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विद्रोहियों के चंगुल में छह साल

२१ सितम्बर २०१०

कोलंबिया मे राष्ट्रपति पद की दावेदार रही इंग्रिड बेटेनकोर्ट ने पहली बार फार्क विद्रोहियों के चंगुल में बीते छह सालों की दास्तान लिखी है. बेटेनकोर्ट की पीड़ा किताब के रूप में इवेन साइलेंस हैज एन एंड नाम से बाजार में आएगी.

तस्वीर: Patricio Luna

बेटेनकोर्ट किताब लिखने के लिए 18 महीने तक दुनिया से दूर रहीं और सात सौ पन्नों में छह साल में बीते दर्द के एक-एक लम्हे का हिसाब लिखा. वह याद करती हैं कि किस तरह 2002 में कुछ बंदूकधारियों ने उनकी कार रोककर उन्हें अगवा किया. ये सभी लोग रिवॉल्यूशनरी आर्म्ड फोर्सेज ऑफ कोलंबिया के सदस्य थे. बेटेनकोर्ट के मुताबिक उस दौर में सरकार ने उनकी सुरक्षा हटा दी थी.

छह साल तक बंधक रहने के बाद मिली आजादीतस्वीर: AP

इसके बाद उनकी तकलीफों के दिन शुरु हो गए. जंगल में अकेलापन और तकलीफों का साया उनकी सारी उम्मीदों पर भारी पड़ रहा था और खुद को बचाए रखना एक बड़ी चुनौती थी. बेटेनकोर्ट ने लिखा है, "हमें किसी इंसान को दी जा सकने वाली सबसे बड़ी सजा मिली थी और यह भी नहीं पता था कि सजा खत्म कब होगी."

किताब में बेटेनकोर्ट ने कई तरह के डर का जिक्र किया है. वह कहती हैं, "अकेले होने का डर, मौत का डर, और न जाने कितने और तरह के डर. इन सब डरों से निजात पाने के लिए भागने की भी सोची, लेकिन विद्रोहियों ने दोबारा पकड़ लिया."

रिहा होने के बाद बेटनकोर्टतस्वीर: AP

इसके बाद जुल्म और बढ़ गए. बेटेनकोर्ट ने लिखा है, "हाथों को पीछे करके गर्दन से बांध दिया गया, पिटाई की जाने लगी और यौन शोषण भी किया गया. मैं तूफान से जूझ रही थी और मेरा दिल बैठा जा रहा था. मुझे लगा मेरा अंतिम समय आ गया, लेकिन मैं बच गई"

बेटेनकोर्ट के साथ बंधक बने कुछ लोग अपना अनुभव पहले ही लिख चुके हैं. इनमें से कुछ ने तो बेटेनकोर्ट को बंधक रहने के दौरान सुविधाएं हासिल करने का भी जिक्र किया है और इसके लिए उनकी आलोचना की है. आलोचकों के मुताबिक कोलंबिया के एक बड़े घराने की सदस्य होने के कारण बेटेनकोर्ट को विद्रोहियों ने भी सुविधाएं दी.

बेटेनकोर्ट की दमदार छवि और उससे मिले फायदों से साथी बंधकों के मन में उपजी जलन का अहसास इस किताब में मिल जाता है. लेकिन उन्होंने सीधे सीधे इन आलोचनाओं के जवाब में कुछ नहीं लिखा है.

बेटेनकोर्ट का कहना है कि उन पर निगाह रखने वाले गुरिल्लों में कुछ की उम्र उनके बच्चों जितनी ही थी. उनमें से कुछ का व्यवहार मानवीय था तो कुछ का बेहद क्रूर. बंधक रहने के दौरान ही उन्हें अपने राजनयिक पिता की मौत का समाचार भी मिला. एक बार उन्होंने एक गुरिल्ला की मदद से अपनी बेटी के जन्मदिन पर जंगल में केक भी बनाया था. उनके पास मौजूद किताबों में बाइबिल और एक डिक्शनरी थी और बेटेनकोर्ट का मानना है कि इन्हीं किताबों ने उनकी जान बचाई.

2 जुलाई 2008 को मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के रुप में कोलंबियाई सैनिक उन तक पहुंच गए और फिर 14 बंधकों समेत बेटेनकोर्ट भी आजाद हो गईं. बेटेनकोर्ट की यह किताब इसी हफ्ते फ्रांस, कोलंबिया और अमेरिका में बिक्री के लिए बाजार तक पहुंच जाएगी.

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः ए कुमार

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