वोटरों को मिला ना कहने का अधिकार
२७ सितम्बर २०१३सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पी सदाशिवम के नेतृत्व वाली बेंच ने भारत के निर्वाचन आयोग को वोटिंग मशीनों में सुधार कर "उपरोक्त में कोई नहीं" का विकल्प देने को कहा है. इस विकल्प के जरिए मतदाता यह बता सकेंगे कि इनमें कोई उम्मीदवार उनका वोट पाने के योग्य नहीं है. फैसला सुनाते हुए सदाशिवम ने कहा, "लोकतंत्र का मतलब है विकल्प और निगेटिव वोटिंग के अधिकार से मतदाताओं के हाथ में ताकत आएगी. निगेटिव वोटिंग राजनीतिक पार्टियों और उम्मीदवारों को यह साफ संदेश देगा कि मतदाता उनके बारे में क्या सोचते हैं."
सामाजिक कार्यकर्ता उम्मीदवार को खारिज करने का अधिकार मांग रहे थे, लेकिन कोर्ट ने किसी खास उम्मीदवार की बजाय सभी उम्मीदवारों को खारिज करने का अधिकार दिया है. कोर्ट ने यह फैसला एक गैरसरकारी संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की याचिका पर सुनाया है. कोर्ट ने यह भी कहा कि दुनिया के 13 देशों में यह व्यवस्था लागू है.
भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालास्वामी ने इस फैसले का स्वागत किया है. एक भारतीय टीवी चैनल से बातचीत में गोपालास्वामी ने कहा, "एक महान और स्वागत करने योग्य फैसला है, उम्मीद है कि पार्टियां इस फैसले पर ध्यान देंगी और उम्मीदवारों को चुनते समय इस बारे में सोचेंगी कि सिर्फ एक वर्ग की बजाय वो बड़ा समर्थन जुटाने के काबिल हो." गोपालास्वामी ने यह भी नहीं माना कि इससे चुनाव आयोग का काम बढ़ जाएगा. उनके मुताबिक सिर्फ एक और बटन ज्यादा लगाना होगा. यह कोई मुश्किल काम नहीं है और मतदाताओं के लिए भी कोई उलझन नहीं होगी. सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी इसका विरोध करती रही है. उसकी दलील है कि चुनाव चुनने के लिेए होते हैं खारिज करने के लिए नहीं और ऐसा विकल्प देने से आखिरकार मतदाता उलझन में पड़ेंगे.
कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए यह साफ नहीं किया कि अगर खारिज करने वाले मतदाताओं की संख्या वोट देने वाले मतदाताओं से ज्यादा हो जाती है तो ऐसी स्थिति में नतीजों पर क्या असर होगा. सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर वोट देने वाले 50 फीसदी लोग सभी उम्मीदवारों को खारिज कर देते हैं तो फिर उस क्षेत्र में दोबारा चुनाव कराया जाना चाहिए. भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन छेड़ने वाले अन्ना हजारे ने भी सभी उम्मीदवारों को खारिज करने और ठीक से काम न करने पर चुने हुए प्रतिनिधि को वापस बुलाने की मांग भी की थी.
जस्टिस सदाशिवम ने कहा है कि खारिज करने का विकल्प, "चुनावी राजनीति में शुद्धता" बढ़ाएगी. गैरसरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रैटिक रिफॉर्म्स ने हाल ही में एक रिसर्च के बाद बताया था कि संसद के निचले सदन लोकसभा में 30 फीसदी सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं. इसके अलावा 58 फीसदी सांसद करोड़पति हैं. दागी सांसदों और विधायकों की सदस्यता पर सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले को निरस्त करने के लिए सरकार ने अध्यादेश का सहारा लिया है.
एनआर/एमजे (डीपीए, एएफपी, पीटीआई)