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टीके में बिहार अव्वल पर कोरोना टेस्ट में गड़बड़ी के आरोप

मनीष कुमार, पटना
११ फ़रवरी २०२१

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ताजा रैंकिंग में 78 प्रतिशत कोरोना वैक्सीनेशन के साथ बिहार पहले नंबर पर है. लेकिन कोरोना जांच में गड़बड़ी के मामले भी सामने आए हैं. इन आरोपों से पूरी प्रक्रिया पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है.

Indien Patna Impfung Covid-19
तस्वीर: Manish Kumar/DW

कोरोना वैक्सीन लगाए जाने के मामले में 78.1 फीसद औसत टीकाकरण के साथ बिहार फिर एक बार फिर पहले पायदान पर है. इससे पहले भी 76.6 प्रतिशत वैक्सीनेशन कर बिहार ने अव्वल स्थान प्राप्त किया था. केंद्र सरकार द्वारा जारी हालिया रैंकिंग में बिहार के बाद मध्यप्रदेश की जगह त्रिपुरा आ गया है जहां 77.1 फीसद वैक्सीनेशन किया गया है. इससे पहले सात फरवरी तक मध्य प्रदेश ने लक्ष्य का 76.1 तो त्रिपुरा ने 76 प्रतिशत हासिल किया था. किंतु बिहार ने अपनी बढ़त बरकरार रखी. वहीं दूसरी तरफ यह बात भी सामने आ रही है कि सोशल डिस्टेंशिंग, मास्क और अब वैक्सीन के बाद भी कोरोना का खतरा पूरी तरह टला नहीं है.

हालांकि यह भी बात भी सच है कि राज्य में कोरोना के मामले अब काफी कम संख्या में सामने आ रहे हैं. बीते बुधवार को कोविड के 64 नए मरीज मिले और इसके साथ ही राज्य में संक्रमितों की कुल संख्या 2,61,511 हो गई है. इनमें 2,59,234 मरीज स्वस्थ हो गए जबकि अब तक 1520 लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं कोरोना के एक्टिव मामलों की संख्या मात्र 755 रह गई है जबकि रिकवरी रेट 99.13 फीसद है. दूसरी तरफ ताजा आंकड़ों के अनुसार बिहार में 2 करोड़ 17 लाख 41 हजार 730 लोगों की कोरोना जांच हो चुकी है. वाकई, अन्य राज्यों की तुलना में ये आंकड़े भी काफी उत्साहवर्धक हैं और यह बताने को काफी हैं कि बिहार सरकार ने कोविड-19 पर काबू पाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. किंतु इसके साथ ही कोरोना जांच में गड़बड़ी का मामला भी सामने आया है.

जांच रिपोर्ट में फर्जीवाड़ा

बीते दिनों कई ऐसे मामले सामने आए जिनमें किसी को बिना जांच कराए कोरोना पॉजिटिव की रिपोर्ट मिली तो किसी को कोरोना निगेटिव होने की. इससे यह आरोप आम हो गया कि कहीं न कहीं कोरोना जांच रिपोर्ट डेटा में फर्जीवाड़ा किया गया. ऐसा ही एक मामला सदर अस्पताल, भागलपुर में सामने आया जहां चंद्रभानु नामक एक युवक अपने एक मित्र के कोरोना पॉजिटिव आने के बाद चार दोस्तों के साथ कोरोना जांच कराने पहुंचा. अन्य तीन ने अपना सैंपल दिया, किंतु किसी कारणवश चंद्रभानु सैंपल नहीं दे पाया. किंतु जब रिपोर्ट आई तो सैंपल नहीं देने वाले चंद्रभानु की भी रिपोर्ट भेज दी गई थी जो निगेटिव थी. हालांकि उसने इसकी शिकायत की और सक्षम पदाधिकारियों ने इसे तकनीकी भूल बताकर सुधार का भरोसा दिलाया.

कोरोना रोधी टीका लगाने में बिहार अव्वलतस्वीर: Manish Kumar/DW

इसी तरह का एक अन्य मामला भोजपुर जिले के बड़हरा प्रखंड में देखने को मिला जहां 70 वर्षीय शिवजनम सिंह को बिना स्वाब दिए ही कोरोना संक्रमित बता दिया गया था. इन्होंने कोरोना जांच शिविर में रजिस्ट्रेशन तो कराया था किंतु काफी इंतजार के बाद जब सैंपल नहीं लिया गया तो वे घर लौट गए थे. बांका जिले के शंभूगंज के कसबा गांव में भी बिना जांच के ही सात लोगों को कोरोना संक्रमित होने की रिपोर्ट भेज दी गई थी. इस गांव की रहने वाली नीलम देवी, निशा कुमारी, रितेश कुमार, रूपेश ठाकुर, उर्वशी बिहारी, मृत्युंजय ठाकुर व निरपेंद्र झा की शिकायत है कि वे जांच स्थल पर गए ही नहीं थे, तो नाम-पता व मोबाइल नंबर देने का तो सवाल ही नहीं होता. इसी गांव के एक ऐसे व्यक्ति को भी कोरोना पॉजिटिव बता दिया गया था जो गांव में मौजूद भी नहीं था. इसी तरह पूर्वी चंपारण के अरेराज में भी कई लोगों के मोबाइल फोन पर उनके कोरोना निगेटिव होने का मैसेज आया.

गलत नाम गलत फोन नंबर

इन मामलों से साफ है कि कहीं न कहीं किसी न किसी स्तर पर अनियमितता जरूर बरती गई, चाहे उद्देश्य जो भी रहा हो. हाल में ही मीडिया रिपोर्टों में भी यह सामने आया है कि कोरोना टेस्ट रिपोर्ट के आंकड़ों में नाम, उम्र और फोन नंबर में भारी पैमाने पर फर्जीवाड़ा किया गया है. पटना, जमुई व शेखपुरा जिले के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) में करीब 600 इंट्री में यह खुलासा हुआ है. यानी डेटा इंट्री और जांच रिपोर्ट, दोनों में ही गड़बड़ी हुई है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक पटना, शेखपुरा व जमुई के छह पीएचसी सेंटर में 16,18 व 25 जनवरी को कोरोना जांच के 588 इंट्री की जांच की गई तो पता चला कि डेटा प्रोटोकॉल को पूरा करने के लिए नाम, उम्र व मोबाइल फोन नंबर की पूरी डेटा इंट्री ही फर्जी थी. जब इन डेटा का मिलान किया गया तो पता चला कि जमुई जिले के बरहट की 230 इंट्री में 12, सिकंदरा की 208 इंट्री में 43 तथा जमुई सदर की 150 में 65 मामलों में ही कोरोना जांच को वेरिफाई किया जा सका.

यही हाल फोन नंबरों का भी रहा. बरहट में इन तीन विभिन्न तिथियों पर दर्ज क्रमश: 14,11 व 11 फोन नंबर गलत पाए गए. बरहट में ही एक ऐसा फोन नंबर मिला जिसे आरटी-पीसीआर टेस्ट के 26 मामलों में दर्ज किया गया था. यह फोन नंबर यहां से सौ किलोमीटर दूर बांका जिले के शंभूगंज निवासी मजदूर बैजू रजक का था. उसने इन लोगों से किसी तरह के संबंध से इनकार किया. इन 26 में 11 पुरुष, छह महिलाएं और नौ बच्चे थे. इसी शेखपुरा जिले के बरबीघा में 25 जनवरी को रिकार्ड किए गए आंकड़ों के अनुसार सोनाली कुमारी व अजीत कुमार की कोरोना जांच के लिए दर्ज फोन नंबर उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के एक मिष्टान्न विक्रेता का निकला जिसने पूछे जाने पर साफ तौर पर कहा कि मैं इनलोगों को नहीं जानता. कुछ नंबर तो ऐसे भी दर्ज थे जो उसी पीएचसी सेंटर के स्वास्थ्यकर्मियों के थे. रिपोर्ट में शेखपुरा के एक स्वास्थ्यकर्मी धमेंद्र कुमार का हवाला देते हुए साफ कहा गया है कि उसका फोन नंबर छह लोगों की जांच सूची में लिखा है जबकि इससे उसका कोई लेना-देना नहीं है. रिपोर्ट में मुंगेर जिले के असरगंज, जमुई के लक्ष्मीपुर के कई ऐसे लोगों का जिक्र है जिनके फोन नंबर का गलत इस्तेमाल कोरोना जांच रिपोर्ट के लिए दर्ज करने में किया गया.

स्टेशनों पर टेम्परेचर की जांचतस्वीर: Manish Kumar/DW

शिकायतों की हो रही है जांच

इन अनियमितताओं के संबंध में जमुई के जिला कार्यक्रम प्रबंधक (डीपीएम) सुधांशु लाल का कहना था, "ऐसी शिकायतें हमें भी मिली हैं. बरहट पीएचसी के चिकित्सा प्रभारी का वेतन रोक दिया गया. दोषी कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी." वहीं शेखपुरा के डीपीएम श्याम कुमार निर्मल ने कहा, "आरंभिक दिनों में फोन नंबर को लेकर कुछ दिक्कतें थीं. यह जांच की जाएगी कि आखिरकार उत्तर प्रदेश का फोन नंबर कैसे इस्तेमाल किया गया." इस संबंध में स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत का कहना है, "हर स्तर पर इसकी जांच की जाएगी. हमलोगों ने सभी संबंधित सिविल सर्जन से इस संबंध में स्पष्टीकरण मांगा है. और अब हम इस तरह के जांच को आधार नंबर से लिंक करने पर विचार कर रहे हैं."

कोरोना जांच को लेकर बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव पहले भी सवाल उठाते रहे है. उन्होंने ट्वीट कर कहा भी, "मैंने पहले ही बिहार में कोरोना घोटाले की भविष्यवाणी की थी. जब हमने घोटाले का डेटा सार्वजनिक किया था तो मुख्यमंत्री ने हमेशा की तरह नकार दिया था." इन लापरवाहियों के संबंध में एक अवकाश प्राप्त स्वास्थ्य अधिकारी भी कहते हैं, "याद कीजिए, लॉकडाउन में जब लोग बिहार लौट रहे थे तब बस स्टैंड या स्टेशनों पर उनकी जांच के लिए थर्मल स्कैनिंग आदि जो व्यवस्था की गई थी वह भी विवादित ही रही. दरअसल अपनी गर्दन बचाने के लिए हड़बड़ी में कोई भी कर्मचारी ऐसी ही गलतियां करता है जो जगहंसाई की वजह बनतीं हैं." वास्तव में हर व्यवस्था में ऐसी गलतियों की गुंजाइश रहती है, किंतु भोजपुर जिले के सत्तर वर्षीय शिवजनम सिंह को बिना जांच के ही कोविड संक्रमित ठहराने से जो तकलीफ हुई है, उसकी भरपाई कौन करेगा.

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