विदेश मंत्रालय पास रखेंगे नवाज
२९ मई २०१३चुनाव के 18 दिन बाद भी पाकिस्तान में नई सरकार ने शपथ नहीं ली है. लेकिन नवाज शरीफ जीत चुके हैं और देश के अगले प्रधानमंत्री बनने वाले हैं. उन्होंने अपने कैबिनेट की तैयारी शुरू कर दी है. उनका कहना है कि वह विदेशी मामलों में एक सलाहकार चुनेंगे, जो रिटायर सिविल अधिकारी हो सकता है. सूत्रों के मुताबिक उन्होंने तारिक फातिमी का नाम आगे किया है, जो अमेरिका और यूरोपीय संघ में राजदूत रह चुके हैं.
करीब 14 साल पहले एक रक्तहीन सैनिक तख्ता पलट में नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री की गद्दी छोड़नी पड़ी थी. पाकिस्तान के अलग राष्ट्र के गठन के बाद से ज्यादातर समय वहां सैनिक शासन ही रहा है.
जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान में विदेश नीति का पहला मतलब भारत के साथ संबंध है और सेना इस मामले में अपना पूरा प्रभाव रखना चाहती है. नवाज शरीफ का ताजा फैसला इस बात की ओर संकेत देता है कि शरीफ सेना के साथ रिश्तों पर कुछ नियंत्रण रखना चाहते हैं.
आसान नहीं फैसले
शरीफ की पार्टी पीएमएलएन के एक सूत्र का कहना है, "आने वाली सरकार और सेना को विदेश नीति के मामले में एक साथ रहना जरूरी है. कम से कम पाकिस्तान के अमेरिका, अफगानिस्तान और भारत के साथ रिश्तों को लेकर."
अमेरिका अपने सैनिकों को अगले साल अफगानिस्तान से हटा रहा है और ऐसे में वह एक शांतिपूर्ण पाकिस्तान देखना चाहता है. भारत और पाकिस्तान में भी लगातार तनाव रहते हैं, जिनके बीच तीन बार युद्ध हो चुका है.
पाकिस्तान में इस समय जबरदस्त बेरोजगारी, गिरती अर्थव्यवस्था, गरीबी, तालिबान का खतरा और जातीय हिंसा जैसी समस्याएं हैं. अमेरिका को उन तत्वों से भी मुश्किल हो रही है, जो अमेरिका के खिलाफ युद्ध में शामिल हो रहे हैं.
शरीफ की पार्टी के एक सदस्य ने नाम बताए बगैर कहा, "भारत के साथ क्या करना है, तालिबान के खिलाफ लड़ रहे पश्चिमी देशों का समर्थन करना है और सरकार की नीतियां जब तक साफ न हों, तब तक बहुत संभल कर चलना है. प्रधानमंत्री बनते ही वह कोई जोखिम नहीं लेना चाहेंगे."
कौन सी करवट
शरीफ पाकिस्तान के पूर्व सैनिक तानाशाह जिया उल हक के शिष्य समझे जाते थे, जिन्होंने 1990 के दशक में तेजी से सियासी सीढ़ियां चढ़ीं. लेकिन जब उन्होंने उस वक्त के सैनिक प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ के विमान को पाकिस्तान में उतरने से मना कर दिया, तो उनका तख्ता पलट दिया गया.
अपने चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में शरीफ ने अमेरिका के कथित आतंकवाद के खिलाफ युद्ध के विरोध में बोला था. इसके बाद से यह साफ नहीं है कि पाकिस्तान की अगली विदेश नीति किस रास्ते पर जाने वाली है. पिछली सरकार पूरी तरह अमेरिका के साथ थी.
पाकिस्तान ने 1990 के दशक में तालिबान के उदय का समर्थन किया था, जिसे इलाके की मौजूदा अशांति का सबसे बड़ा कारण माना जाता है. हालांकि अमेरिका पर 9/11 वाले आतंकवादी हमले के बाद से पाकिस्तान अमेरिका का सहयोगी देश है और तालिबान के खिलाफ युद्ध में शामिल है.
एजेए/एमजे (रॉयटर्स)