात सहायता की जिम्मेदारी विदेश मंत्रालय की है.

टिकाऊ विकास के लक्ष्य तय करने पर चल रही बहस के बीच वियना के राजनीतिशास्त्री उलरिष ब्रांड ने दक्षिण के देशों के लिए वैकल्पिक नीति की मांग की है. उन्होंने कहा, "वैश्विक पूंजीवाद के की शर्तों के तहत विकस नीति का मतलब है कि उत्पादन और जीवन के मौजूदा तरीकों को न्यायोचित, एकजुटतापूर्ण और पर्यावरणसम्मत बनाया जाए." उन्होंने कहा कि विकास के लक्ष्य तभी स्थायी होंगे जब वे आधारभूत बदलाव को संभव बनाएं.

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