बुधवार को जम्मू और कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को हटा लिए जाने की पहली वर्षगांठ है. पिछले साल पांच अगस्त को ही केंद्र सरकार ने विशेष राज्य का दर्जा निरस्त कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था.
विज्ञापन
जम्मू और कश्मीर की अर्ध-स्वायत्ता हटाए जाने की पहली वर्षगांठ के ठीक एक दिन पहले कश्मीर में कर्फ्यू लगा दिया गया है. प्रशासनिक अधिकारी जावेद इकबाल चौधरी ने बताया कि श्रीनगर में कुछ समूहों द्वारा पांच अगस्त को "काला दिवस" के रूप में मनाने की जानकारी मिलने के बाद शहर में कर्फ्यू लगाया गया. पुलिस और अर्धसैनिक बलों की गाड़ियां मोहल्लों से गुजरीं और सुरक्षाकर्मियों ने घर घर जा कर लोगों को घरों के अंदर ही रहने की चेतावनी दी.
सड़कों, पुलों और चौराहों पर स्टील के बैरिकेड और कंटीली तार लगा दिए गए. सरकारी आदेश के अनुसार, कर्फ्यू मंगलवार और बुधवार को लागू रहेगा. चौधरी ने यह भी कहा, "सूचना मिली है कि अलगाववादी और पाकिस्तान-प्रायोजित समूह पांच अगस्त को काला दिवस मनाने की योजना बना रहे हैं और उस दिन हिंसा और विरोध प्रदर्शन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है."
पिछले साल पांच अगस्त को ही केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा निरस्त कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था. इलाके में पहले से मौजूद करीब पांच लाख सुरक्षाकर्मियों के अतिरिक्त वहां हजारों और सुरक्षाकर्मी तैनात कर दिए गए. वादी के 70 लाख लोगों को संपूर्ण सुरक्षा तालाबंदी में महीनों तक रहना पड़ा, आने जाने की आजादी को सख्ती से प्रतिबंधित कर दिया गया और सम्मलेनों को भी प्रतिबंधित कर दिया गया. लैंडलाइन, मोबाइल और इंटरनेट को महीनों तक बंद रखा गया.
पांच अगस्त 2019 के पहले जम्मू और कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्राप्त था और राज्य के पास अपना झंडा और संविधान था. विशेष दर्जा हटाने के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि विशेष दर्जे ने कश्मीर को "आतंकवाद, अलगाववाद, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार के अलावा कुछ नहीं दिया था, लेकिन उनकी सरकार द्वारा लिए गए "ऐतिहासिक निर्णय" से इलाके में शांति और समृद्धि आएगी.
तब से वहां कई ऐसे कानून लाए गए हैं जिन के बार में स्थानीय लोगों का कहना है कि उनका उद्देश्य इस मुस्लिम-बहुल इलाके में जनसांख्यिकीय बदलाव लाना है. पांच अगस्त 2019 के कदमों के बाद प्रशासन पर कश्मीर में महीनों तक सूचना का ब्लैकआउट और एक कड़ी सुरक्षा नीति लागू करने का आरोप लगा. हजारों कश्मीरी युवा, राजनेता और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया गया. सैकड़ों लोग अभी भी हिरासत में हैं, जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और पूर्व सांसद सैफुद्दीन सोज शामिल हैं.
वादी में इंटरनेट भी बंद कर दिया गया था. इंटरनेट बहाल तो कर दिया गया है लेकिन सिर्फ 2जी पर. 4जी अभी भी प्रतिबंधित है और इस फैसले को अदालत में चुनौती दिए जाने के बाद भी सरकार ने अदालत में लगातार कहा है कि वादी में हालात अभी ऐसे नहीं हुए हैं कि 4जी इंटरनेट बहाल किया जा सके. मार्च तक कुछ प्रतिबंधों में ढील दी गई थी लेकिन कोरोना वायरस महामारी की रोकथाम के लिए तालाबंदी लागू कर दी गई और उसकी वजह से इलाके में आर्थिक और सामाजिक संकट और गहरा हो गया.
देश का संविधान किसी राज्य को विशेष नहीं कहता लेकिन इसके बावजूद कई राज्यों को "विशेष दर्जा" प्राप्त है. वहीं कई राज्य अकसर यह मांग करते नजर आते हैं कि उन्हें यह दर्जा मिले. लेकिन क्या होता है राज्यों का "विशेष दर्जा."
तस्वीर: picture-alliance/dpa/CPA Media Co. Ltd
क्या है राज्यों का "विशेष दर्जा"
संविधान में किसी राज्य को विशेष दर्जा दिए जाने जैसा कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन विकास पायदान पर हर राज्य की स्थिति अलग रही है जिसके चलते पांचवें वित्त आयोग ने साल 1969 में सबसे पहले "स्पेशल कैटेगिरी स्टेटस" की सिफारिश की थी. इसके तहत केंद्र सरकार विशेष दर्जा प्राप्त राज्य को मदद के तौर पर बड़ी राशि देती है. इन राज्यों के लिए आवंटन, योजना आयोग की संस्था राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) करती थी.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
क्या माने जाते थे आधार
पहले एनडीसी जिन आधारों पर विशेष दर्जा देती थी उनमें था, पहाड़ी क्षेत्र, कम जनसंख्या घनत्व या जनसंख्या में बड़ा हिस्सा पिछड़ी जातियों या जनजातियों का होना, रणनीतिक महत्व के क्षेत्र मसलन अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे इलाके, आर्थिक और बुनियादी पिछड़ापन, राज्य की वित्तीय स्थिति आदि. लेकिन अब योजना आयोग की जगह नीति आयोग ने ले ली है. और नीति आयोग के पास वित्तीय संसाधनों के आवंटन का कोई अधिकार नहीं है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Ali
14वें वित्त आयोग की भूमिका
केंद्र सरकार के मुताबिक, 14वें वित्त आयोग ने अपनी सिफारिशों में राज्यों को दिए जाने वाले "विशेष दर्जा" की अवधारणा को प्रभावी ढंग से हटा दिया था. केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश के मसले पर कहा कि केंद्र, प्रदेश को स्पेशल कैटेगिरी में आने वाला राज्य मानकर वित्तीय मदद दे सकता है. लेकिन सरकार आंध्र प्रदेश को "विशेष राज्य" का दर्जा नहीं देगी.
तस्वीर: Reuters/A. Parvaiz
"विशेष दर्जा" का क्या लाभ
नीति आयोग से पहले योजना आयोग विशेष दर्जे वाले राज्य को केंद्रीय मदद का आवंटन करती थी. ये मदद तीन श्रेणियों में बांटी जा सकती है. इसमें, साधारण केंद्रीय सहयोग (नॉर्मल सेंट्रल असिस्टेंस या एनसीए), अतिरिक्त केंद्रीय सहयोग (एडीशनल सेंट्रल असिस्टेंस या एसीए) और विशेष केंद्रीय सहयोग (स्पेशल सेंट्रल असिस्टेंस या एससीए) शामिल हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Hazarika
क्या है मतलब
विशेष दर्जा प्राप्त राज्य में केंद्रीय नीतियों का 90 फीसदी खर्च केंद्र वहन करता है और 10 फीसदी राज्य. वहीं अन्य राज्यों में खर्च का 60 फीसदी ही हिस्सा केंद्र सरकार उठाती है और बाकी 40 फीसदी का भुगतान राज्य सरकार करती है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Singh
किन राज्यों के पास है दर्जा
एनडीसी ने सबसे पहले साल 1969 में जम्मू कश्मीर, असम और नगालैंड को यह दर्जा दिया था. लेकिन कुछ सालों बाद तक इस सूची में अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा शामिल हो गए. साल 2010 में "विशेष दर्जा" पाने वाला उत्तराखंड आखिरी राज्य बना. कुल मिलाकर आज 11 राज्यों के पास यह दर्जा है.
तस्वीर: STRDEL/AFP/Getty Images
अन्य राज्यों की मांग
देश के कई राज्य "विशेष दर्जा" पाने की मांग उठाते रहे हैं. इसमें आंध्र प्रदेश, ओडिशा और बिहार की आवाजें सबसे मुखर रही है. लेकिन अब तक इन राज्यों को यह दर्जा नहीं दिया गया है.