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विश्व बाजार में हड़कंप का शेयर

५ अगस्त २०११

कारोबारी हफ्ते के आखिरी दिन दुनिया भर के बाजारों ने रसातल में गोता लगा दिया और निवेशकों की सांस फिर फूल गई कि कहीं सोमवार को बाजार तीन साल पुरानी याद न दिला दे. मार्केट का नया लीडर बन रहा चीन बैठकें कर रहा है.

रेखाओं का हड़कंपतस्वीर: picture alliance/dpa

2008 में कुछ इन्हीं महीनों में अमेरिका सहित बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने हिचकोला खाया तो पूरी दुनिया हिल कर रह गई और बैंकिंग सेक्टर से लेकर सरकारी वित्तीय नीतियां हमेशा हमेशा के लिए बदल दिए गए. कर्ज संकट के बाद उसी अमेरिका से फिर परेशानी शुरू हुई है, जहां अच्छे और बुरे कारोबारी मौसम की कसौटी समझे जाने वाले न्यू यॉर्क स्टॉक एक्सचेंज ने लाल रंग की चादर ओढ़ ली है. गुरुवार को वह 500 से ज्यादा अंक ढलक गया.

इसके बाद तो लाल रंग का असर पूरी दुनिया पर दिखने लगा. यूरोप, एशिया और भारत के बाजारों के भी ऊपर जाने वाले हरे तीर बुझे रहे और धरातल दिखाने वाले लाल तीरों ने निवेशकों और सरकारों को परेशान कर रखा. बाजार में खरीदार नहीं मिल रहे हैं और शेयर बेचने वालों का तांता लग गया है. ऐसी स्थिति, जो बेचैनी और अविश्वास बढ़ाता है.

इसका असर यह हुआ कि सोने की कीमत एक प्रतिशत चढ़ गई और कच्चे तेल के दाम फिर बढ़ गए. हाल की मंदी के बाद सोने को सुरक्षा की सबसे बड़ी गारंटी के रूप में देखा जाने लगा है.

हर तरफ बेचैनी

शुक्रवार को यूरोपीय बाजार जब खुले, तो उनमें कोई आत्मविश्वास नहीं दिखा. दो बड़े बाजारों इंग्लैंड और जर्मनी ने नीचे गिरना शुरू किया, तो महाद्वीप के दूसरे मार्केट भी औंधे मुंह गिरने लगे. लंदन में रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड के शेयर आठ फीसदी खिसक गए और एफटीएसई को कारोबार शुरू होते ही 100 अंकों का चूना लग गया. जानकारों का कहना है कि निवेशक घबरा गए हैं कि उनका पैसा पता नहीं सुरक्षित है या नहीं. सुबह में स्पेन का बाजार भी उथल पुथल से भरा रहा और अटकलें लगने लगीं कि यूरोपीय बैंक स्पेन और इटली के शेयर खरीदने का मन बना रहा है. लेकिन बाद में पता चला कि सिर्फ पुर्तगाली और आयरलैंड के शेयर ही खरीदे गए. यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल भी इस स्थिति पर गंभीरता से नजर रख रही हैं. वह फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोला सारकोजी और स्पेन के प्रधानमंत्री खोसे लुइस रोड्रिगेज जापातेरो से इस मुद्दे पर बातचीत कर रही हैं.

परेशानी की लाल रेखाएंतस्वीर: dapd

अमेरिका का वित्त संकट ऐसे वक्त में उभर रहा है, जब आम तौर पर मजबूत समझी जाने वाली यूरोप की इकोनॉमी भी भारी दबाव में है. ग्रीस, पुर्तगाल और आयरलैंड के बाद अब इटली और स्पेन पर संकट के बादल छा रहे हैं और एक ही मुद्रा यूरो का इस्तेमाल करने वाले देशों में असंतोष बढ़ता जा रहा है. ब्रिटेन को छोड़ कर यूरोप के सभी मजबूत देश यूरो इस्तेमाल करते हैं.

सेंसेक्स भी धड़ाम

भारतीय शेयर बाजार सेंसेक्स भी अमेरिका और वैश्विक बाजारों के प्रभाव में आ गया और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज लगभग 575 अंक गिर कर 17,000 से नीचे चला गया. दुनिया भर के बाजार जिस वक्त चल रहे होते हैं, उस वक्त अमेरिकी बाजार बंद रहता है और हफ्ते का आखिरी दिन होने की वजह से ऐसी परिस्थितियों में कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता.

इससे पहले जापान का शेयर बाजार साढ़े तीन प्रतिशत गिर गया. सूनामी के बाद से यह उसका सबसे खराब प्रदर्शन है. एशिया के दूसरे बाजारों का भी यही हाल रहा और वे अमेरिकी बाजार से बुरी तरह प्रभावित दिखे.

चीन की अपील

चीन के वित्त मंत्री ने संकट की स्थिति को देखते हुए ज्यादा सहयोग पर जोर दिया है. आर्थिक मोर्चे के दो सबसे शक्तिशाली औजार डॉलर और यूरो के संकट में फंसने के बाद दुनिया भर की नजरें चीन की तरफ ही जा रही हैं, जो एक बेहद मजबूत आर्थिक शक्ति बन कर उभरा है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सिरमौर बनने की दिशा में बढ़ रहा है.

हिलेरी और यांगतस्वीर: ap

विदेश मंत्री यांग जाइची का कहना है कि यूरोप का कर्ज संकट बढ़ता जा रहा है और अमेरिका में भी वित्तीय मुश्किलें तेज हो रही हैं. ऐसी स्थिति में सभी देशों को एक दूसरे से संपर्क बढ़ाने की जरूरत है. चीन से दुनिया को भले बहुत उम्मीद हो लेकिन वह अपने घर पर भी महंगाई से जूझ रहा है, जो पिछले तीन साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच चुका है. चीन ने हाल के सालों में डॉलर छोड़ यूरो में हाथ आजमाया है और उसका कहना है कि वह अपने सबसे बड़े कारोबारी साझीदार यूरोप पर ज्यादा भरोसा कर रहा है. इस साल पूरे विश्व के आर्थिक विकास का एक तिहाई हिस्सा चीन का होगा.

पिछली बार वैश्विक मंदी के दौरान चीन का आर्थिक विकास चलता रहा था. इस बात को लेकर चीन से उम्मीदें बढ़ गई हैं. दुनिया को आस है कि अगर खुदा न खास्ता फिर दुनिया के सामने तीन साल पहले जैसा संकट आया, तो चीन उनकी मदद कर सकता है. हालांकि जानकारों का कहना है कि पिछली बार चीन ने अपना दम लगा दिया था और ऐसी हालत में वह फिर से दुनिया की अर्थव्यवस्था में जान फूंकने की हालत में नहीं होगा. वैसे भी वह अपने यहां महंगाई पर काबू पाने में लगा है.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए जमाल

संपादनः महेश झा

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