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सरकारी कैबिनेटों में लैंगिक बराबरी का लक्ष्य

७ जून २०१९

संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएन वीमेन की प्रमुख ने सन 2020 तक दुनिया भर में लैंगिक संतुलन वाले सरकारी मंत्रिमंडल बनाने के अपने अभियान के बारे में बताया. जानिए एक साल में कैसे पूरा हो सकता है ये लक्ष्य.

London 100 Jahre Frauenwahlrecht
तस्वीर: Getty Images/D. Kitwood

यूएन वीमेन की प्रमुख का कहना है कि जिन देशों में भी अभी चुनाव हो रहे हों अगर वे सांसदों के रूप महिलाओं और पुरुषों को बराबर संख्या में चुनने को प्राथमिकता दें, तो ऐसा हो सकता है. संयुक्त राष्ट्र की इस संस्था का नेतृत्व करने वाली फुमजिले म्लाम्बो-न्गुका इससे पहले दक्षिण अफ्रीका की उपराष्ट्रपति भी रह चुकी हैं.अब यूएन वीमेन के माध्यम से वे एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल करना चाहती हैं. लक्ष्य है अगले एक साल में विश्व भर में लैंगिक बराबरी वाले कैबिनेटों की संख्या को दोगुना करना.

म्लाम्बो-न्गुका का मानना है कि लैंगिक संतुलन वाली कैबिनेट ना केवल महिलाओं के लिए बेहतर फैसले लेती है बल्कि पूरे समाज और अर्थव्यवस्था के लिहाज से ज्यादा व्यापक रूप से भी. महिलाओं का कैबिनेट स्तर पर नेतृत्व होने से आने वाली पीढ़ियों के लड़के-लड़कियों को भी सही रोल मॉडल मिलेंगे.

फुमजिले म्लाम्बो-न्गुका इसके पहले दक्षिण अफ्रीका की उपराष्ट्रपति भी रही हैं.तस्वीर: picture-alliance/dpa/G. Fischer

फिलहाल विश्व भर के केवल 11 देशों में लैंगिक बराबरी वाली कैबिनेट हैं. म्लाम्बो-न्गुका की उम्मीद है कि सितंबर 2020 तक हम ऐसी 25 कैबिनेट देख सकते हैं. उनका ये भी मानना है कि इस बदलाव का नेतृत्व अफ्रीकी देश कर सकते हैं. म्लाम्बो-न्गुका ने कहा, "हम चाहेंगे कि हमारी लड़कियां नेतृत्व करने की आकांक्षा लेकर बड़ी हों - अपने देश का नेतृत्व करने की, किसी कंपनी या संस्था का नेतृत्व करने की और इसके लिए जरूरी है कि वे ऐसी महिलाओं को देख पाएं." इस मॉडल को लड़कों के लिए भी फायदेमंद बताते हुए उन्होंने कहा कि अगर कैबिनेट में आधे-आधे महिला और पुरुष होंगे तो लड़के भी यह आसानी से समझ सकेंगे कि ऐसी "विविधता जीवन का आम स्वरूप है ना कि अलग थलग होना."

सन 2015 में कनाडा दुनिया का पहला देश बना जिसने लैंगिक बराबरी वाली कैबिनेट बनाई. उसके अलावा इथियोपिया, सेशल्स, दक्षिण अफ्रीका और रवांडा में भी संतुलित कैबिनेट हैं. यूएन वीमेन प्रमुख ने बताया कि वे इस समय भी कई देशों से संपर्क में हैं. उनका मानना है कि नीतिगत मामलों में महिलाएं पुरुषों से अलग और नए तरह के विचार लेकर आती हैं. जैसे जब वे खुद 1999 में दक्षिण अफ्रीकी सरकार में ऊर्जा मंत्री बनीं, तो उन्होंने सबसे पहले ग्रामीण इलाकों में बिजली पहुंचाने पर ध्यान दिया. इन इलाकों में महिलाओं का ज्यादातर समय जलाने की लकड़ी इकट्ठी करके लाने में बीतता था. हो सकता है कि अगर कोई महिला नेता इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए जिम्मेदार हो, तो वह नए  एयरपोर्ट विकसित करने से पहले पानी और सफाई जैसे पहलुओं पर ज्यादा ध्यान दे, जो कि लड़कियों के स्कूल से बाहर होने का बड़ा कारण बनते हैं. कई विकासशील देशों में स्कूलों में शौचालय ना होने के कारण किशोरावस्था में लड़कियां मजबूरन स्कूल नहीं जा पातीं.

अगले साल बीजिंग समझौते की 25वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी. महिला अधिकारों के लिए बेहद अहम माने जाने वाले इस समझौते में विश्व के 189 देशों ने हस्ताक्षर किए थे और निर्णय लेने वाली इकाइयों में लैंगिक बराबरी लाने का प्रण लिया था. बीते सालों में कई देशों ने लैंगिक बराबरी के कानून बनाए हैं और कई देशों में इसके लिए बकायदा मंत्रालय बनाए गए हैं, फिर भी इस मामले में विकास बहुत धीमी गति से हुआ है. केवल अफ्रीकी देशों में इस अभियान ने थोड़ी गति पकड़ी है. उप सहारा के कई देशों में अभी ही तमाम अमीर देशों के मुकाबले कहीं ज्यादा तादाद में महिला सांसद हैं. रवांडा की संसद में 61 फीसदी, नामीबिया की संसद में 46 फीसदी और दक्षिण अफ्रीका एवं सेनेगल में 42 फीसदी महिला सांसद हैं.

आरपी/एनआर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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