कई लोग आज भी पुराने जमाने की पैकमैन और रोड रनर जैसी वीडियो गेम खेलने पसंद करते हैं. इन्हें लुभाने के लिए अब गेम निर्माता नई गेम्स को भी पुराने अंदाज में पेश कर रहे हैं.
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बर्लिन में हुए गेम्सवीक में इस बार सबसे लोकप्रिय रही रेट्रो गेम्स, वे भी तीस साल पुरानी. गेम को हैंडल करना आसान नहीं है और ग्राफिक्स बिल्कुल पुराने स्टाइल के हैं. इसके बावजूद लोगों ने इन पर अपने हाथ आजमाए और वह भी पूरे जोश के साथ. बर्लिन के गेम डेवलपर योहानेस किर्स्टमन बताते हैं, "यह पुराने फर्नीचर जैसा है, जिसके बारे में आप सोचते हैं कि बस अब मैं इसे अपने लिविंग रूम में नहीं रखूंगा क्योंकि वह बहुत बड़ा है, बहुत भारी है. लेकिन फिर भी आपको वह पसंद है, आप उसकी कारीगरी को निहारते रहते हैं." एक साल पहले योहानेस किर्स्टमन और उनके साथी रिआद जेमिली ने अपनी नौकरी छोड़ी और खुद की कंपनी शुरू की. उनकी पहली गेम का नाम है द क्यूरियस एक्सपीडिशन. यह गेम कुछ ही महीने पहले बनाई गयी है लेकिन ग्राफिक्स को देख कर ऐसा लगता है जैसे नब्बे के दशक की कोई गेम हो. गेम का प्लॉट 19वीं सदी का है. गेम खेलने वाला व्यक्ति एक अभियान पर निकला है. वो दूर दराज के देश खोजता है और इस दौरान उसे नए नए चैलेंज मिलते हैं. कभी उसे अनजान लोगों का सामना करना होता है, तो कभी प्राकृतिक आपदाओं का.
ऐसे बदली वीडियो गेम की दुनिया
सुपर मारियो से ले कर ऐंग्री बर्ड्स तक.. वीडियो गेम की दुनिया सालों से हमारा मन बहलाती आई है. जानिए कौन से गेम कब रहे चर्चित..
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महिला एक्शन हीरो
हॉट पैन्ट्स, रकसैक और 9एमएम वाली दो पिस्तौलों के साथ लारा क्रॉफ्ट टूम्ब रेडर में काफी मशहूर हुईं. 1994 में टोबी गैर्ट ने आर्कियोलॉजिस्ट का कैरेक्टर बनाया. यह दुनिया घूमने की दीवानी थी. 2001 और 2003 में लारा क्रॉफ्ट की भूमिका एजेंलीना जोली ने एक फिल्म में निभाई.
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हिंसक हुआ गेम
1993 में डूम के साथ कंप्यूटर गेम की दुनिया में क्रांति आ गई. 3डी ग्राफिक और डॉल्बी साउंड के साथ यह खेल सच्चे दिखने लगे. मंगल पर एलियनों और राक्षसों के खिलाफ किशोर रात रात भर अंधेरे कमरों में लड़ते रहे.
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मेडल ऑफ ऑनर
नए कंप्यूटर गेम तेजी से कलात्मक दिखने लगे. किरदार सच्चाई के नजदीक आ गए. बारीक बातों का ध्यान रखा जाने लगा. मेडल ऑफ ऑनरः वॉर फाइटर के इस खेल में सैनिक के चेहरे पर जंग का असर साफ दिखता है. भले ही यह खेल भयानक हो लेकिन ग्राफिक की बारीकी शानदार है.
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स्क्रीन पर मैच
सुपर स्टार मेसी लगातार आगे बढ़ रहे हैं. फीफा के गेम्स के ताजे संस्करण का एक सीन. इसमें अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल खिलाड़ी कंप्यूटर स्क्रीन पर उतर आए. हर खिलाड़ी के खेलने के तरीके को कंप्यूटर के सॉफ्टवेयर में ढाल दिया गया. खेल सजीव हो उठे.
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कार रेसिंग
1994 से अब तक नीड फॉर स्पीड सीरीज में कई खिलाड़ी 300 अरब मील से भी ज्यादा कार दौड़ा चुके हैं. रोमांचक रेस ट्रैक, ट्यूनिंग के ऑप्शन. कुल मिला कर रोमांच और मजा. नए संस्करण मोस्ट वॉन्टेड में कोई नियम नहीं है. यहां सब एक दूसरे से भिड़ते हुए दौड़ते हैं और पुलिस उनका पीछा करती है.
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टोनी हॉक उर्फ बर्डमैन
स्केटबोर्ड पर घूमने वाला टोनी हॉक मशहूर गेम रहा. 1998 में एक्टिविजन कंपनी ने इस गेम को डिजाइन किया. आज इसके करीब 18 संस्करण हैं. मोटर हेड, पापा रोश, रेज अगेन्स्ट द मशीन इनमें से कुछ हैं. लेकिन इस से पहले की दुनिया काफी अलग थी.
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स्पाइरो एंड स्पार्क्स
अगली पीढ़ी का जंप एंड रन गेम है स्पाइरो. बेहतर तकनीक के साथ बेहतर ग्राफिक्स आए और बैकग्राउंड और आवाज भी बदली. 1988 में पहली बार सोनी प्लेस्टेशन का एडिशन आया. एक छोटे से ड्रैगन को अपने साथी की रक्षा करनी है और मुश्किलों के बीच ड्रैगन के अंडे जमा करने हैं.
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पैक मैन
1980 में एक बहुत ही क्लासिक गेम आया. काले स्क्रीन पर पैक मैन को छोटे छोटे गोले पकड़ने होते हैं. ये बिंदु हर दिशा से पैक मैन की ओर आते हैं. हर लेवल पर गेम की गति बढ़ती जाती है. कई बार एक्स्ट्रा प्वाइंट मिलते हैं. 2009 में सबसे तेज खिलाड़ी ने 255 लेवल तीन घंटे, 41 मिनट और 22 सेकंड में पार कर लिए.
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बीती बात
1972 में अटारी कंपनी ने पॉन्ग नाम का गेम शुरू किया. वैसे तो तब तक और भी वीडियो गेम बाजार में थे लेकिन पॉन्ग मशहूर हुआ. यह थोड़ा बहुत टेबल टेनिस जैसा है. आज भी इसे खेला जाता है हालांकि अब यह स्मार्टफोन के एप में शामिल हो गया है.
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मशहूर मारियो
मारियो फ्रेंड्स में सुपर मारियो को उसका असली काम दिया गया, प्लम्बर का. उसका भाई लुइगी के साथ वह जमीन के नीचे के पाइप्स में छिपे दुष्ट कछुओं, घिनौने झींगों से बचता है. इस गेम ने भारत में भी खूब धूम मचाई.
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बचपन की यादें
मारियो नाम का यह कंप्यूटर गेम बच्चों में बेहद लोकप्रिय रहा. 1980 और 1990 के दशक में कोई भी बच्चा इस किरदार को देखते ही चहक जाता था. जापान की कंपनी निनटेंडो का बनाया यह गेम इतना लोकप्रिय हुआ कि बाद में इसके कई और वर्जन भी आए.
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नहीं कहलाएगी आउटडेटेड
गेम के लैंडस्केप को तैयार करने के लिए कुछ ही पिक्सल्स की जरूरत पड़ी. योहानेस किर्स्टमन बताते हैं, "हमारी गेम बहुत जल्दी आउटडेटेड नहीं कहलाएगी क्योंकि इसके पास तो पहले से ही पुराना लुक है. इसलिए हम उम्मीद कर रहे हैं कि आने वाले पांच या दस सालों में भी यह चलन में रहेगी. जबकि आज कल तो ऐसा हो गया है कि कोई नई गेम बाजार में आती है और छह महीने में ही वो पुरानी हो जाती है." गेम का पूरा कॉन्सेप्ट पुराने जमाने की वीडियो गेम्स पर ही आधारित है. पुरानी एडवेंचर गेम्स की तरह यहां भी बहुत सारा टेक्स्ट है और कई पेचीदा चैलेंज हैं. अगर प्लेयर मर जाता है, तो गेम वहीं से आगे नहीं बढ़ती, बल्कि दोबारा से शुरू होती है. रिआद जेमिली का गेम के बारे में कहना है, "यह एक पेचीदा गेम है. आपको कुछ घंटे तो इसे समझने में ही लगेंगे. यह आपको पुरानी मुश्किल गेम्स की याद दिलाता है और यही इसका सबसे बड़ा आकर्षण है. आप खूब संघर्ष करते हैं और फिर विफल हो जाते हैं. हमारी गेम में आप कई तरह से हार सकते हैं, यही बात इसे दिलचस्प बनाती है."
गेमब्वाय के 25 साल
21 अप्रैल 1989 को पहली बार गेमब्वाय बाजार में आया. अटारी 2600 कंप्यूटर गेम से आज के वर्चुअल रियालिटी तक एक नजर.
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सफर में
गेमब्वाय ने कई बच्चों का दिल जीत लिया और सफर का सच्चा साथी बन गया. दो गुलाबी बटनों और काले क्रॉस वाले इस खेल की कीमत शुरू में जर्मनी में 160 मार्क यानी करीब 80 यूरो थी.
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अटारी 2600
गेमब्वाय से पहले टीवी से जुड़ा वीडियो गेम बाजार में आ चुका था. इसमें एक गेम था अटारी 2600, जो 1977 के दौरान अमेरिका में आ चुका था. हालांकि इसका ग्राफिक अच्छा नहीं था लेकिन यह रंगीन हो चुका था. 1990 के दशक की शुरुआत में ही तीन करोड़ अटारी 2600 बिक चुके थे.
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पहला पीसी
1982 में कोमोडोर 64 आया. आम तौर पर इसे सी64 कहा जाता था. ये कंप्यूटर न सिर्फ गेम के लिए इस्तेमाल होता था बल्कि इस पर छोटे मोटे प्रोग्राम भी बनाए जा सकते थे. इसमें कोई हार्ड डिस्क नहीं थी. खेल ऑडियो कैसेट रिकॉर्डर की तरह के उपकरण कोमोडोर डाटासेट से लोड होते थे.
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"मिस्टर निन्टेंडो"
हिरोशी यामाउची 53 साल जापानी कंपनी निन्टेंडो के प्रमुख रहे. 70 के दशक तक ये कंपनी जापानी ताश बेचती थी. हिरोशी ने कंपनी को नया रंग दिया. 1983 में निन्टेंडो ने फैमिली कंप्यूटर फैमिकॉम पेश किया. गेमिंग की दुनिया में निन्टेंडो ने नए झंडे गाड़ दिए.
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थोड़े दिन की सफलता
जापान की कंपनी सेगा का मेगा ड्राइव वीडियो गेम 1988 में बहुत हिट रहा. अमेरिका में इसका नाम सेगा जेनेसिस पड़ा. बाद में गेम की दुनिया से सेगा निकल गई और सॉफ्टवेयर के अलावा ऑर्केड कैबिनेट बनाने लगी.
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नया रूप
1990 में आया गेमब्वाय अगली सदी तक चला. इसके नए संस्करण गेमब्वाय पॉकेट, गेमब्वाय कलर, गेमब्वाय एडवांस और गेमब्वाय माइक्रो के रूप में आए. फिर गेमब्वाय सीरिज बंद हो गई और उसकी जगह निन्टेंडो डीएस (डुएल स्क्रीन) आया.
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सुपर मारियो
गेमब्वाय सीरीज की अपार सफलता के बाद 1990 में निन्टेंडो कंपनी ने टीवी के लिए एक और गेम बनाया, सुपर निन्टेंडो इंटरटेनमेंट सिस्टम. अगले सालों में इसके करीब पांच करोड़ गेम दुनिया भर में बिके, इस सीरीज का सबसे पसंदीदा गेम सुपर मारियो वर्ल्ड था.
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सीडी पर गेम
1994 के बाद सोनी के प्लेस्टेशन ने निन्टेंडो का बाजार छीन लिया. पहली बार वीडियो गेम सीडी पर आने लगे, कीमतें कम हो गईं और सेविंग क्षमता बढ़ गई. अभी प्लेस्टेशन गेम्स की चौथी पीढ़ी बाजार में है.
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माइक्रोसॉफ्ट का आगमन
प्लेस्टेशन की अपार सफलता के कारण माइक्रोसॉफ्ट कंपनी भी वीडियो गेम्स में उतरी. हालांकि उसका पहला गेम काफी देर से 2001 में एक्सबॉक्स के नाम से आया. काइनेक्ट स्पोर्ट्स राइवल नाम के वीडियो गेम ने गेमिंग में नई जान डाली. खिलाड़ी अपने हाव भाव से बहुत कुछ कर सकते थे.
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ड्रॉइंग रूम में
2006 में निन्टेंडो ने वी नाम का वीडियो गेम बाजार में उतारा. ये पहला गेम था जिसे आभासी रूप में खेला जा सकता था. अंगुलियों और शरीर की हरकत का असर स्क्रीन पर नजर आने लगा. इसके साथ वीडियो गेम की परिभाषा बदल गई.
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भविष्य की ओर
अब वीडियो गेम धीरे धीरे आभासी और वास्तविक दुनिया को जोड़ने की ओर बढ़ रहा है. ओक्युलस रिफ्ट जैसे खास 3डी चश्मे से खिलाड़ी बिलकुल असली जैसा दिखाई देता है. खास सेंसर से उसकी हरकतें पकड़ी जा सकती हैं. इस तरह के उपकरणों का इस्तेमाल सैनिक ट्रेनिंग में भी होता है.
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रेट्रो से अब तक
रेट्रो का नाम उन गेम्स को दिया जाता है जो बीस साल से ज्यादा पुरानी हों. 1972 में बनी "पौंग". इसके कुछ समय बाद स्पेस इनवेडर्स का जमाना आया. इसमें पहली बार गोलियां चलाई जा सकती थी. गेम डेवलपमेंट की दुनिया में यह एक बड़ा कदम था. फिर 1983 में आया मारियो. इसने पूरी दुनिया में उछल कूद वाली गेम्स का चलन चला दिया. और फिर आई रोमांच से भरी मंकी आइलैंड. नब्बे के दशक में बेहतरीन ग्राफिक्स के कारण इसे खूब पसंद किया जाने लगा.
आज भी डेवलपर इसके लुक को याद करते हुए ग्राफिक्स पर काम करते हैं. मिसाल के तौर पर 2009 में आई गेम माइनक्राफ्ट की साढ़े पांच करोड़ से भी ज्यादा प्रतियां बिकीं और अब इसे दुनिया के सबसे ज्यादा खेली जाने वाली वीडियो गेम में गिना जाता है. और इस कामयाबी की वजह हैं इसके ग्राफिक्स. कंप्यूटर गेम एक्सपर्ट आंद्रेआस लांगे बताते हैं, "पुरानी वीडियो गेम्स ऐसे वक्त में लोकप्रिय हुई, जब कंप्यूटर तकनीक का विस्तार शुरू ही हुआ था. पहले कंप्यूटर के साथ इन ग्राफिक्स के बारे में जानकारी मिली. और आज जब हम पीछे मुड़ कर देखते हैं, तो हमें समझ आता है कि ये डेवलपमेंट कितना जरूरी था. यह डिजिटल रेवोल्यूशन की शुरुआत थी और और ये रेट्रो ग्राफिक केवल गेम्स के लिहाज से ही नहीं, बल्कि पूरी कंप्यूटर तकनीक के लिए ही अहम रहे हैं."
कला जगत में भी ये रेट्रो गेम्स अपनी जगह बना चुके हैं. बर्लिन के गेम्स वीक में जगह जगह कैनवस पर एट-बिट-ग्राफिक्स देखे गए. सालों पुराने निनटेंडो से गेम डेवलपर भविष्य के लिए प्रेरणा ले रहे हैं.