विकास से ख़तरे में ब्राज़ील के रेड इंडियन्स
३ मार्च २०१०2001 में भारी ऊर्जा संकट के कारण ब्राज़ील की विद्युत प्रणाली ठप्प हो गई और पूरे देश में बिजली बंद करनी पड़ी. इस कारण उद्योगों पर भारी असर पड़ा. ताकि ऐसा फिर न हो, राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा ने ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने के लिए कई बड़ी योजनाएं लाईं. ग्यारह हज़ार मैगावॉट की क्षमता और 12 अरब यूरो की लागत वाली एक बिजली परियोजना ब्राज़ील के मोंटे बेलो में बनायी जाएगी. इसे ब्राज़ील के पर्यावरण विभाग इबामा ने हाल ही में अनुमति दे दी है. अमेज़ॉन से मिलने वाली क्सिंगु नदी पर यह पनबिजली घर बनाया जाएगा. रियो डी जेनेरियो में जर्मन तकनीकी सहयोग संस्था जीटीज़ेड के प्रमुख डिर्क अस्मान कहते हैं कि "अभी अक्तूबर दो हज़ार नौ को फिर ब्लैकआउट हो गया था. इससे उद्योगों को भारी नुकसान हुआ. मुख्य बिजलीघर के किसी तार पर बिजली गिरने की वजह से यह ब्लैकआउट हुआ था. इसलिए बहुत ही ज़्यादा केंद्रीकृत व्यवस्था से बिजली बांटने में मुश्किलें आती हैं. इन मुश्किलों को ख़त्म करने के लिए ब्राज़ील अलग अलग जगहों पर बिजलीघर बनाने की सोच रहा है, इस मामले में कुछ करने की सोच रहा है."
लेकिन बिजली उत्पादन का सबसे सही रास्ता क्या है, यह अभी भी विवाद का विषय है. फ़िलहाल ब्राज़ील की अस्सी फ़ीसदी बिजली 12 गीगावॉट वाले बिजलीघर से आती है. सुरक्षा की दृष्टि से बिजली उत्पादन के लिए अलग अलग जगहों पर छोटे छोटे बिजलीघर बनाए जाने की ज़रूरत है. "इससे ब्राज़ील की सरकार के उद्देश्य का पता चलता है. एक दो साल से कोशिश की जा रही है कि नई तकनीक का सहारा लिया जाए. पनबिजली, पवन बिजली, बायोमास से बिजली और छोटे छोटे बिजलीघर बनाने को समर्थन मिल रहा था."
आदिवासियों की मुश्किल
लेकिन मुश्किल पानी से बिजली बनाने की नहीं है बल्कि इस बात की है कि जिन नदियों पर और और वर्षावनों में यह बांध बनाए जाएंगे, वहां रहने वाले आदिवासियों की आजीविका, उनके जीवन पर बहुत गहरा असर पड़ेगा. ऐसे पनबिजलीघरों से सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे रेड इंडियन. इन आदिवासियों के बीच काम कर रही सोनिया बोने का कहना है कि पारा राज्य के बेलो मोन्टे में यह पनबिजलीघर परियोजना बनायी जाएगी जो कि राष्ट्रीय पार्क क्सिंगु के बहुत नज़दीक है. रेड इंडियनों की ज़मीन पर कई छोटे छोटे पनबिजलीघर बनाए जाएंगे, ये इलाके हमारे हैं.
1988 के ब्राज़िलियाई संविधान में ख़ास तौर पर कहा गया है कि रेड इंडियन इलाके सिर्फ़ रेड इंडियन ही इस्तमाल करेंगे, और कोई नहीं. अगर सरकार उन इलाकों का उपयोग करना चाहती है, तो वहां रहने वालों से अनुमति लेना ज़रूरी होगा.
इन नदियों पर बांध बनाने से कई मुश्किलें पैदा होंगी. "पनबिजलीघरों के कारण मछलियों की संख्या कम हो जाएगी. मछली हमारा हर दिन का खाना है. जब इन बिजलीघरों का निर्माण हो रहा होगा तब यहां अस्थाई निवास बनाए जाएंगे. बाकी समस्याओं के साथ इन पुराने जंगलों को काट दिया जाएगा."
रेड इंडियनों के लिए काम करने वाली सोनिया का कहना है कि विकास के लिए बिजली बनाने के पीछे पड़ने से अच्छा है कि सचमुच विकास परियोजनाएं बनाई जाएं. लेकिन यह परियोजना क्या हों, कैसी हों, इस बारे में किसी की कोई सलाह नहीं है. हालत बहुत कुछ कुछ भारत जैसी है, जहां विकास के नाम पर नदियों की धारा को बांध दिया जा रहा है. लेकिन, लोग अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतें भला पूरी कैसे करें... चादर से बाहर तो हमने कब के पैर पसार लिए हैं.
रिपोर्टः डॉयचे वेले/आभा मोंढे
संपादनः राम यादव