विपक्ष को गोलबंद करने में कितनी कामयाब होंगी ममता बनर्जी
प्रभाकर मणि तिवारी
२३ जुलाई २०२१
तृणमूल अध्यक्ष ममता बनर्जी ने तीसरी बार पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री बनने के बाद विपक्षी एकता की कोशिश शुरू की है. 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले वे बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों का मोर्चा बनाना चाहती हैं.
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ममता बनर्जी ने विपक्ष को साथ लाने की मुहिम तो शुरू कर दी है लेकिन साथ ही यह सवाल भी उठने लगा है कि उनको इसमें कितनी कामयाबी मिलेगी? इसकी वजह यह है कि वे पहले भी ऐसी कोशिश कर चुकी हैं. लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली. यह सही है कि ममता बनर्जी अब बंगाल में जीत की हैट्रिक बनाने और बीजेपी की आक्रामक रणनीति का ठोस जवाब देने की वजह से पहले के मुकाबले मजबूत स्थिति में हैं.
लेकिन फिर वही सवाल सामने है जिस पर पहले भी विपक्षी एकता में दरार पैदा होती रही है. वह है कि इस फ्रंट का मुखिया कौन होगा? लाख टके के इस सवाल के साथ ही वे अगले सप्ताह तीन-चार दिनों के दिल्ली दौरे पर जाएंगी. वहां तमाम विपक्षी नेताओं के साथ उनकी बात-मुलाकात होनी है.
विपक्ष की धुरी
वैसे राजनीतिक हलकों में तो यह पहले से ही माना जा रहा था कि बेहद प्रतिकूल हालात में होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में जीत की स्थिति में ममता विपक्षी एकता की धुरी बन कर उभर सकती हैं. बीजेपी ने जिस तरह अबकी बार दो सौ पार के नारे के साथ चुनाव में अपने तमाम संसाधन झोंक दिए थे उससे ममता के सत्ता में लौटने की राह पथरीली नजर आ रही थी. लेकिन आखिर में ममता ने अकेले अपने बूते बीजेपी को न सिर्फ धूल चटाई बल्कि पहले के मुकाबले ज्यादा सीटें भी हासिल की. हालांकि नंदीग्राम सीट पर वे खुद चुनाव हार गईं. लेकिन फिलहाल वह मामला कलकत्ता हाईकोर्ट में है.
ममता बनर्जी ने 21 जुलाई को अपनी सालाना शहीद रैली में पहली बार विपक्षी राजनीतिक दलों से बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने की अपील की थी. बंगाल से बाहर निकलने के कवायद के तहत तृणमूल कांग्रेस ने उनकी इस रैली का दिल्ली, त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश के अलावा गुजरात तक प्रसारण किया. खास बात यह रही कि पहली बार ममता ने अपना ज्यादातर भाषण हिंदी और अंग्रेजी में दिया. बीच-बीच में वे बांग्ला भी बोलती रहीं. अमूमन पहले वे ज्यादातर भाषण बांग्ला में ही देती थीं.
मंत्रिमंडल फेरबदलः 10 बड़ी बातें
'मिनिमम गवर्नमेंट मैक्सिमम गवर्नेंस' के नारे के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार कर उसे हाल के सालों की सबसे बड़ी कैबिनेट बना दिया है. जानिए, इस फेरबदल की दस बड़ी बातें
तस्वीर: Indian Presidential Palace/AP Photo/picture alliance
36 नए चेहरे
नया मंत्रिमंडल हाल के सालों का सबसे बड़ा मंत्रिमंडल है. इसमें 36 नए चेहरों को जगह दी गई है जबकि एक दर्जन मंत्रियों की छुट्टी कर दी गई है. सात मंत्रियों को प्रमोशन भी मिला है.
तस्वीर: Indian Presidential Palace/AP Photo/picture alliance
30 कैबिनेट मंत्री
पिछले मंत्रिमंडल में 52 मंत्री थे जिसे बढ़ाकर अब 78 कर दिया गया है. संविधान अधिकतम 81 मंत्रियों की इजाजत देता है. नए मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्रियों की संख्या 21 से बढ़ाकर 30 कर दी गई है जबकि राज्य मंत्री 23 से बढ़कर 45 हो गए हैं. स्वतंत्र प्रभार के राज्य मंत्रियों की संख्या 9 घटकर 2 रह गई है.
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सिंधिया को पापा वाली कुर्सी
कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया को नागरिक विमानन मंत्री बनाया गया है जो कभी उनके पिता माधवराव सिंधिया के पास थी. अश्विनी वैष्णव रेल मंत्री होंगे जबकि किरेन रिजेजू को कानून मंत्रालय मिला है.
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नया मंत्रालय अमित शाह को
बीजेपी सरकार ने सहयोग मंत्रालय के नाम से नया विभाग बनाया है जिसे अमित शाह को सौंपा गया है. अमित शाह गृह मंत्री भी बने रहेंगे. पियूष गोयल से रेल मंत्रालय का प्रभार ले लिया गया है लेकिन वह वाणिज्य मंत्री बने रहेंगे. मीनाक्षी लेखी एक नया चेहरा हैं जिन्हें विदेश और संस्कृति विभागों में राज्य मंत्री बनाया गया है.
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गडकरी गए राणे आए
उद्योग मंत्रालय को नितिन गडकरी से लेकर महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री रह चुके नारायण राणे को दे दिया गया है. राजस्थान के भूपेंद्र यादव को पर्यावरण और श्रम मंत्रालय दिए गए हैं. पर्यावरण मंत्रालय प्रकाश जावड़ेकर के पास था, जिनकी छुट्टी हो गई है.
तस्वीर: IANS
बड़े बड़ों की छुट्टी
जिन 12 मंत्रियों को पद से हटाया गया है, उनमें स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन भी शामिल हैं. कहा जा रहा है कि कोरोनावायरस महामारी को ढंग से न संभाल पाने की सजा के तौर पर उनकी छुट्टी हुई है. सरकार की नीतियों का सार्वजनिक तौर पर बचाव करने वाले रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावड़ेकर भी पद से हाथ धो बैठे हैं.
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चुनाव पर नजर
मंत्रिमंडल विस्तार में आने वाले विधानसभा चुनावों का ध्यान रखा जाना दिखाई देता है. नए मंत्रियों में 20 प्रतिशत उत्तर प्रदेश से हैं, जहां अगले साल चुनाव होंगे. तीन गुजरात और एक मणिपुर से हैं. पंजाब के हरदीप सिंह पुरी को प्रोन्नति देकर शहरी विकास मंत्रालय का कैबिनेट मंत्री बनाया गया. उन्हें पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय का प्रभार भी मिला है.
नरेंद्र मोदी ने कई बड़े मंत्रियों की छुट्टी की है लेकिन स्मृति ईरानी अपना पद और विभाग बचाने में कामयाब रही हैं. नए बने मंत्रियों में सात महिलाएं हैं. हालांकि कैबिनेट मंत्री सारे पुरुष ही हैं. नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में सिर्फ दो महिला कैबिनेट मंत्री हैं. वित्त मंत्रालय का जिम्मा निर्मला सीतारमण के पास है.
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पहला फेरबदल
2019 में दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने पहली बार अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल किया है. रक्षा, विदेश, वित्त और गृह मंत्रालय में कोई बदलाव नहीं हुआ है जबकि युवाओं को कई अहम जिम्मेदारियां दी गई हैं. जैसे अनुराग ठाकुर को सूचना प्रसारण और खेल मंत्री बनाया गया है. शिक्षा मंत्रालय धर्मेंद्र प्रधान को दिया गया है जबकि मनसुख मांडविया को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया है.
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प्रमोशन
जिन मंत्रियों की प्रमोशन हुई है, उनमें बिजली मंत्री आरके सिंह, कानून मंत्री किरेन रिजीजू, स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया, पशुपालन और मछली मंत्री परशोत्तम रूपाला और पर्यटन मंत्री जी किशन रेड्डी शामिल हैं.
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ममता बनर्जी ने कहा, "मैं नहीं जानती 2024 में क्या होगा. लेकिन इसके लिए अभी से तैयारियां करनी होंगी. हम जितना समय नष्ट करेंगे उतनी ही देरी होगी. बीजेपी के खिलाफ तमाम दलों को मिल कर एक मोर्चा बनाना होगा." उन्होंने शरद पवार और चिदंबरम से अपील की वे 27 से 29 जुलाई के बीच दिल्ली में इस मुद्दे पर बैठक बुलाएं.
खुद तृणमूल अध्यक्ष भी उस दौरान दिल्ली के दौरे पर रहेंगी. ममता का कहना था कि देश और इसके लोगों के साथ ही संघवाद के ढांचे को बचाने के लिए हमें एकजुट होना होगा. देश को बचाने के लिए विपक्ष को एकजुट होना होगा. ऐसा नहीं हुआ तो लोग हमें माफ नहीं करेंगे. ममता बनर्जी पेगासस जासूसी कांड और मीडिया घरानों पर आयकर विभाग के छापों के मामले पर भी केंद्र और बीजेपी पर लगातार हमलावर मुद्रा में हैं. रैली के अगले दिन भी उन्होंने इन दोनों मुद्दों का जिक्र करते हुए खासकर पेगासस जासूसी मामले की जांच की मांग उठाई.
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दावों में कितना दम?
बीजेपी के खिलाफ एक साझा मोर्चा बनाने के ममता के दावों में कितना दम है और क्या वे ऐसा करने में सक्षम हैं? क्या क्षत्रपों की महात्वाकांक्षाएं पहले की तरह मोर्चे की राह में नहीं आएंगी? क्या नेतृत्व के सवाल पर मोर्चे में पहले की तरह मतभेद नहीं पैदा होंगे? वरिष्ठ पत्रकार तापस मुखर्जी कहते हैं, "यह ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब भविष्य के गर्भ में हैं. विपक्ष को लामबंद करने की कोशिशें ममता से चंद्रबाबू नायडू तक तमाम नेता पहले भी करते रहे हैं. लेकिन उनमें से किसी को कामयाबी नहीं मिल सकी. यह सही है कि ममता फिलहाल मजबूत स्थिति में हैं और उन्होंने नेतृत्व की दावेदारी नहीं की है." वह कहते हैं कि कांग्रेस से लेकर एनसीपी तक कई राजनीतिक दलों में प्रधानमंत्री पद के दावेदारों की कमी नहीं है. निजी महात्वाकांक्षाओं का त्याग किए बिना इस राह पर लंबी दूरी तक चलना मुश्किल है.
राजनीतिक विश्लेषक मोइनुल इस्लाम कहते हैं, "ममता ने कोशिश तो शुरू कर दी है और चुनाव में अभी करीब तीन साल का वक्त है. इस समय का इस्तेमाल निजी मतभेदों और खाइयों को पाटने में किया जा सकता है." वह कहते हैं कि दरअसल खुद को राष्ट्रीय पार्टी मानने वाली कांग्रेस प्रधानमंत्री पद की स्वाभाविक दावेदार मानती है. तमाम किस्म के मतभेदों और चुनाव में खराब प्रदर्शन के बावजूद उसका भ्रम नहीं टूटा है. इसके अलावा एनसीपी के शरद पवार की महत्वाकांक्षा भी किसी से छिपी नहीं है. ऐसे में इन दोनों को साधना ममता के लिए मुश्किल होगा. शायद इसीलिए ममता ने विपक्षी दलों की बैठक बुलाने की जिम्मेदारी पवार और कांग्रेस पर ही छोड़ दी है.
तापस मुखर्जी कहते हैं, "इस बार प्रशांत किशोर की भूमिका को भी ध्यान में रखना होगा. वे बीते दिनों शरद पवार और कांग्रेस नेताओं के साथ बैठकें कर चुके हैं. विपक्षी दलों को लामबंद करने की ममता की रणनीति के पीछे उनका दिमाग ही काम कर रहा है."
कोविड-19 संकट के बीच वोटों की गिनती
भारत में कोरोना के गहराते संकट के बीच पिछले हफ्तों में पांच राज्यों में हुए चुनावों के वोटों की गिनती भारी सुरक्षा बंदोबस्त के बीच हुई. चुनाव जीतने की खुशी या हारने के गम से ज्यादा संक्रमण का खौफ फैला दिखा.
तस्वीर: Diptendou Dutta/AFP/Getty Images
भारी सुरक्षा में वोटों की गिनती
मतगणना केंद्रों पर एक ओर तो वोटों की सुरक्षा की जा रही थी, तो दूसरी ओर काम कर रहे सरकारी अधिकारियों की भी. सुरक्षा सूट में एक काउंटिंग एजेंट.
तस्वीर: Anupam Nath/AP Photo/picture alliance
फेस शील्ड के साथ मतों की गिनती
चुनाव अधिकारी भी सावधानी बरत रहे हैं. वे डबल मास्क के साथ संक्रमण से बचने के लिए फेस शील्ड और हाथों में दस्ताने का भी इस्तेमाल कर रहे थे.
तस्वीर: Anupam Nath/AP Photo/picture alliance
बंद कमरों में काउंटिंग
अधिकारी बंद कमरों में काउंटिंग कर रहे थे तो पार्टियों के वोटिंग एजेंटों को कमरे से बाहर ही रखा गया था. वे दूर से मतगणना की निगरानी कर रहे थे.
तस्वीर: Anupam Nath/AP Photo/picture alliance
सुरक्षा सूट में काउंटिंग एजेंट
मतगणना के दौरान काउंटिंग एजेंट कोरोना सुरक्षा सूट पहन कर ही मतगणना वाले कमरे में दाखिल हो सकते थे. यहां असम में एजेंट मतगणना होते देख रहे हैं.
तस्वीर: Anupam Nath/AP Photo/picture alliance
मतगणना केंद्र पर पहरा
केरल में कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए वीकएंड का लॉकडाउन लगा है. यहां कोच्चि में पुलिसकर्मी मतगणना केंद्र की सुरक्षा कर रहे हैं.
तस्वीर: R S Iyer/AP Photo/picture alliance
मतगणना का इंतजार
केरल में कोच्चि में विधान सभा उम्मीदवारों के प्रतिनिधि मतगणना केंद्र के बाहर काउंटिंग के लिए अंदर जाने का इंतजार कर रहे हैं.
तस्वीर: R S Iyer/AP Photo/picture alliance
तमिल नाडु में स्थिति अलग
तमिल नाडु में स्थिति कुछ अलग थी. उत्तरी भारत के बंगाल और असम से अलग वहां कोरोना का खौफ और सोशल डिस्टैंसिंग थोड़ी कम दिखी.
तस्वीर: Arun Sankar/AFP/Getty Images
जीत की खुशी
तमिल नाडु में डीएमके पार्टी की जीत की खुशी का इजहार करते कार्यकर्ताओं ने न मास्क की परवाह की और न ही सोशल डिस्टैंसिंग की.
तस्वीर: R. Parthibhan/AP Photo/picture alliance
होली के रंग
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने होली के रंग खेल कर सत्ता में तीसरी बार वापस आने की खुशियां मनाई.
तस्वीर: AFP/Getty Images
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अगले सप्ताह ममता के दिल्ली दौरे से पहले ही प्रशांत किशोर के अलावा टीएमसी नेता मुकुल राय और ममता के भतीजे सांसद अभिषेक बनर्जी दिल्ली पहुंच गए हैं. उनके दौरे का मकसद ममता की बैठकों के लिए जमीन तैयार करना है. फिलहाल टीएमसी की ओर से दूसरे दलों के साथ बातचीत करने की जिम्मेदारी हाल में पार्टी में शामिल होने वाले यशवंत सिन्हा को सौंपी गई है.
ममता की रणनीति आखिर क्या है? टीएमसी के एक वरिष्ठ नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं, "प्रस्तावित तीसरे मोर्चे के तहत पहले खासकर ऐसे राजनीतिक दलों को साथ लाने की योजना है जो गैर-कांग्रेस और गैर-बीजेपी मोर्चा के हिमायती रहे हैं. इसके तहत ओडिशा के नवीन पटनायक, तेलंगाना के चंद्रशेखर और फारुख अब्दुल्ला को एक मंच पर लाने के बाद कांग्रेस पर इसमें शामिल होने का दबाव बनाया जा सकता है. लेकिन बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में किसे साथ लेना है, किसे नहीं, इस सवाल पर फिलहाल अंतिम फैसला नहीं हुआ है. उनका कहना था कि वहां स्थानीय समीकरण काफी उलझे हैं. हालांकि जनता दल (यू) और सपा नेता अखिलेश यादव से लेकर उद्धव ठाकरे तक ममता को चुनाव के दौरान समर्थन और जीत पर बधाई दे चुके हैं. लेकिन एक साथ आने के मुद्दे पर इनका क्या रुख होगा, यह समझना आसान नहीं है.
राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर समीरन पाल कहते हैं, "राजनीति संभावनाओं और अटकलों का खेल है. इसमें हमेशा दो और दो चार नहीं होते. ऐसे में एक-दूसरे से खुन्नस रखने वाले दल भी अगर एक साझा मकसद से साथ हो जाएं तो कोई हैरत नहीं होनी चाहिए. लेकिन फिलहाल तीसरे मोर्चा की कल्पना अभी हवाई ही है. विपक्षी दलों का रुख साफ होने के बाद ही इस बारे में ठोस तरीके से कुछ कहना संभव होगा."
भारत के नेताओं पर बनी फिल्में
नरेंद्र मोदी पर फिल्म आई. मोदी से पहले भी कई नेताओं पर फिल्म बन चुकी हैं.
तस्वीर: Getty Images/I. Mukherjee
नरेंद्र मोदी
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बायोपिक और वेब सीरीज दोनों बनी हैं. फिल्म का नाम पीएम नरेंद्र मोदी है. इसमें नरेंद्र मोदी का किरदार विवेक ओबेरॉय ने निभाया है. वेब सीरीज का नाम है 'मोदीः जर्नी ऑफ अ कॉमन मैन'. दोनों हिन्दी में हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma
मनमोहन सिंह
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल ऊपर लिखी गई किताब 'दी एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' के ऊपर फिल्म बनी जा चुकी है. किताब के नाम से बनी फिल्म में मनमोहन सिंह का किरदार अनुपम खेर ने निभाया था. ये फिल्म भी हिंदी में है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Kiran
बाल ठाकरे
शिवसेना के संस्थापक और महाराष्ट्र के बड़े नेता रहे बाल ठाकरे पर बनी फिल्म का नाम ठाकरे है. यह 2019 में रिलीज हुई. बाल ठाकरे का किरदार नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने निभाया. यह फिल्म हिंदी में है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
अन्ना हजारे
समाजसेवी और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के नेता रहे अन्ना हजारे पर भी फिल्म बन चुकी है. हिंदी में बनी 'अन्ना किशन बाबूराव हजारे' नाम की इस फिल्म में अन्ना का किरदार शंशाक उदापुरकर ने निभाया था.
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महात्मा गांधी
भारत की आजादी की लड़ाई के नायक रहे महात्मा गांधी के ऊपर तो कई फिल्में बन चुकी हैं. अंग्रेजी में बनी फिल्म 'गांधी' में अभिनेता बेन किंग्सले ने गांधी का किरदार निभाया था. वहीं भारत में भी 'गांधी माई फादर' नाम से महात्मा गांधी पर फिल्म बन चुकी है.
तस्वीर: picture-alliance/akg-images/K. Gandhi
भीमराव अंबेडकर
भीमराव अंबेडकर के ऊपर कई भाषाओं में कई फिल्में बन चुकी हैं. इनमें मराठी में बाल भीमराव, कन्नड में बालक अंबेडकर और डॉक्टर बी आर अंबेडकर और अंग्रेजी में डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर बन चुकी हैं.
तस्वीर: public domain
सुभाष चंद्र बोस
नेताजी के उपनाम से प्रसिद्ध सुभाष चंद्र बोस के ऊपर भी फिल्म बन चुकी है. 'सुभाष चंद्र बोस दी फॉरगोटन हीरो' फिल्म में सचिन खेड़ेकर ने बोस का किरदार निभाया था. यह फिल्म भी हिंदी में है.