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"मोदी बनाम बाकी" का फॉर्मूला

१५ मार्च २०१८

भारत की छोटी पार्टियां आपस में मिल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अगले साल के आम चुनाव में टक्कर देने की सोच रही हैं. उत्तर भारत के उपचुनावों में मिली अप्रत्याशित सफलता ने इसकी जमीन तैयार कर दी है.

Indien, Wahlparty
तस्वीर: Getty Images/S.Kanojia

विपक्षी रणनीतिकारों का कहना है कि मोदी और भारतीय जनता पार्टी के विजय अभियान को रोकने का सिर्फ यही तरीका है कि 2019 के चुनाव को "मोदी बनाम बाकी" कर दिया जाए. यह रणनीति थोड़ी कारगर होती दिख रही है. उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में दो प्रमुख विपक्षी दलों समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने मिल कर चुनाव लड़ा और नतीजा यह हुआ कि जाति और धार्मिक गुटों में बंटे इस राज्य में बीजेपी दो अहम सीटों पर चुनाव हार गई. इसमें गोरखपुर की हार तो और भी शर्मनाक है क्योंकि 1989 से ही वहां बीजेपी का दबदबा था और यह मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की सीट रही है.

तस्वीर: picture-alliance

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उत्तर प्रदेश और बिहार में क्षेत्रीय पार्टियों की जीत को मोदी की पार्टी के "खात्मे की शुरुआत" कहा है. कांग्रेस पार्टी भी इस मौके को भुनाने में लगी है. पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा, "उपचुनाव के नतीजों से यह साफ है कि मतदाता बीजेपी से काफी नाराज हैं और वे उन गैर बीजेपी उम्मीदवारों को वोट देंगे जिनके जीतने की उम्मीद है." कांग्रेस ने तो विरोधी दलों को साथ लाने की कोशिश भी शुरू कर दी है. कांग्रेस पार्टी की तरफ से विपक्षी नेताओं के लिए एक रात्रिभोज का आयोजन भी इसी मकसद से किया गया. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला का कहना है कि पार्टी क्षेत्रीय दलों के किसी भी गुट का नेतृत्व करने के लिए तैयार है और इसी हफ्ते पार्टी के सम्मेलन में इस पर चर्चा की जाएगी.

उधर उपचुनाव में हार के बाद कंधे से धूल झाड़ रही बीजेपी का कहना है कि दो क्षेत्रीय पार्टियों की एकता को उसने कम करके आंका और यही वजह थी कि उसकी हार हुई. उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का कहना है, "हम खुद को उस स्थिति के लिए तैयार करेंगे जिसमें बीएसपी, एसपी और कांग्रेस साथ आएंगे. इसके साथ ही 2019 के चुनावों में जीत के लिए भी रणनीति तैयार की जाएगी."

जहां तक नरेंद्र मोदी के निजी करिश्मे की बात है तो फिलहाल भारत में उन्हें चुनौती देने वाला कोई और नजर नहीं आ रहा है. ज्यादातर सर्वे उनकी अपार लोकप्रियता की पुष्टि करते हैं. विश्लेषकों का कहना है कि मुट्ठी भर सीटों पर पार्टी की हार को मोदी या बीजेपी से लोगों के दूर जाने के संकेत समझने की गलती नहीं की जानी चाहिए.

2014 में जब मोदी ने चुनाव जीता तो यह बीते तीन दशकों में किसी भी पार्टी की सबसे बड़ी जीत थी. उसके पहले बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की सरकारें भारत के 29 में से सिर्फ 7 राज्यों में थे. आज वे देश के 21 राज्यों में सत्तारूढ़ हैं और देशव्यापी पहुंच से बीजेपी ने राष्ट्रीय दल के रूप में कांग्रेस की जगह ले ली है. यह पार्टी का अब तक का सबसे शानदार प्रदर्शन है. हालांकि पिछले साल से लेकर अब तक हुए करीब 10 सीटों के उप चुनाव में बीजेपी को हर जगह हार का मुंह देखना पड़ा. यह शायद सत्ता में रहने का खमियाजा भी हो सकता है और यह 2019 के चुनाव में भी अहम भूमिका निभा सकता है.

तस्वीर: Reuters/A. Dave

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता घनश्याम तिवारी कहते हैं कि बीजेपी ने नए राज्यों में व्यपाक प्रचार अभियानों के जरिए "सपने बेच" कर चुनाव जीते हैं. उनका यह भी कहना है कि जहां पार्टी लंबे समय से सत्ता में है वहां लोगों का उससे मोहभंग हो चुका है. तिवारी ने कहा, "शासन के खराब मॉडल के कारण लोगों को बुरे हाल में रहना पड़ रहा है. तो आपने जो वादा किया था उसके विपरीत यह सच्चाई है."

नरेंद्र मोदी अपनी लोकप्रियता बनाए रखने में भले ही सफल रहे हों लेकिन बीजेपी के सहयोगी दलों से रिश्तों में भी हाल के महीनों में काफी तनाव आया है. आने वाले महीनों में अगर पार्टी को कुछ और हार देखनी पड़ी तो सहयोगियों की तरफ से आशंकाएं और बढ़ेंगी. वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता ट्वीटर पर लिखते हैं, "मोदी की अपील फिलहाल अकाट्य है लेकिन उनके शत्रु और सहयोगी अब यह सोच रहे हैं कि उन्हें हराया जा सकता है."

एनआर/एके (रॉयटर्स)

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