सीरिया के बाद अब रूस की सेना वेनेजुएला की जमीन पर है. रूस, वेनेजुएला के कम्युनिस्ट राष्ट्रपति निकोला मादुरो की सत्ता बचाना चाहता है. वहीं अमेरिका समेत पश्चिमी देश विपक्षी नेता और स्वघोषित राष्ट्रपति का समर्थन कर रहे हैं.
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रूस ने वेनेजुएला में अपनी सेना तैनात कर दी है. अपने भरोसेमंद साथी मादुरो की मदद के लिए मॉस्को ने मार्च 2019 में अपनी सेना वेनेजुएला भेज दी. अमेरिका समर्थित वेनेजुएला का विपक्ष रूस के इस कदम की आलोचना कर रहा है. इन आलोचनाओं का जवाब देते हुए रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जाखारोवा ने कहा, "वेनेजुएला की सीमा में रूसी विशेषज्ञों की मौजूदगी, रूस और वेनेजुएला सरकार के बीच मई 2001 में सैन्य और तकनीकी सहयोग के समझौते के तहत है."
स्वघोषित राष्ट्रपति खुआन गुआइदो का समर्थन कर रहे विपक्ष ने रूस और वेनेजुएला सरकार के इन कदमों की आलोचना की है. आलोचकों का कहना है कि मादुरो ने विपक्ष की अगुवाई में हुई नेशनल असेंबली को दरकिनार करते हुए देश में विदेश सैन्य मिशन को अनुमति दी है. मादुरो पर संसद के विशेषाधिकार का उल्लंघन कर रूसी सेना को इजाजत देने के आरोप भी लगाए जा रहे हैं. खुआन गुआइदो ने कहा, "ऐसा लगता है जैसे मादुरो सरकार को अपनी ही सेना पर भरोसा नहीं है, क्योंकि वह बाहरी सेना का आयात कर रही है, और एक बार फिर संविधान का उल्लंघन कर रही है."
वेनेजुएला में दूसरी बार राष्ट्रव्यापी ब्लैकआउट किया गया है. आसमान छूती महंगाई से परेशान जनता सत्ता के संघर्ष में पिस रही है. गुआइदो ने खराब होते हालात का जिक्र करते हुए कहा, "मादुरो की सरकार (रूसी) विमानों के जरिए जेनरेटर नहीं लाई है, वे इंजीनियर नहीं लाए हैं. वे राष्ट्र की जमीन पर विदेशी सेना लेकर आए हैं."
गुआइदो को समर्थन देता अमेरिका
जनवरी 2019 में खुआन गुआइदो ने खुद को वेनेजुएला का राष्ट्रपति घोषित किया. वॉशिंगटन ने फौरन तेल समृद्ध देश के युवा नेता गुआइदों के दावे को मान्यता दी. अमेरिका के बाद जर्मनी व अन्य पश्चिमी देशों ने भी गुआइदो को स्वीकार कर लिया. लेकिन मादुरो के पीछे रूस, चीन और तुर्की जैसे देश खड़े हैं. रूस और चीन पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि वेनेजुएला में बाहरी देश सैन्य दखल की न सोचें.
अब रूस की सेना के वेनेजुएला पहुंचने के बाद अमेरिका ने एक बार फिर गुआइदो का समर्थन किया है. गुआइदो की पत्नी फाबियाना रोसेल्स बुधवार को अमेरिकी उपराष्ट्रपति माइक पेंस से मिलने वाली हैं. इस मुलाकात से ठीक पहले अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय व्हाइट हाउस ने एक बयान जारी कर कहा, "अमेरिका अंतरिम राष्ट्रपति गुआइदो के नेतृत्व का समर्थन करने के लिए तत्पर है. वह आजादी के चैंपियन हैं. अमेरिका वेनेजुएला के लोगों के लिए लोकतंत्र की बहाली का समर्थन करता है."
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप यह भी कह चुके हैं कि अमेरिका मादुरो की सत्ता से निपटने के लिए सैन्य विकल्पों से भी परहेज नहीं करेगा. लेकिन वेनेजुएला के विपक्ष के साथ खड़े दक्षिण अमेरिका के सबसे बड़े देश ब्राजील ने सैन्य कार्रवाई पर आपत्ति जताई है. ब्राजील के विदेश मंत्री फर्नांडो अजेवेडो ए सिल्वा ने उम्मीद जताई है कि वेनेजुएला के राजनीतिक संकट का शांतिपूर्ण हल निकल सकता है.
(क्यों घुटनों पर गिरा वेनेजुएला)
क्यों घुटनों पर गिरा वेनेजुएला
तेल के अकूत भंडार पर बैठे देश वेनेजुएला में ऐसा क्या हो गया कि आज देश कई तरह के संकट से गुजर रहा है और पूरा तंत्र ध्वस्त होने की कगार पर है.
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विरोध प्रदर्शन
शुरुआत हुई मार्च के अंत में आए सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश से. विधायिका से सभी शक्तियां छीन लेने का फैसला आया था, जिसके जवाब में देश भर में विरोध प्रदर्शन होने लगे. अंतरराष्ट्रीय आलोचना के बाद राष्ट्रपति निकोलास मादुरो ने फैसला पलट दिया. लेकिन तब तक जनता सड़कों पर थी और रूकने को तैयार नहीं थी.
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पैसों का नहीं रहा कोई मोल
मार्च से वेनेजुएला में मुद्रास्फीति दर 220 प्रतिशत को भी पार कर गयी है. देश का सबसे बड़े नोट, 100 बोलिवार, का मोल साल के अंत तक आते आते 0.04 डॉलर से भी कम हो गया था. घर की रोजमर्रा की चीजें खरीदने के लिए भी बोरियों में भर कर पैसे ले जाने पड़ते.
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बढ़ती भूखमरी
बीते साल करीब 80 फीसदी खान पान की चीजें और दूसरी जरूरी चीजों की भारी कमी रही. वेनेजुएला के लोग हर हफ्ते 30 घंटे से ज्यादा समय दुकानों से सामान खरीदने के लिए खड़े होने में बिताते हैं. राष्ट्रपति मादुरो इस कमी का दोष अमेरिका के सट्टेबाजी कारोबार पर डालते हैं. विपक्ष कहता है कि सरकार ठीक से प्रबंधन नहीं कर पायी.
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स्वास्थ्य संकट 'युद्ध के हालात जैसा'
कोलंबिया में वेनेजुएलावासी मेडिकल सप्लाई इकट्ठी कर रहे हैं, ताकि उन्हें घर भेज सकें. पूरे देश के अस्पतालों में ऐसे हालात हैं जैसे युद्ध काल में होते हैं. मरीजों की मौत हो रही है, मलेरिया और डेंगू से लोग मारे जा रहे हैं.
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तेल भंडारों का क्या
बिजली खूब कटती है. ईंधन की कमी है. वेनेजुएला के जिन लोगों के पास तेल के इतने भंडार हैं, वे बेहाल हैं. 2014 में तेल की कीमतों में आयी 50-फीसदी तक की कमी से तेल पर निर्भर देश की हालत चरमरा गयी. 2013 में तेल से 80 अरब डॉलर आय हुई थी. वहीं 2016 में केवल 20 अरब डॉलर.
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आर्थिक संकट की जड़ें
2013 में गुजरे हूगो चावेज ने एक ऐसा देश छोड़ा था जहां गरीबी दर कम थी. शिक्षा और स्वास्थ्य का हाल बेहतर था और आर्थिक वृद्धि हो रही थी. लेकिन उन्हीं की सोशलिस्ट परंपरा का एक असर कुप्रबंधन भी था. ना केवल उनके कदमों से देश की तेल कंपनियों पर नियंत्रण काफी नहीं था, बल्कि वे 2006 से ही तेल उत्पादन घटने के बावजूद इस पर काफी खर्च करते गये.
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मादुरो ने भी आगे बढ़ाया
चावेज के चुने हुए उत्तराधिकारी मादुरो को भी सत्ता में चार साल हो गए और दो और साल बाकी हैं. विपक्ष उनसे कुर्सी खाली करने की मांग करता रहता है और उन्हें आर्थिक बर्बादी का जिम्मेदार बताता है. मादुरो पर विपक्ष अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने का भी आरोप लगाता है.
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सरकार विपक्ष के पीछे पड़ी
इसी साल अप्रैल में मादुरो ने विपक्ष के नेता हेनरिक कैपरिलेस को चुप कराने के लिए उन्हें 15 साल के लिए किसी सरकारी पद को संभालने के लिए अयोग्य घोषित करवा दिया. उन पर "प्रशासनिक गड़बड़ियों" का आरोप लगाया गया. कैपरिलेस के नेतृत्व में मादुरो के नाम पर जनमत संग्रह कराने का आंदोलन चल रहा था. इससे प्रदर्शनकारी और भड़क उठे.
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विपक्ष और विद्रोही हुआ
विरोध प्रदर्शनों के अलावा, विपक्ष ने करीब 20 लाख लोगों के हस्ताक्षर इकट्ठा किए हैं. इनकी मांग मादुरो के नाम पर रेफरेंडम कराए जाने की है. यह अनिवार्य संख्या से करीब 10 गुना ज्यादा है. सुप्रीम कोर्ट विरोधी की एक कार्रवाई में विपक्ष ने मादुरो के खिलाफ एक सांकेतिक सुनवाई भी करवायी.
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सबसे बड़े विरोध प्रदर्शन
पिछले सितंबर में 10 लाख से भी अधिक नागरिक काराकस में सड़कों पर उतरे थे. विपक्ष ने 19 अप्रैल को फिर विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया है. इसे वे "मदर ऑफ ऑल प्रोटेस्ट्स" बता रहे हैं और इसी दिन मादुरो के सत्ता में आने के चार साल पूरे होंगे. (कैथलीन शुस्टर/आरपी)