विलुप्त हो रही ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को बचाने के लिए नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने एक महत्वपूर्ण आदेश दिया है. क्या देश की सबसे बड़ी पर्यावरण संबंधी अदालत के हस्तक्षेप के बाद यह दुर्लभ पक्षी हमेशा के लिए खोने से बच पाएगा?
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ग्रेट इंडियन बस्टर्ड सारंग पक्षी की एक प्रजाति है जो सिर्फ भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाती है. अनुमान है कि पिछले एक दशक में इसकी संख्या 250 से घट कर 150 ही रह गई है. बुधवार को इसके संरक्षण के लिए नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने कई महत्वपूर्ण आदेश दिए.
अधीकरण ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को आदेश दिया कि वो सुनिश्चित करे कि जहां जहां यह विलुप्तप्राय पक्षी पाया जाता है, वहां सौर ऊर्जा की तारों पर बर्ड डाइवर्टर लगाए जाएं और नई सौर परियोजनाओं को तब तक अनुमति ना दी जाए जब तक उनकी तारों को जमीन के नीचे बिछाने का कार्य पूरा नहीं हो जाता.
इस आदेश की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि पर्यावरण मंत्रालय की एक रिपोर्ट में सामने आया था कि भारी करंट वाली बिजली की तारें ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पक्षियों की मृत्यु की घटनाओ में से 15 प्रतिशत घटनाओं के लिए जिम्मेदार होती हैं. जानकारों के अनुसार यह भारी पक्षी होते हैं, इनकी सामने की नजर कमजोर होती है और इन्हें अक्सर चीजों से टकरा जाने का खतरा रहता है.
बिजली की तारें अगर इन्हें दूर से ना दिखें तो भारी होने के कारण ये आखिरी समय में अपनी उड़ान की दिशा बदल नहीं पाते और तारों से टकरा जाते हैं. बर्ड डाइवर्टर बिजली की तारों पर लगाए जाने वाले छोटे लेकिन चमकदार उपकरण होते हैं जो हवा के साथ घूमते रहते हैं. इनसे तारें आसानी से दिख जाती हैं. जानकारों का दावा है कि दुनिया भर में इनके इस्तेमाल से पक्षियों की मृत्यु दर आधी हुई है.
अधीकरण के ये दोनों आदेश पांच राज्यों पर लागू होंगे, जिनमें महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश शामिल हैं. इन सभी राज्यों में किसी भी नई सौर परियोजना को शुरु करने से पहले पर्यावरण असर समीक्षा (ईआईए) रिपोर्ट में जैविक असर समीक्षा भी करना अनिवार्य होगा. इस बीच मीडिया में आई एक खबर में बताया गया है कि वन्य-जीव संरक्षण सोसाइटी इंडिया ने राजस्थान के पोखरण जिले में ऐसे 1,848 डाइवर्टर लगाने का काम शुरू भी कर दिया है.
अंधाधुंध शिकार और आवास के नष्ट होने के कारण दुनिया भर में कई जीव खतरे में पड़ गए हैं. आइए जानते हैं ऐसी विलुप्त हो रही आठ प्रजातियों के बारे में जिन्हें बचाने के लिए तुरंत कदम उठाने होंगे.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Karumba
उत्तरी सफेद राइनो
इस प्रजाति का आखिरी नर सूडान भी हाल ही में मर गया. विलुप्त हो चुकी इस प्रजाति को अब भी वैज्ञानिक आईवीएफ तकनीक के जरिए फिर से वापस लाने की कोशिशों में लगे हैं. वहीं बाकी ने मान लिया है कि हमने इन्हें हमेशा हमेशा के लिए खो दिया.
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दक्षिण चीनी बाघ
बाघों की सभी प्रजातियों में यह सबसे ज्यादा खतरे में है. सन 1970 से ही एक भी दक्षिण चीनी बाघ प्राकृतिक माहौल में नहीं दिखा है. कब्जे में रखे गए ऐसे बाघ भी संख्या में 80 से कम ही हैं. इन्हें भी एक तरह से खत्म मान ही लिया गया है.
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आमूर तेंदुआ
प्रकृति में ऐसे 80 से भी कम तेंदुए रहते हैं. इस तरह यह हमारी पृथ्वी पर पाई जाने वाली सबसे दुर्लभ बड़ी बिल्लियों में से एक है. दक्षिणी चीन, उत्तरी रूस और कोरियाई प्रायद्वीप के जंगलों में इसका प्राकृति आवास रहा है. इसे सबसे बड़ा खतरा शिकार और घटते जंगलों से है.
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वाक्विता या खाड़ी सूंस
खाड़ी सूंस के नाम से लोकप्रिय वाक्विता दुनिया की सबसे दुर्लभ समुद्री जीव है. इस समय शायद ऐसी केवल 15 मछलियां ही बची हों. हालांकि इसका कभी भी सीधे शिकार नहीं किया गया लेकिन कैलिफोर्निया के खाड़ी इलाके में एक दूसरी मछली टोटोआबा को पकड़ने के लिए डाले जाने वाले जालों में यह अकसर खुद ही फंस जाया करती है.
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काला गैंडा
इनका भी वही हश्र हो सकता है जो सफेद राइनो का हो गया है. यह तादाद में केवल 5,000 ही बचे हैं. जिनकी तीन उपजातियां पहले ही गायब हो चुकी हैं. अवैध शिकार के कारण इनकी यह हालत हुई है और अब भी लोग सींग के लिए इनके पीछे पड़े हैं.
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लाल भेड़िया
दुनिया में केवल 30 लाल भेड़िए ही बचे हैं. रेड वुल्फ को गंभीर रूप से खतरे में पड़ी प्रजाति माना जाता है और इसे बचाने के काफी प्रयास जारी हैं. यह ग्रे वुल्फ और कायोटे के बीच का एक आनुवंशिक मिश्रण है. 1960 के दशक में चलाए गए एक अभियान से इन्हें काफी नुकसान पहुंचा. अब यह केवल उत्तरी कैरोलाइना में ही बचे हैं.
तस्वीर: Creative Commons
साओला
इन्हें सबसे पहले 1992 में देखा गया. शर्मीले और छुप कर रहने वाले साओला को 'एशियाई यूनिकॉर्न' भी कहा जाता है. इनका दिखना इतना दुर्लभ है कि आज तक केवल चार को ही रिसर्चर उनके प्राकृतिक आवास में देख सके हैं. विएतनाम और लाओस के जंगलों में इनका आवास माना जाता है. वे भी शायद 100 के आसपास ही बचे हैं.
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पूर्वी गोरिल्ला
धरती पर जिंदा बचा सबसे बड़ा प्राइमेट अब अवैध शिकार और जंगलों के कटने के कारण खुद खतरे में है. गोरिल्ला की यह उपजाति आबादी में कुल 3,800 के आसपास बची है. इनकी आबादी को स्थाई बनाने में अब भी काफी प्रयास किए जाने बाकी हैं. (इनेके मूलेस/आरपी)