ब्रिटिश टेलिकॉम कंपनी वोडाफोन अपनी भारतीय इकाई को भारत में अपनी प्रतिद्वंदी कंपनी आइडिया सेलुलर के साथ मिलाकर देश की सबसे बड़ी टेलिकॉम कंपनी बनाएगी. रिलायंस जियो के कारण मची है टेलिकॉम सेक्टर में अफरा तफरी.
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सोमवार को दोनों कंपनियों ने एक संयुक्त बयान में कहा, "वोडाफोन ग्रुप पीएलसी और आइडिया सेलुलर भारत में अपने ऑपरेशन को मिलाने पर सहमति बना चुके हैं." इन दोनों कंपनियों के विलय से तैयार होने वाली संयुक्त कंपनी भारत की सबसे बड़ी टेलिकॉम कंपनी बन जाएगी. दोनों मिलकर भारत के करीब 40 करोड़ टेलिकॉम उपभोक्ताओं को संचार सुविधाएं प्रदान करेंगी. यह संख्या भारत के कुल टेलिकॉम मार्केट शेयर का करीब 35 फीसदी और रेवेन्यू मार्केट शेयर का करीब 41 फीसदी है.
इन नई संयुक्त इकाई में वोडाफोन का 45.1 प्रतिशत स्वामित्व होगा. उसके पहले वोडाफोन को 4.9 फीसदी हिस्सा आइडिया की पेरेंट कंपनी, आदित्य बिड़ला समूह को ट्रांसफर करना होगा. वोडाफोन को इसके लिए 57.9 करोड़ डॉलर का भुगतान मिलेगा. आदित्य बिड़ला समूह के पास नयी कंपनी के 26 फीसदी का स्वामित्व होगा. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज को भेजे एक बयान में बताया गया है कि इन दोनों कंपनियों के बाद बचा हुआ हिस्सा सार्वजनिक होगा. इसका अर्थ हुआ कि यह हिस्सा स्टॉक एक्सचेंज में शेयर के रूप में बिकेगा, जिसे खरीदने वाले शेयरधारी कंपनी के कुछ हिस्से के मालिक होंगे.
विलय से पहले वोडाफोन इंडिया भारत का दूसरा और आइडिया तीसरा सबसे बड़ा टेलिकॉम नेटवर्क था. अब साथ आने के कारण यह नयी कंपनी भारत की सबसे बड़ी टेलिकॉम कंपनी बन जाएगी और इसी के साथ अब तक नंबर एक रहे भारती एयरटेल को दूसरे स्थान पर धकेल देगी. कई हफ्तों से अटकलें लग रही थीं कि ये दो कंपनियां रिलायंस जियो से मिल रही चुनौती से निपटने के लिए आपस में कोई डील करने पर बातचीत कर रही हैं. रिलायंस जियो ने अप्रत्याशित कीमतों पर कॉल और डाटा की सुविधाएं देकर पूरे देश के टेलिकॉम बाजार को हिला कर रखा हुआ है. प्रतियोगिता में बने रहने के लिए सारी दूसरी कंपनियां भी कीमतों की जंग में कूद चुकी हैं.
सितंबर 2016 में मुकेश अंबानी की निजी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने मुफ्त वॉयस और डाटा सुविधाओं वाला जियो प्लान लॉन्च कर देश में 10 करोड़ सब्सक्राइबर जोड़ लिए. 2017 में कंपनी ने इस बढ़त को जारी रखने के मकसद से बेहद सस्ते डाटा प्लान और हमेशा के लिए मुप्त वॉयस कॉल जैसी सुविधाएं लॉन्च कीं. इन्हीं कारणों से सभी दूसरी टेलिकॉम कंपनियां रिलायंस का मुकाबला करने के लिए एकजुट होती दिख रही हैं.
आरपी/एमजे (डीपीए, पीटीआई)
मोबाइल की आंधी में उड़ गई चीजें
तकनीक, लोगों का व्यवहार बड़ी तेजी से बदलती है. एक दौर में बहुत अहम मानी जाने वाली कई मशीनों की छुट्टी आज मोबाइल फोन ने कर दी है. एक नजर तकनीक की मार झेलने वाली इन चीजों पर.
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तुम्हारे खत
"आदरणीय/प्यारे...., यहां सब कुशल है." इन शब्दों के साथ शुरू होने वाली चिट्ठियां भी तकनीक की आंधी में उड़ गई. टेलीफोन और उसके बाद आई मोबाइल क्रांति ने खतों को सिर्फ आधिकारिक दस्तावेज में बदल दिया. चिट्ठियां खत्म होने के साथ उनका इंतजार करने की आदत भी गुम हो गई.
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पॉकेट कैमरा
आज बाजार में अच्छे कैमरे से लैस कई मोबाइल फोन हैं. फोटो और वीडियो रिकॉर्ड करना अब पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा आसान हो चुका है. इनके चलते पॉकेट साइज कैमरे गायब होते जा रहे हैं.
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फोटो एल्बम
किसी आत्मीय परिवार से बहुत समय बाद मिलने पर फोटो एल्बम देखना बहुत सामान्य बात होती थी. आज तस्वीरें इंटरनेट और कंप्यूटर पर होती हैं. उन्हें देखने के लिए यात्रा करने की भी जरूरत नहीं पड़ती. फोटो एल्बम अब शादियों तक सिमट चुकी हैं.
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टेप और वॉक मैन
1990 के दशक तक घरों में टेप रिकॉर्डर गूंजता था तो स्टाइलिश युवा वॉक मैन की धुन पर थिरकते हुए कदम बढ़ाते थे. MP3 के आविष्कार ने कैसेट वाले युग को भी इतिहास के गर्त में डाल दिया. आज म्यूजिक लाइब्रेरी मोबाइल फोन में समा चुकी है.
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वीडियो कैसेट प्लेयर
एक जमाना था जब किराये पर वीसीआर या वीसीपी लेकर परिवार व पड़ोसियों के साथ फिल्म देखना सामान्य बात होती थी. कैसेट बीच बीच में अटकती भी थी. फिर वीसीडी प्लेयर आया. अब तो कंप्यूटर, यूएसबी और वीडियो फाइलों ने वीसीआर, वीसीपी और वीसीडी को भुला सा दिया है.
टॉर्च की जरूरत अक्सर पड़ा करती है, लेकिन हर वक्त इसे लेकर घूमना, बैटरी बदलना या चार्ज करना झमेले से कम नहीं. मोबाइल फोन के साथ आई फ्लैश लाइट ने परंपरागत टॉर्च के कारोबार को समेट दिया है. हालांकि स्पेशल टॉर्चों की मांग आज भी है.
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कलाई की घड़ी
समय के साथ चलने के लिए कभी कलाई पर घड़ी बांधना जरूरी समझा जाता था. लेकिन मोबाइल फोन ने घड़ी को भी सिर्फ आभूषण सा बना दिया. आज कलाई पर घड़ी न हो, लेकिन जेब में मोबाइल फोन हो तो बड़े आराम से काम चलता है.
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अलार्म घड़ी
कभी छात्र जीवन और नौकरी पेशा लोगों को इसकी बड़ी जरूरत हुआ करती थी. यही सुबह जगाती थी, लेकिन अब यह काम मोबाइल फोन बड़ी आसानी से करता है, वो भी स्नूज के ऑप्शन के साथ. स्टॉप वॉच भी तकनीकी विकास की भेंट चढ़ी है.
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कैलकुलेटर
सन 2000 तक हिसाब किताब या पढ़ाई लिखाई से जुड़े हर शख्स के पास कैलकुलेटर आसानी से देखा जा सकता था, लेकिन मोबाइल फोन ने कैलकुलेटर को भी बहुत ही छोटे दायरे में समेट दिया. आज कैलकुलेटर का इस्तेमाल करते बहुत कम लोग दिखते हैं.
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नोट पैड
किसी के साथ हुई बातचीत में प्वाइंट बनाना, फटाफट लिखना और बाद में दूसरों से पूछना कि कुछ मिस तो नहीं हुआ, मोबाइल फोन के रिकॉर्डर ने इस परेशानी को भी हल किया है. किसी के भाषण या लेक्चर को रिकॉर्ड किया और बाद में आराम से पूरा जस का तस सुना.
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कैलेंडर
कागज का कैलेंडर आज शो के काम ज्यादा आता है. असली काम मोबाइल के कैलेंडर में हो जाता है. इसमें पेज पलटने की भी जरूरत नहीं पड़ती. रिमाइंडर भी सेट हो जाता है. और यह वक्त साथ भी रहता है.
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कंपास
कभी दिशाज्ञान के लिए चुंबक वाले कंपास का सहारा लिया जाता था, फिर नेवीगेशन सिस्टम आए. आज स्मार्टफोन ही दिशाओं की सटीक जानकारी देता है. स्मार्टफोन ने नेवीगशन सिस्टम और ट्रैवल मैप की भी हालत खस्ता कर दी है.
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पीसीओ
1990 के दशक में भारत में दूरसंचार के क्षेत्र में क्रांति सी हुई. छोटे कस्बों और गांवों तक सार्वजनिक टेलीफोन बूथ पहुंच गए. एसटीडी और आईएसडी कॉल करना जोरदार अनुभव से कम नहीं था. फिर घर घर टेलीफोन लगे. आज मोबाइल फोनों ने इन पर धूल जमा दी है.