जर्मनी में तितली, मधुमक्खियों और भौंरो समेत सभी उड़ने वाले कीटों की संख्या में 76 फीसदी गिरावट आई है. वैज्ञानिकों ने पूरे इको सिस्टम के तबाह होने की चेतावनी दी.
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जर्मनी के 63 नेचर रिजर्वों को कीट पतंगों की गिनती की गई. जांच में डरावनी तस्वीर सामने आई. 1989 से अब तक जर्मनी में तीन चौथाई उड़ने वाले कीट खत्म हो चुके हैं. वैज्ञानिकों ने चेतावनी देते हुए कहा है कि उड़ने वाले कीटों की बहुत कम संख्या से पूरा जैव विविधता तंत्र खत्म हो सकता है. हॉलैंड के राडबाउड यूनिवर्सिटी के लीड रिसर्चर हंस डे क्रून कहते हैं, "इतने बड़े इलाके में उड़ने वाले कीटों की इतनी तेजी से घटती संख्या बहुत ही चेतावनी भरी खोज है.
तितली और मधुमक्खियों समेत उड़ने वाले सारे कीट पौधों के परागण में अहम भूमिका निभाते हैं. परागण की वजह से फल और सब्जियां पैदा होती हैं. कीटों की गिरती संख्या का असर सीधा पंछियों पर पड़ेगा. कई पंछी इन्हीं कीटों को खाते हैं. और इस तरह विनाश का चक्र शुरू हो जाएगा. हंस डे क्रून के मुताबिक, "पूरा इको सिस्टम खाने और परागण के लिए इन कीटों पर निर्भर है, इनकी वजह से कीट खाने वाले पंछियों की संख्या घटेगी और अंत में स्तनधारियों तक इसका असर पड़ेगा."
शोध के सह लेखक कास्पर हालमन कहते हैं, "ये सारे संरक्षित इलाके थे और ज्यादातर पूरी तरह प्राकृतिक रिजर्व थे. इसके बावजूद यह नाटकीय गिरावट सामने आई है."
वैज्ञानिकों को आशंका है कि ऐसा कीटनाशकों की वजह से हुआ है. हंस डे क्रून के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने कीटनाशकों का कम से कम इस्तेमाल करने की अपील की है. यूरोप और उत्तरी अमेरिका के बड़े हिस्से से तितलियां बड़ी संख्या में गायब हो चुकी है.
(प्राकृतिक संसाधनों की विविधता)
प्राकृतिक संसाधनों की विविधता
ऊर्जा की लगातार बढ़ रही जरूरत पूरा करने के लिए जितना ज्यादा अक्षय ऊर्जा के स्रोतों का इस्तेमाल हो अच्छा है. हमारे आसपास मौजूद पेड़ पौधे ऐसे में बड़े काम के हैं. जानिए ऐसे पेड़-पौधों के बारे में.
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बहुगुणी सूरजमुखी
प्रकृति में अक्षय ऊर्जा के कई स्रोत मौजूद हैं. पेड़ पौधों के शौकीन लोग सूरजमुखी को सुंदरता और तेल के लिए जानते हैं, औद्योगिक स्तर पर इसका इस्तेमाल खाद्य तेल, ल्यूब्रिकेंट और बायोडीजल बनाने में होता है. जर्मनी में चार लाख हेक्टेयर के क्षेत्र में सूरजमुखी की खेती होती है.
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पुराना स्रोत
जंगलों से मिलने वाली लकड़ी का इस्तेमाल मनुष्य ऊर्जा के लिए हमेशा से कर रहा है. जर्मनी में बन रही नई इमारतों में से 15 प्रतिशत लकड़ी से बनाई जाती हैं.
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कच्चे माल से ऊष्मा
पिछले एक दशक में लकड़ी के टुकड़ों का इस्तेमाल स्टोव जलाने के लिए बढ़ा है. तेल बचाकर लकड़ी से आग जलाना एक अच्छा विकल्प है.
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स्टीम इंजन का रहस्य
रेपसीड यानी सफेद सरसों का इस्तेमाल मनुष्य सदियों से कर रहा है. मध्यकाल से ही यह दीया जलाने के लिए तेल का भी स्रोत है. 19वीं सदी में रेपसीड के तेल का इस्तेमाल इंजन में चिकनाई पैदा करने वाले ल्यूब्रिकेंट के रूप में हुआ.
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बायोगैस के नुकसान
बायोगैस प्लांट के लिए बड़े पैमाने पर मक्के और सरसों की पैदावार बढ़ाई जा रही है. लेकिन खेती के लिए जर्मनी के कई इलाकों का नक्शा ही बदल गया है, इससे कई जंगली पौधों और जानवरों के आवास पर भी असर पड़ा है.
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मक्का एक काम अनेक
मक्का दुनिया भर में सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली फसल है. इसकी पैदावार सिर्फ अक्षय ऊर्जा के मकसद से नहीं, बल्कि पशुओं और इंसानों के आहार कि लिए भी होती है. मक्के से गोंद और चिपकाने के दूसरे पदार्थ बनाए जाते हैं.
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पौधे से प्लास्टिक
मक्के, आलू और गन्ने के पौधों से प्लास्टिक बनाई जाती है. इन दिनों कई उत्पाद बायोप्लास्टिक से तैयार हो रहे हैं, जैसे थैलियां, डेयरी उत्पादों के डब्बे और रेजर जैसी सामग्री. पर्यावरण संरक्षक बायोप्लास्टिक के इस्तेमाल का समर्थन करते हैं.
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बिस्कुट भी, बायोडीजल भी
ताड़ के फल से निकाला गया तेल खाना पकाने में इस्तेमाल होता है. पिज्जा से लेकर बिस्कुट तक यह तेल तरह तरह के खानों में इस्तेमाल होता है. इस तेल का इस्तेमाल साबुन, डिटर्जेंट और मोमबत्ती बनाने में भी होता है. इससे बायोडीजल भी तैयार होता है.
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वर्षावनों की जगह लेते ताड़
ताड़ के पेड़ों के विस्तार से नुकसान भी हो रहा है. गर्मी और नमी वाले वातावरण में पैदा होने वाले ताड़ के लिए वर्षावनों का माहौल उपयुक्त है. पिछले कुछ सालों में मलेशिया और इंडोनेशिया में वर्षावनों को काट कर इन्हें उगाया जा रहा है. इससे वर्षावनों में रह रहे जीवों के लिए दिक्कत पैदा हो रही है.
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भांग बुनाई के लिए
भांग का इस्तेमाल नशे के लिए होता आया है, लेकिन इसके कई औद्योगिक फायदे भी हैं. फ्रांस में इसके रेशे से खास तरह का कागज और कपड़े भी तैयार किए जा रहे हैं.
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ताकि गर्मी बनी रहे
भांग के रेशों का इस्तेमाल ऊष्मारोधी कवच बनाने में भी किया जाता है. ये ठंडक को रोकते हैं लेकिन नमी से इनका बैर है. इसलिए इनका इस्तेमाल घरों की दीवारों और छतों को गर्म रखने के लिए घरों के अंदर परत लगाकर होता है. गर्मियों में इसकी मदद से घर ठंडा रहता है.