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वीजा नियमों से परेशान जर्मन कंपनियां

१४ जनवरी २०१३

जर्मन कंपनियों की शिकायत है कि सरकार वीजा लगाने में बहुत देर करती है, जिस कारण कई बार उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है. देश में वीजा के नियम बदलने की मांग बढ़ रही है.

तस्वीर: katatonia/Fotolia

हाल ही में जर्मनी के एक कृषि मेले में लाखों का एक सौदा पक्का हुआ. लेकिन इसे पूरा नहीं किया जा सका क्योंकि विदेशी साझेदार के दस्तखत की जरूरत थी और उसे वीजा ही नहीं मिला था. दूतावास का कहना था कि आवेदन पत्र पर गलत फोन नंबर दिया गया था जिस कारण वे अपनी जांच पूरी नहीं कर पाए.

यह इकलौता ऐसा मामला नहीं है. जर्मनी में उद्योग मामलों के जानकार और कमिटी ऑन ईस्टर्न यूरोपियन इकॉनोमिक रिलेशंस के प्रवक्ता आंद्रेयास मेट्स कहते है कि यह उनकी समझ से बाहर है कि क्यों आज भी इतने पुराने वीजा कानून का पालन किया जा रहा है, "वीजा का यह सिस्टम 19वीं सदी में बनाया गया था. आज सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बिलकुल अलग तरीके मौजूद हैं. अब बायोमेट्रिक पासपोर्ट हैं, सारी जानकारी कंप्यूटर पर मौजूद है, इस सब से यात्रा करना आसान होना चाहिए." मेट्ज चाहते हैं कि आने वाले समय में वीजा को पूरी तरह खत्म कर दिया जाए.

जर्मनी के आर्थिक और तकनीकी मामलों के मंत्री फिलिप रोएसलरतस्वीर: AP

सुरक्षा की दुहाई

यह चर्चा मंत्रियों के स्तर पर भी चल रही है. जर्मनी के आर्थिक और तकनीकी मामलों के मंत्री फिलिप रोएसलर भी वीजा में लचीलापन लाने के हक में हैं. हाल ही में उन्होंने गृह मंत्री हंस-पेटर फ्रीडरिष से वीजा कानून को बदलने की मांग की. गृह मंत्री को सुरक्षा की चिंता सता रही है. उनका कहना है कि वह वीजा की प्रक्रिया को आसान करने के खिलाफ नहीं है, लेकिन वीजा को पूरी तरह से हटा देना उन्हें गलत लगता है. गृह मंत्री ने कहा कि वह चाहते हैं कि सुरक्षा में कोई कमी ना आए और आप्रवासन की नीति का भी ख्याल रखा जाए.

इसके अलावा यह भी मांग की जा रही है कि रूस और तुर्की पर शेंगन वीजा के नाम पर जो सख्ती बरती जाती है उसे कम किया जाए. शेंगन वीजा के अंतर्गत 26 देशों में बिना वीजा लिए आया जाया जा सकता है. रूस और तुर्की इसका हिस्सा नहीं हैं. इसलिए यूरोप का हिस्सा होते हुए भी यहां से लोगों को वीजा ले कर ही आना पड़ता है. ये दोनों देश जर्मनी के लिए व्यापार के नजरिये से अहम हैं. लेकिन सरकार को डर है कि इन दोनों देशों से लोग अवैध रूप से यूरोप में घुसने की कोशिश कर सकते हैं.

शेंगन वीजा के नाम पर सख्ती को कम करने की मांगतस्वीर: picture alliance/dpa

दोहरे मानदंड

मेट्ज का कहना है कि वह जर्मनी के दोहरे मानदंडों से परेशान हैं. वह बताते हैं कि दूसरे शेंगन देश वीजा को ले कर इतनी सख्ती नहीं बरतते, "हर साल फिनलैंड 10 लाख रूसियों को वीजा देता है. जर्मनी से इसकी तुलना की जाए तो यहां संख्या केवल 3.4 लाख है. यहां तक कि पर्यटन पर निर्भर करने वाले देश जैसे की इटली और स्पेन भी इतने सख्त नहीं हैं."

वैसे 2011 में जर्मनी में वीजा के नियमों में कुछ सुधार देखा गया. मॉस्को में वीजा की अर्जियां जमा करने के लिए एक अलग सेंटर खोला गया. ऐसा ही तुर्की में भी किया गया. अधिकारियों का दावा है कि इस से वीजा की प्रक्रिया में कम समय लग रहा है. लेकिन मेट्ज का कहना है कि यह काफी नहीं है. उनकी कमिटी की मांग है कि इंटरनेट के जरिए भी वीजा दिया जाए. वह वीजा ऑन अराइवल की भी मांग कर रहे हैं और चाहते हैं कि सरकार वीजा के लिए भारी फीस लेना बंद करे.

मॉस्को में जर्मनी का वीजा सेंटरतस्वीर: DW/E.Winogradow

मेट्ज का कहना है कि इस कारण व्यापार में बहुत नुकसान झेलना पड़ता है. कमिटी द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पता चला है कि कम से कम 20 फीसदी जर्मन कंपनियां रूस के साथ सौदा नहीं कर पाईं क्योंकि उनके साझीदारों को वीजा नहीं मिला था.

जर्मनी का वीजा लेने के लिए आम तौर पर चार से छह हफ्ते का समय लगता है और इसके लिए फीस भी काफी ज्यादा है. लेकिन कई मामले ऐसे भी हैं जहां लोगों को 15 से 21 हफ्ते तक इंतजार करना पड़ा है.

रिपोर्ट: श्टेफानी होएपनेर/आईबी

संपादन: महेश झा

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