वैज्ञानिकों को मेक्सिको में व्हेल की नई और अब तक बेनाम प्रजाति मिली है. इतना बड़ा जीव आज तक किसी की नजर में क्यों नहीं आया, ये सवाल हैरान कर रहा है.
बीकर व्हेलें शिकारियों से बचने के लिए बड़ी गहराई में रहती हैंतस्वीर: via REUTERS
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मेक्सिको के तटीय इलाकों में मरीन रिसर्चर व्हेल की एक दुलर्भ प्रजाति को खोज रहे थे. तभी उन्हें अब तक न देखी गई और ना ही दर्ज की गई व्हेल दिखाई पड़ी. अमेरिका के नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फीयर एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) ने इसे ब्लीक्ड व्हेल की नई प्रजाति बताया है.
मेक्सिको के दूर दराज के द्वीप सान बेनितो के पास ये नई प्रजाति झुंड में मिली. वैज्ञानिक पेरिन की बीक्ड व्हेल की तलाश में थे. पेरिन बीक्ड व्हेल आज तक सिर्फ मरी हुई मिली हैं. मृत्यु के बाद उनके अवशेष तटों तक पहुंचते हैं.
नई प्रजाति बाकी व्हेलों के मुकाबले थोड़ी छोटी है. आम तौर पर व्हेल पांच मीटर तक लंबी हो सकती हैं. नई व्हेलों के मुंह की बनावट काफी अलग है. उनका मुंह व्हेल की बजाए चोंचदार डॉल्फिन से ज्यादा मेल खाता है.
एनओएए के सीनियर फिशरी साइंटिस्ट डॉ. जय बारलो कहते हैं, "हमें कुछ नया दिखा. कुछ ऐसा जिसकी इलाके में हमने कल्पना नहीं की थी. कुछ ऐसा जो देखने पर, ध्वनि के आधार पर भी अब तक मौजूद जानकारी से बिल्कुल मेल नहीं खाता."
मरने के लिए तटों पर आती व्हेलें आज भी रहस्यतस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Yani
मरीन बायोलॉजिस्ट एंड्र्यू रीड कहते हैं, "सच तो यही है कि वे एक दुर्लभ व्हेल की तलाश में थे और कुछ बिल्कुल अकल्पनीय सामने आ गया, ये जबरदस्त है, यही विज्ञान का आनंद है."
वैज्ञानिकों की टीम ने नई व्हेलों वाले इलाके से पानी के नमूने लिए हैं. उम्मीद है कि इन नमूनों में नई प्रजाति की उखड़ी त्वचा के सुराग मिल सकेंगे. ऐसा हुआ तो डीएनए सैंपलिंग की जा सकेगी. डीएनए टेस्टिंग के बाद ही 100 फीसदी वैज्ञानिक दावा और वर्गीकरण किया जा सकेगा. सब कुछ ठीक रहा तो बीकर व्हेल की प्रजाति में 24वां सदस्य जुड़ जाएगा.
बारलो कहते हैं, "इतना बड़ा जीव. कल्पना कीजिए कि इतना विशाल जीव अब तक नजर में नहीं आया. समंदर में ऐसे कई रहस्य हैं."
रिसर्चर अब 2021 में फिर उस इलाके का चक्कर लगाएंगे. उम्मीद है कि भविष्य में उन्हें नई प्रजाति और पेरिन बीक्ड व्हेल दोनों मिलेंगी.
भारत में तमिलनाडु के तट पर इसी महीने दर्जनों व्हेल मछलियां मरी हुई मिलीं. भारत से हजारों किलोमीटर दूर जर्मनी और हॉलैंड के तटों पर भी 12 व्हेल मछलियां मृत पाई गईं. आखिर क्यों मर रही हैं ये विशाल मछलियां?
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जांच शुरू
जर्मनी और हॉलैंड के उत्तरी सागर के तटों पर भी जनवरी में 12 स्पर्म व्हेलों के शव मिले. अब 10 मीटर लंबी मछलियों के शव की जांच की जा रही है ताकि मौत का कारण पता चले.
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मुश्किल चुनौती
शव की जांच के लिए भारी भरकम व्हेलों को तट से उठाकर लाया गया है. एक मादा स्पर्म व्हेल का वजन 16.5 टन तक होता है. नर का वजन 60 टन तक. तटों पर मिली व्हेलें भले ही ज्यादा बड़ी न हों, लेकिन फिर भी उन्हें उठाने के लिए क्रेन लगानी पड़ी.
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निरीक्षण की प्रक्रिया
शव की जांच के लिए सबसे पहले कुछ व्हेलों के अलग अलग टुकड़े किए गए. मांसपेशियों, ऊतकों और भीतरी अंगों को निकाला जा रहा है. इन सब की जांच की जाएगी. जांच टीम से जुड़े एक सदस्य ने इसे बेहद निराशाजनक लम्हा बताते हुए कहा, "इतने खूबसूरत जानवरों की खाल को अलग करना और उनके टुकड़े टुकड़े करना, मेरा दिल यह देखकर मायूस हो गया."
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अंत में म्यूजियम
व्हेल के एक कंकाल को गिसेन यूनिवर्सिटी में रखा जाएगा. तस्वीर में व्हेल का जबड़ा दिख रहा है. एक और कंकाल को जर्मनी के उत्तर में स्थित श्ट्रालसुंड शहर के मरीन म्यूजियम में रखा जाएगा.
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भूख भी जिम्मेदार
जांच में पता चला है कि कुछ व्हेलों की मौत कुपोषण से हुई. स्पर्म व्हेल बड़े स्क्विड्स खाती हैं. उत्तरी सागर में स्क्विड्स नहीं होते हैं. जांचकर्ता अल्मुट कोटवित्स के मुताबिक कई व्हेलों का पेट एकदम खाली था.
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भारी वजन से मौत
पशु चिकित्सक उर्सुला जाइबर्ट के मुताबिक कुछ व्हेलों ने बहुत ज्यादा खाना खाया था. बहाव के साथ जब वो बीच की रेत तक पहुंची तो उनका अपना ही वजन घातक साबित हुआ. भारी भरकम वजन के चलते उनकी रक्त नलिकाएं और फेफड़े दब गए.
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तट पर कैसे आईं
जनवरी में तमिलनाडु के तट पर भी 100 से ज्यादा शॉर्ट फिन पायलट व्हेलें फंस गईं. इनमें से कई को वापस समुद्र में पहुंचा दिया गया, लेकिन करीब 73 की मौत हो गई. भारत में भी इतनी बड़ी संख्या में व्हेलों के तट पर फंसने की जांच हो रही है.
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व्हेलों का समाज
पर्यावरण संरक्षक फाबियान रिटर के मुताबिक व्हेलों का अपना परिवार और समाज से बेहद गहरा रिश्ता होता है. रिटर कहते हैं, "जब कोई मुखिया बीमार हो जाता है और खुद को अलग करता हुए बीच की ओर जाता है तो उसके ग्रुप के कई और सदस्य समर्पण की वजह से भी उसके पीछे लग जाते हैं."
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बहुत ज्यादा शोर
संरक्षक चेतावनी दे चुके हैं कि इंसानी गतिविधियां पानी के भीतर बहुत ज्यादा शोर फैला रही हैं और इसका समुद्री स्तनधारियों पर खतरनाक असर पड़ रहा है. रिटर कहते हैं, "व्हेलें ध्वनि के प्रति बहुत ही ज्यादा संवेदनशील होती हैं. वे आवाज के जरिए ही एक दूसरे से संपर्क करती हैं. सैन्य अभ्यास के दौरान होने वाली तेज आवाज उन्हें भ्रमित कर देती है."