भारत में सरकार सैकड़ों महिलाओं को तस्करों और कबूतरबाजों से बचाने की कोशिश कर रही है. लेकिन टूरिस्ट वीजा सारी कोशिशों को बेकार कर रहा है.
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अगर कोई भारतीय नागरिक नौकरी करने या पढ़ने के लिए विदेश जाना चाहे तो उसे वर्क वीजा या स्टूडेंट वीजा लेना पड़ता है. यह वीजा संबंधित देश के दूतावास या उच्चायोग द्वारा दिया जाता है. भारत से बाहर निकलने से पहले एयरपोर्ट पर इमिग्रेशन अधिकारी इस वीजा की जांच करते हैं. वीजा की पुष्टि होने के बाद ही भारतीय नागरिक फ्लाइट पर चढ़ पाता है.
लंबे अरसे तक भारत की सैकड़ों महिलाओं को ऐसे ही वर्क वीजा के आधार पर खाड़ी के देशों में भेजा जाता था. वहां जाकर वे घरेलू नौकरानी का काम करती रहीं. अक्सर शिकायतें भी आती रहीं कि उनकी हालत गुलामों जैसी है. वे चाहकर भी देश वापस नहीं लौट पा रही हैं. हाल के बरसों में सरकार ने इसे रोकने की कोशिश भी की है. भारत ने नौकरी देने वालों से कहा कि वे स्थानीय भारतीय मिशन में जाकर रजिस्ट्रेशन के नियम पूरे करें और साथ ही गारंटी के तौर पर 2,500 डॉलर भी जमा कराएं.
लेकिन कबूतरबाजों ने इसका भी तोड़ निकाल लिया. अब वे महिलाओं को टूरिस्ट वीजा पर खाड़ी के देशों में भेज रहे हैं. भारतीय इमिग्रेशन के एक अधिकारी के मुताबिक एक बार देश से बाहर निकलने के बाद ज्यादातर महिलाओं का कोई अता पता नहीं होता. वर्क वीजा पर विदेश जाने वाले भारतीय नागरिक की जानकारी इमिग्रेशन विभाग जमा करता है, लेकिन टूरिस्ट वीजा लेने वालों की जानकारी नहीं जुटाई जाती है.
प्रोटेक्टर जनरल ऑफ इमिग्रैंट्स इन इंडिया एमसी लुथर कहते हैं, "वे टूरिस्ट वीजा लेकर उड़ान भरती हैं ताकि इमिग्रेशन चेक से बच सकें और हमें पता ही नहीं चलता कि वे कहां जा रही हैं. मेरे पास ऐसे कोई आंकड़े नहीं हैं जो बताएं कि कितनी महिलाएं गईं और उनके साथ क्या हुआ. अब हम देशों से मांग कर रहे हैं कि वे टूरिस्ट वीजा को रोजगार वीजा में न बदलें."
भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक खाड़ी के छह देशों में इस वक्त करीब 60 लाख भारतीय नागरिक हैं. इनमें महिलाओं की भी अच्छी खासी संख्या है. ये लोग बहरीन, कुवैत, कतर, सऊदी अरब, यूएई और ओमान में काम करते हैं.
2017 में कहां कितने गुलाम
दुनिया में दासता आज भी जारी है. ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स के मुताबिक आज भी तीन करोड़ 58 लाख आधुनिक गुलाम हैं. बीते एक साल में शीर्ष 10 देशों की कतार में कई नए देश शामिल हुए हैं. भारत यहां सबसे ऊपर दिखता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S.Hamed
नंबर 10, इंडोनेशिया
इंडोनेशिया में सात लाख से ज्यादा लोग गुलाम हैं. यह शीर्ष के 10 देशों में इसी साल शामिल हुआ है.
तस्वीर: AP
नंबर 9, डीआर कांगो
इस अफ्रीकी देश में एक साल के भीतर दासों की संख्या दोगुनी हो गई है अब यहां 8 लाख से ज्यादा गुलाम हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Kurokawa
नंबर 8, नाइजीरिया
यहां 8 लाख 75 हजार गुलाम हैं.
तस्वीर: Reuters
नंबर 7, रूस
दुनिया की ताकत बनने को लड़ते रूस में 10 लाख गुलाम हैं.
देश की 1.13 फीसदी आबादी यानी करीब 21 लाख 34 हजार लोग गुलाम हैं.
तस्वीर: DW/I. Jabeen
नंबर 2, चीन
दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन में 33 लाख गुलाम हैं. आबादी के लिहाज से 0.247 फीसदी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/X. Congjun
नंबर 1, भारत
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में एक करोड़ 83 लाख लोग गुलाम हैं. ये भारत की कुल आबादी का 1.4 फीसदी है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Berehulak
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2015 में रियाद में घरेलू बाई का काम करने वाली एक भारतीय महिला ने मालिक पर हाथ काटने का आरोप लगाया. इसके बाद खाड़ी में बाई का काम करने वाली भारतीय महिलाओं की स्थिति को लेकर कई खबरें आईं. इसके बाद भारत सरकार ने वर्क वीजा संबंधी नियम कड़े किए. नियमों के अनुसार वर्क वीजा के तहत विदेश जाने वाली हाउसमेड का डाटा रिकॉर्ड किया जाने लगा. लेकिन अगर महिलाएं टूरिस्ट वीजा लेकर देश से बाहर जाएं तो अधिकारियों का कहना है कि वे बेबस हो जाते हैं.
एमिग्रेशन अधिकारी के मुताबिक पहले दक्षिण भारत से ज्यादातर महिलाएं खाड़ी जाती थीं. लेकिन अब कबूतरबाज मुंबई को भी अपना गढ़ बना चुके हैं. श्रीलंका और नेपाल की महिलाएं भी बड़ी संख्या में खाड़ी भेजी जा रही हैं.
नेशनल डोमेस्टिक वर्कर्स मूवमेंट की जोसेफीन वलारमाथी चिंतित हैं, "बीते साल हमारे सामने 30 ऐसे मामले आए जिनमें बाई का काम करने वाली महिलाएं खाड़ी के अलग अलग देशों में फंसी हुई थीं. संगठन का अनुमान है कि खाड़ी के देशों में करीब 5 लाख भारतीय महिलाएं बाई का काम कर रही हैं. अधिकारियों के मुताबिक इस आंकड़े की पुष्टि करना संभव नहीं है.
अब सरकार स्थानीय केबल ऑपरेटरों के साथ मिलकर चेतावनी देने वाले विज्ञापन देने की तैयारी कर रही है. गैरकानूनी ढंग से नौकरी दिलाने का वादा करने वाली एजेंसियों पर कार्रवाई की योजना भी बनाई जा रही है.
21वीं सदी के "गुलाम"
मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने मानवाधिकारों के हनन के लिए एक बार फिर कतर की आलोचना की है. फुटबॉल विश्व कप की मेजबानी करने जा रहे कतर में विदेशी मजदूरों की दयनीय हालत है.
अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल संघ (फीफा) ने विवादों के बावजूद कतर को 2022 के वर्ल्ड कप की मेजबानी सौंपी. मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि कतर में स्टेडियम और होटल आदि बनाने पहुंचे विदेशी मजदूरों की बुरी हालत है.