दिल्ली में नगर निगमों के कर्मचारी वेतन ना मिलने के कारण हड़ताल पर हैं. वेतन ना दिए जाने की वजह निगमों के पास धन की कमी बताई जा रही है.
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कर्मचारियों को वेतन और पेंशन का भुगतान न करने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को नगर निगमों की जमकर खिंचाई की. कोर्ट ने कहा कि धन की कमी को वजह नहीं बनाया जा सकता और वेतन पाने का अधिकार भारत के संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है.
जस्टिस विपिन सांघी और रेखा पल्ली की खंडपीठ, दिल्ली नगर निगमों, विशेष रूप से उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) और पूर्वी दिल्ली नगर निगम (ईडीएमसी) के कर्मचारियों को वेतन और पेंशन का भुगतान नहीं करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
कोर्ट ने कहा, "समय पर वेतन का भुगतान न किए जाने का कारण धन की कमी बताया गया है. ये बहाना नहीं बनाया जा सकता क्योंकि वेतन और पेंशन लोगों का मौलिक अधिकार है. अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत वेतन का भुगतान नहीं करने का सीधा असर लोगों के जीवन की गुणवत्ता पर पड़ेगा."
अदालत ने आगे कहा कि यह बहुत जरूरी है कि निगमों के कर्मचारियों और सेवानिवृत्त कर्मचारियों को वेतन और पेंशन का भुगतान किया जाए, जिसमें डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ और स्वास्थ्य कार्यकर्ता भी शामिल हैं और जो महामारी के समय में भी अपनी सेवाएं दे रहे थे.
बेंच ने यह भी कहा कि पैसे की कमी बहाना नहीं हो सकती और न ही इसे स्वीकार किया जाना चाहिए. वेतन और पेंशन के भुगतान को अन्य खर्चों से ज्यादा प्राथमिकता देनी होगी.
अगली सुनवाई 21 जनवरी तक स्थगित करते हुए कोर्ट ने कहा, "हम नगर निगमों को निर्देश देते हैं कि वे विभिन्न मदों में किए जाने वाले खर्च का ब्योरा दें. कर्मचारियों के लिए भत्ते की राशि विशिष्ट मद में स्पष्ट रूप से दी जानी चाहिए. नगर निगमों के कर्मचारी अपनी तनख्वाह न मिलने को लेकर 7 जनवरी से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए हैं.
दिल्ली प्रवेश करने वाली कई सीमाओं पर पिछले करीब डेढ़ महीने से किसान नए कृषि कानून के खिलाफ धरने पर बैठे हैं. धरने में बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं.
तस्वीर: Sameeratmaj Mishra/DW
एकजुट किसान
13 जनवरी को किसानों ने सिंघु बॉर्डर, गाजीपुर बॉर्डर, टीकरी बॉर्डर पर कृषि कानूनों की प्रतियां जलाकर लोहड़ी का पर्व मनाया.
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सुप्रीम कोर्ट का आदेश
12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानून के अमल पर रोक लगाते हुए इसकी समीक्षा के लिए चार सदस्यीय कमेटी बनाई. लेकिन किसानों ने सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश मानने से इनकार कर दिया है और धरने पर बैठे हुए हैं.
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नई तकनीक के टेंट
किसानों का कहना है कि सरकार जब तक तीनों कृषि कानून वापस नहीं लेती है, किसान यहीं पर धरने पर बैठे रहेंगे. कड़ाके की सर्दी से बचने के लिए पारंपरिक तंबुओं के अलावा नई तकनीक पर आधारित टेंट भी बनाए गए हैं.
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अस्थाई निवास
किसानों ने ट्रैक्टरों की ट्रॉलियों को ही अपना अस्थाई निवास स्थान बना लिया है. ट्रॉलियों के ऊपर तंबू और नीचे यानी फर्श पर गद्दे बिछाकर रहने का इंतजाम किया हुआ है. दिन के समय कुछ ट्रॉलियों के ऊपर बैठकर लोग धूप सेंकने और ताश खेलने का भी काम करते हैं.
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शेल्टर होम
कुछ स्कूल बसों को भी शेल्टर होम के रूप में तब्दील किया गया है. खाली समय में बुजुर्ग लोगों को हुक्के के सामने और युवकों को मनोरंजन करते भी देखा जा सकता है.
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चेतावनी
किसानों के समर्थन में तमाम अन्य लोग भी धरने में शामिल हैं. राजनीतिक दलों को इसमें आने की मनाही है. हालांकि कई विपक्षी दलों ने किसानों के धरने को अपना समर्थन दिया है.
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मुफ्त सैलून सेवा
पंजाब-हरियाणा-राजस्थान से आए कई किसानों ने पानी गर्म करने का एक देसी तरीका भी ईजाद कर रखा है. उत्तराखंड से आए शाहनवाज पिछले दस दिन से किसानों को मुफ्त सैलून सेवा दे रहे हैं.
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जगह-जगह भंडारे
जगह-जगह भंडारे चल रहे हैं जिन्हें अलग-अलग संगठन चला रहे हैं. लोग सड़कों पर ही सब्जियां काटने और पकाने का काम कर रहे हैं.
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सभी जरूरतों का ख्याल
लोगों को सामान्य बीमारियों की स्थिति में दवाइयां और डॉक्टर भी उपलब्ध कराए गए हैं. कुल मिला कर प्रदर्शन कर रहे किसानों की सभी जरूरतों का ख्याल रखा जा रहा है.
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पुलिस तैनात
किसी भी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए सभी सीमाओं पर बड़ी संख्या में पुलिस बलों की तैनाती की गई है.