दुनिया भर में प्रेस स्वतंत्रता खतरे में है. मीडिया को लोकतंत्र का चौथा खंभा कहा जाता रहा है, लेकिन अब लोकतांत्रिक देशों में भी उसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं. भारत भी इसका अपवाद नहीं है.
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हर साल 3 मई को प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है. इस साल का मुद्दा मीडिया और लोकतंत्र का रिश्ता है. लोकतंत्र में मीडिया की आलोचनात्मक भूमिका पर कोई विवाद नहीं रहा है लेकिन पिछले सालों में पश्चिम के लोकतांत्रिक देशों में भी उसकी भूमिका पर सवाल उठाए जाने लगे हैं. उसे लोकतंत्र में सूचना का माध्यम या सरकारी नीतियों की आलोचनात्मक विवेचना का वाहक समझने के बदले राजनीतिक दलों और राजनीतिज्ञों के समर्थन या विरोध का मंच समझा जाने लगा है.
भारत भी इसका अपवाद नहीं है. प्रेस स्वतंत्रता इंडेक्स में 180 देशों की सूची में उसका स्थान 140वां है. मीडिया से जुड़े लोग भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं. कहीं उसे प्रेस्टिच्यूट कहकर बदनाम किया जा रहा है तो कहीं गोदी मीडिया कह कर. सोशल मीडिया ने इस संकट को और बढ़ाया है. एक ओर परंपरागत मीडिया समाचार का पहला स्रोत नहीं रह गया है और दूसरी ओर आमदनी गिरने से रिपोर्ट पर रिसर्च के संसाधन कम हुए हैं. नतीजा दुनिया भर में मीडियाकर्मियों की संख्या में कटौतियों और अखबारों की बिक्री में कमी के रूप में सामने आ रहा है.
लोकतंत्र में भूमिका
लोकतंत्र सत्ता के विभाजन के सिद्धांत पर टिका है. इसमें कानून बनाने का काम निर्वाचित जन प्रतिनिधियों का है, कानून की संवैधानिकता की जांच का अधिकार न्यायपालिका का है और कानूनों के पालन की जिम्मेदारी सरकारों की है. लोकतंत्र का चौथा पाया कहे जाने वाले मीडिया की जिम्मेदारी मुद्दों को सामने लाने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में योगदान देने और लोगों की भागीदारी को सुनिश्चित करने की है.
लेकिन जिस तरह आलोचना को हमला समझा जाने लगा है और मीडिया तथा मीडियाकर्मियों पर हमले होने लगे हैं, वह भी सिर्फ गैर सरकारी किरदारों की ओर से नहीं बल्कि सरकारी प्रतिनिधियों की ओर से भी, मीडिया जगत को और समाज को भी आत्मविवेचना करने की जरूरत है. लोकतंत्र में मीडिया भी आलोचना से परे नहीं है, लेकिन संस्थाओं की एक दूसरे की आलोचना एक दूसरे के आदर और लोकतंत्र में उनकी जगह को ध्यान में रखते हुए होनी चाहिए.
स्वतंत्रता की गारंटी
भारत में भी लोकतंत्र की संरचना में भूमिका निभाने वाली संस्थाओं के वित्तीय प्रबंधन, मुनाफे, कर्मचारियों के वेतन, अतिरिक्त कमाई जैसे मुद्दों पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए ताकि आलोचनात्मक मीडिया को आजादी से काम करने की गारंटी मिल सके. अगर समाज में विसंगतियों, कुव्यवस्थाओं और असामाजिक परिस्थितियों को सुधारना है, जिनमें अशिक्षा, बेरोजगारी, अमानवीय परिस्थितियों में निवास, पर्यावरण की दुर्दशा, शोषण आदि शामिल है तो आजाद मीडिया जरूरी है. यह राजनीतिज्ञों और सरकारों के लिए भी आइने जैसा है कि उन्हें और क्या क्या करना है.
लोकतंत्र सिर्फ पांच साल के लिए नए राजा या शासक का चुनाव नहीं है. लोकतंत्र लोगों की भागीदारी के साथ उनके अपने जीवन के आयोजन की व्यवस्था है. यह भागीदारी सिर्फ चुनाव के समय नहीं बल्कि सारे समय सुनिश्चित करना हर सरकार, हर संसद और हर न्यायपालिका का जिम्मेदारी है. इसमें मीडिया की भूमिका को नकारना लोकतंत्र को कमजोर ही करेगा. इसलिए मीडिया पर आलोचना की निगाह रखते हुए उसकी आजादी को सुनिश्चित करना हर लोकतांत्रिक नागरिक की जिम्मेदारी है. और नागरिकों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए मीडिया और मीडियाकर्मियों को भी अपनी प्रतिबद्धता बढ़ानी होगी.
इन पत्रकारों को मिली अपना काम करने की सजा
मीडिया की आजादी पर कहीं कम खतरा है तो कहीं ज्यादा. वन फ्री प्रेस कॉलिशन का उद्देश्य इसी को उजागर करना है. संस्था ऐसे पत्रकारों के बारे में जागरूक करना चाहती है जिनकी जान को या तो खतरा बना हुआ है या फिर जान ली जा चुकी है.
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वन फ्री प्रेस कॉलिशन
मार्च 2019 में "वन फ्री प्रेस कॉलिशन" की स्थापना हुई जो कि दुनिया भर के मीडिया संस्थानों का ऐसा मंच है जहां अभिव्यक्ति की आजादी पर चर्चा होती है. डॉयचे वेले भी इससे जुड़ा है. हर महीने प्रेस फ्रीडम से जुड़े दस मामलों की सूची जारी की जाएगी. जानिए अप्रैल 2019 की सूची में कौन कौन है.
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मिरोस्लावा ब्रीच वेलदुसेआ, मेक्सिको
मार्च 2017 में मेक्सिको की मिरोस्लावा ब्रीच की हत्या कर दी गई. मिरोस्लावा नेताओं और माफिया के संबंधों पर रिपोर्टिंग कर रही थीं. हत्या से पहले तीन बार उन्हें धमकियां मिली थीं. फिलहाल एक संदिग्ध हिरासत में है और मामला अदालत में चल रहा है.
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मारिया रेसा, फिलीपींस
13 फरवरी 2019 को फिलीपींस के नेशनल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन ने मारिया रेसा को गिरफ्तार किया. उन पर साइबर कानून के उल्लंघन का मामला दर्ज था. अगले दिन उन्हें रिहा तो कर दिया गया लेकिन उनकी कंपनी रैपलर पर टैक्स संबंधी मामले शुरू कर दिए गए. 28 मार्च को रैपलर के कई पत्रकारों के खिलाफ वॉरंट जारी किए गए.
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त्रान थी नगा, वियतनाम
अदालत में महज एक दिन की पेशी के बाद इन्हें नौ साल की कैद की सजा सुना दी गई. इन पर आरोप है कि इन्होंने सरकार के खिलाफ प्रचार किया. त्रान थी को नकारात्मक प्रोपेगैंडा चलाने का दोषी पाया गया क्योंकि उन्होंने ऐसे कई वीडियो बनाए थे जो प्रशासन की आलोचना करते थे और भ्रष्टाचार को दर्शाते थे.
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आजिमजोन अस्कारोव, किर्गिस्तान
इन्होंने देश में मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ आवाज उठाई और कई रिपोर्टें बनाईं. अपने इस जुर्म की सजा के तौर पर ये नौ साल जेल में बिता चुके हैं. अंतरराष्ट्रीय समुदाय के आग्रहों के बावजूद किर्गिस्तान सरकार सजा खत्म करने के लिए राजी नहीं है.
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राणा अयूब, भारत
भारत में राणा अयूब एक जाना माना नाम है. राणा स्वतंत्र पत्रकार हैं और अल्पसंख्यकों, दलितों और महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर आवाज उठाती रही हैं. इसके लिए उन्हें लगातार ऑनलाइन ट्रोलिंग का सामना करना पड़ता रहा है. राणा को जान से मार देने की धमकियां मिलीं, उनके चेहरे को मॉर्फ कर नग्न तस्वीरों के साथ लगाया गया और उनका पता और फोन नंबर सार्वजानिक किया गया.
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मिगेल मोरा और लुसिया पिनेडा उबाउ, निकारागुआ
दिसंबर 2018 में निकारागुआ पुलिस 100% नोटिसियास नाम के टीवी चैनल के दफ्तर में पहुंची और स्टेशन डायरेक्टर मिगेल मोरा और न्यूज डायरेक्टर लुसिया पिनेडा उबाउ को गिरफ्तार कर लिया. दोनों पत्रकारों को नफरत और हिंसा फैलाने के जुर्म में कैद किया गया है. उन्हें उनके कानूनी अधिकारों से भी वंचित रखा जा रहा है.
तस्वीर: 100% Noticias
आना निमिरियानो, दक्षिण सूडान
इन्हें सरकार की ओर से अपना अखबार "जूबा मॉनिटर" बंद करने को कहा गया है. आए दिन इनके पत्रकारों को पुलिस गिरफ्तार कर लेती है और इनका सारा समय उन्हें जेल से रिहा कराने में लग जाता है. इनके काम को भी लगातार सेंसर किया जाता है. लेकिन इसके बावजूद इन्होंने अपने कदम पीछे नहीं खींचे हैं.
तस्वीर: IWMF
अमादे अबुबकार, मोजाम्बिक
जनवरी 2019 को इन्हें सैन्य हमले से भागते परिवारों की तस्वीर खींचते हुए गिरफ्तार किया गया था. कई दिन सेना की कैद में गुजारने के बाद इन्हें जेल भेज दिया गया. लेकिन इनकी रिहाई के कोई आसार नहीं दिखते क्योंकि बिना कानूनी कार्रवाई के ही इन्हें कैद में रखा जा रहा है.
तस्वीर: DW/J. Beck
क्लाउडिया डुकु, कोलंबिया
2010 में इंटरनेशनल वुमेंस मीडिया फाउंडेशन ने इन्हें "करेज इन जर्नलिज्म" पुरस्कार से नवाजा था. क्लाउडिया का अपहरण किया गया, उन्हें मानसिक रूप से टॉर्चर किया गया और गैरकानूनी रूप से उन पर लगातार नजर रखी गई. अदालत ने क्लाउडिया और उनकी बेटी की प्रताड़ना के आरोप में खुफिया सेवा के तीन उच्च अधिकारियों को दोषी पाया लेकिन जनवरी 2019 में ये सब रिहा हो गए.
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ओसमान मीरगनी, सूडान
फरवरी 2019 में अल तयार नाम के अखबार के मुख्य संपादक मीरगनी को गिरफ्तार किया गया. अब तक यह नहीं बताया गया है कि उन पर क्या आरोप लगाए गए हैं. रिपोर्टों के अनुसार कैद में उनकी सेहत लगातार बिगड़ रही है. गिरफ्तारी से ठीक पहले वे सूडान में सरकार के खिलाफ चल रहे प्रदर्शनों पर लिख रहे थे.