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व्यायाम ही है जोड़ों के दर्द का उपाय

१ अप्रैल २०१६

ऑस्टियोआर्थराइटिस यानि जोड़ों के दर्द से उबरने के लिए कोई भी तकनीक कारगर नहीं है. रिसर्चरों का कहना है कि सिर्फ व्यायाम ही इसमें मददगार साबित हो सकता है.

Marathonläufer
तस्वीर: Fotolia/ruigsantos

अब 66 साल के हो चले वैर्नर डाउ को 15 साल पहले उनके बाएं कंधे में जबरदस्त दर्द शुरू हुआ. इसके चलते वे हिलने डुलने लायक नहीं रहे. वे बताते हैं, ''अगर मैं ना हिलूं तो मुझे दर्द होता था और जब में हिलता तो और भी अधिक दर्द होता था.'' उन्होंने इस दर्द से जूझने के लिए गर्माहट और दवाओं की मदद ली. वे कहते हैं इससे ये गया तो नहीं, लगातार बना रहा.

अब उन्हें दाहिने कूल्हे में और घुटने में ऑस्टियोआर्थराइटिस की शिकायत है. जर्मन ऑस्टियोआर्थराइटिस ऐड नाम के एक गैर व्यावसायिक सूचना समूह का कहना है कि ऑस्टियोआर्थराइटिस जर्मनी में सबसे आम बीमारी है. इससे तकरीबन आबादी का 6 फीसद हिस्सा जूझ रहा है. इस बीमारी के चलते अक्सर हाथों, घुटने और कूल्हों के जोड़ पर असर पड़ता है.

तस्वीर: Colourbox

जर्मन गठिया रोग परिषद के ​अध्यक्ष एरिका ग्रोम्निका इले बताती हैं कि हड्डियों के सिरे आपस में कार्टिलेज यानि एक नरम ह​ड्डी से जुड़े होते हैं. ये मुलायम और लोचदार टिशु से बनी होती है जो हड्डियों को झटके झेलने में मदद करती है. कार्टिलेज में श्लेष झिल्ली में बनने वाले द्रव के चलते चिकनाई होती है, जो ​हड्डी को घूमने में मदद पहुंचाती है.

ऑस्टियोआर्थराइटिस इसी सुरक्षात्मक कार्टिलेज के घिसकर पतले हो जाने की वजह से होता है. ये जोड़ों पर चोट लगने पर भी हो सकता है, मसलन खेल के दौरान या किसी दुर्घटना में. ऑस्टियोआर्थराइटिस हो जाने की एक वजह जोड़ों पर बहुत ज्यादा दबाव पड़ना भी है. चाहे वो मोटापे के चलते हो, या गलत ढंग से उठने बैठने की आदत के चलते या घुटनों के किसी विकार के ​कारण.

तस्वीर: Colourbox/E.Atamanenko

ऑस्टियोआर्थराइटिस के बढ़ने का खतरा बढ़ती उम्र के साथ बढ़ता जाता है. लेकिन कुछ लोगों में ये आनुवांशिक तौर पर कम उम्र में भी हो जाता है. विशेषज्ञ किसी भी जोड़ में ऑस्टियोआर्थराइटिस की शिकायत को तब तक नहीं स्वीकारते हैं जब तक हड्डी के नीचे पतली हो गई कार्टिलेज मोटी होनी ना शुरू हो जाए. इस रोग के चलते अधिक से अधिक कार्टिलेज का क्षरण होता है और कई बार तो हड्डी दूसरी हड्डी से टकराना शुरू कर देती है.

श्लेष द्रव में बिखरे हुए कार्टिलेज के टुकड़े श्लेष झिल्ली में जलन पैदा कर सकते हैं. इसके चलते और अधिक द्रव पैदा होना शुरू होता है और जोड़ों में सूजन आ जाती है. प्रोफेसर ग्रोम्निका इले बताती हैं कि ऑस्टियोआर्थराइटिस का शुरुआती लक्षण बैठे रहने पर होने वाला दर्द या जकड़न है जो कि कोई हरकत करने के बाद कुछ मिनटों में चली जाती है. जिसे ​इस तरह की शिकायत हो उसे अपनी जांच किसी डॉक्टर या आर्थोपैडिस्ट से करवानी चाहिए.

तस्वीर: Colourbox/L.Mouton

एक्सरे के ​जरिए कार्टिलेज की मोटाई या ह​ड्डियों के बीच की दूरी का पता लगा कर इसका पता लगाया जा सकता है. अगर जोड़ बुरी तरह बिगड़े हुए हैं और बेहद दर्द है तो ही ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी करवाई जा सकती है. ग्रोम्निका इले कहती हैं, ''ऑपरेशन तभी कराना चाहिए है जब रोगी दर्द के मारे बिल्कुल भी उठ पाने की हालत में न हो. उससे पहले आपको हमेशा न सिर्फ डॉक्टर से बल्कि इसी रोग से जूझ रहे दूसरे लोगों से भी सलाह मशविरा करना चाहिए.''

ऑस्टियोआर्थराइटिस से जूझ रहे डाउ कहते हैं कि उन्हें इस दर्द से उबरने में केवल व्यायाम से मदद मिलती है. वे कहते हैं टहलना, साइकिल चलाना और तैरना इसके लिए अच्छे व्यायाम हैं. ग्रोम्निका इले का मानना है कि ऑस्टियोआर्थराइटिस के ​दर्द से हमेशा के लिए उबरने का कोई ज्ञात इलाज नहीं है. लेकिन डाउ के अपने अलग उपाय हैं. वे कहते हैं, ''मैं इसके दर्द से उबरने के लिए गर्म पानी से नहाता हूं.''

आरजे/एमजे (डीपीए)

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