अटलांटिक महासागर में एक जहाज डूबा. तीन दिन बाद जब राहतकर्मी जहाज के मलबे तक पहुंचे तो वहां चमत्कार दिखाई पड़ा.
विज्ञापन
दूसरे जहाजों को खींचने वाला जहाज अटलांटिक की गहराई में उल्टा पड़ा था. हादसे में 11 क्रू मेम्बर मारे जा चुके थे. राहत और बचाव दल को जहाज के मलबे का सटीक पता लगाने में तीन दिन लगे. तीन दिन बाद जब दक्षिण अफ्रीकी गोताखोरों की टीम जहाज के मलबे तक पहुंची, तो किसी को उम्मीद नहीं थी कि कोई जिंदा मिलेगा. आखिर पानी के भीतर कोई इंसान तीन कैसे जिंदा रह सकता है.
लेकिन इसके बाद जो हुआ वो किसी चमत्कार से कम नहीं था. मलबे के बीचोबीच 29 साल के हैरिसन ओडजेब्गा ओकेन मिले, वो भी जिंदा. ओकेन पानी में आधे डूबे थे और आधा शरीर हवा में था. यह हवा डूबे जहाज में फंसी रह गई. ओकेन को इसी हवा ने जिंदा रखा.
राहतकर्मियों ने सबसे पहले उन्हें ताजा पानी दिया. उसके बाद ऑक्सीजन सिलेंडर की मदद से ओकेन को ऊपर लाया गया. तीन साल बाद भी ओकेन को उस हादसे की बुरी यादें सताती हैं. अब वो समंदर के नाम से घबराते हैं. कभी चालक दल के सदस्य रहे ओकेन अब एक रेस्तरां के किचन में कुक का काम करते है.
मई 2013 में हुई इस घटना को आज भी सबसे हैरतंगेज घटनाओं में गिना जाता है.
मृत्यु का विज्ञान
मृत्यु क्या है और इंसान क्यों मरता है, मनुष्य इन सवाल का जवाब हजारों साल से खोज रहा है. चलिये देखते हैं आखिर विज्ञान मृत्यु और उसकी प्रक्रिया के बारे में क्या कहता है.
तस्वीर: J. Rogers
विकास से विघटन तक
30 की उम्र में इंसानी शरीर में ठहराव आने लगता है. 35 साल के आस पास लोगों को लगने लगता है कि शरीर अब कुछ गड़बड़ करने लगा है. 30 साल के बाद हर दशक में हड्डियों का द्रव्यमान एक फीसदी कम होने लगता है.
तस्वीर: colourbox/S. Darsa
भीतर खत्म होता जीवन
30 से 80 साल की उम्र के बीच इंसान का शरीर 40 फीसदी मांसपेशियां खो देता है. जो मांसपेशियां बचती हैं वे भी कमजोर होती जाती है. शरीर में लचक कम होती चली जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Murat
कोशिकाओं का बदलता संसार
जीवित प्राणियों में कोशिकाएं हर वक्त विभाजित होकर नई कोशिकाएं बनाती रहती हैं. यही वजह है कि बचपन से लेकर जवानी तक शरीर विकास करता है. लेकिन उम्र बढ़ने के साथ कोशिकाओं के विभाजन में गड़बड़ी होने लगती है. उनके भीतर का डीएनए क्षतिग्रस्त हो जाता है और नई कमजोर या बीमार कोशिकाएं पैदा होती हैं.
तस्वीर: Colourbox
बीमारियों का जन्म
गड़बड़ डीएनए वाली कोशिकाएं कैंसर या दूसरी बीमारियां पैदा होती हैं. हमारे रोग प्रतिरोधी तंत्र को इसका पता नहीं चल पाता है, क्योंकि वो इस विकास को प्राकृतिक मानता है. धीरे धीरे यही गड़बड़ियां प्राणघातक साबित होती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Warmuth
लापरवाही से बढ़ता खतरा
आराम भरी जीवनशैली के चलते शरीर मांसपेशियां विकसित करने के बजाए जरूरत से ज्यादा वसा जमा करने लगता है. वसा ज्यादा होने पर शरीर को लगता है कि ऊर्जा का पर्याप्त भंडार मौजूद है, लिहाजा शरीर के भीतर हॉर्मोन संबंधी बदलाव आने लगते हैं और ये बीमारियों को जन्म देते हैं.
तस्वीर: Imago
शट डाउन
प्राकृतिक मौत शरीर के शट डाउन की प्रक्रिया है. मृत्यु से ठीक पहले कई अंग काम करना बंद कर देते हैं. आम तौर पर सांस पर इसका सबसे जल्दी असर पड़ता है. स्थिति जब नियंत्रण से बाहर होने लगती है तो दिमाग गड़बड़ाने लगता है.
तस्वीर: picture-alliance/Klaus Rose
आखिरकार मौत
सांस बंद होने के कुछ देर बाद दिल काम करना बंद कर देता है. धड़कन बंद होने के करीब चार से छह मिनट बाद मस्तिष्क ऑक्सीजन के लिए छटपटाने लगता है. ऑक्सीजन के अभाव में मस्तिष्क की कोशिकाएं मरने लगती हैं. मेडिकल साइंस में इसे प्राकृतिक मृत्यु या प्वाइंट ऑफ नो रिटर्न कहते हैं.
तस्वीर: Imago/epd
मृत्यु के बाद
मृत्यु के बाद हर घंटे शरीर का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस गिरने लगता है. शरीर में मौजूद खून कुछ जगहों पर जमने लगता है और बदन अकड़ जाता है.
तस्वीर: Fotolia/lassedesignen
विघटन शुरू
त्वचा की कोशिकाएं मौत के 24 घंटे बाद तक जीवित रह सकती हैं. आंतों में मौजूद बैक्टीरिया भी जिंदा रहता है. ये शरीर को प्राकृतिक तत्वों में तोड़ने लगते हैं.
तस्वीर: racamani - Fotolia.com
बच नहीं, सिर्फ टाल सकते हैं
मौत को टालना संभव नहीं है. ये आनी ही है. लेकिन शरीर को स्वस्थ रखकर इसके खतरे को लंबे समय तक टाला जा सकता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक पर्याप्त पानी पीना, शारीरिक रूप से सक्रिय रहना, अच्छा खान पान और अच्छी नींद ये बेहद लाभदायक तरीके हैं.