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विकास से जुड़ा है आबादी का सवाल

११ जुलाई २००८

जर्मनी जैसे विकसित देशों में घटती जनसंख्या एक बड़ी समस्या है, तो विकासशील देश अब भी बढ़ती जनसंख्या से जूझ रहे हैं. विश्व जनसंख्या दिवस पर विश्व बैंक की रिपोर्ट जनसंख्या से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों पर नजर डालती है.

भारत में जन्म दर घटी लेकिन जनसंख्या अब समस्यातस्वीर: dpa

विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार गर्भनिरोधकों के अभाव के कारण सारे विश्व में पांच करोड़ 10 लाख महिलाएं अनचाहे गर्भवती बन जाती हैं. इसके अलावा गर्भनिरोधकों के ठीक से काम न करने के कारण भी ढाई करोड़ महिलाएं गर्भवती हो जाती हैं. ये समस्याएं ख़ासकर विकासशील देशों में हैं. रिपोर्ट पेश करते हुए मानवीय विकास के लिए विश्व बैंक की उपाध्यक्ष जॉय फुमाफी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन तथा उर्जा व खाद्य पदार्थों की क़ीमत में तेज़ वृद्धि की रोशनी में यह समस्या कहीं विकट हो गई है. उन्होंने कहा कि महिलाओं के लिए गर्भनिरोधक मुहैया कराने व परिवार नियोजन का आर्थिक विकास पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है.

अनचाहे गर्भ की शिकार 5 करोड़ महिलाएंतस्वीर: AP

विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया में जन्म दर में तेज़ कमी आई है. लातिन अमरीका की तरह वहां भी जनसंख्या वृद्धि की दर 1.2 प्रतिशत है. इसके विपरीत सहारा क्षेत्र के अफ़्रीकी देशों में 2.5 प्रतिशत वार्षिक दर से जनसंख्या बढ़ रही है. इसके फलस्वरूप अगले 28 सालों में अफ़्रीका की आबादी दोगुनी हो जाएगी.

विश्व बैंक की इस रिपोर्ट का नाम है प्रजनन नियंत्रण आचरण व उसकी लागत - अफ़्रीका, पूर्वी यूरोप व मध्य एशिया में गर्भनिरोध और अवांछित गर्भ. इसमें कहा गया है कि इस क्षेत्र के 35 देशों में विश्व की सबसे ऊंची जन्म दर पाई जाती है. औसतन हर महिला पर यहां पांच बच्चे होते हैं. विश्व बैंक ने इस तथ्य की ओर भी ध्यान दिलाया है कि कम आय वाले परिवारों की महिलाओं में गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल की रुझान कम देखने को मिलती है. इसके अलावा बच्चे के जन्म के समय संपन्न महिलाओं के मामलों में तीन गुना अधिक मेडिकल देखभाल होती है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि असुरक्षित ढंग से गर्भपात के कारण प्रतिवर्ष 68 हज़ार महिलाओं की मौत हो जाती है.

जहां तक भारत का सवाल है, तो वहां जनसंख्या वृद्धि की वार्षिक दर साठ व सत्तर के दशक के चार प्रतिशत से घटकर अब 1.6 प्रतिशत हो चुकी है. लेकिन लैंगिक अनुपात एक नई समस्या के रूप में सामने आया है. क्या भारत अपनी आबादी के लिए खाद्यान्न मुहैया कराने में सक्षम बना रहेगा. मुंबई में जर्मन भारत वाणिज्य मंडल के आखिम रोडेवाल्ड इस सिलसिले में कहते हैं कि अपनी आबादी के लिए कृषिजात उत्पाद के मामले में भारत इस समय आत्मनिर्भर है. इसमें अय्याशी की चीज़ें शामिल नहीं हैं, लेकिन जीने के लिए आवश्यक खाद्यान्न के मामले में भारत आत्मनिर्भर है. भारत में खाद्यान्न उद्योग काफ़ी विकसित है. कृषि के क्षेत्र में भारी अनुदान दिए जाते हैं. इससे ग़रीब तबकों को बेशक राहत मिलती है. देखना पड़ेगा कि कृषि उपज में आई कमी का भारत पर क्या असर पड़ेगा, व जनसंख्या नीति के सामने कौन सी नई चुनौतियां आएंगी.

भुखमरी अब भी बड़ी समस्यातस्वीर: AP
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